कोरोना के बारे में सबसे ज्यादा झूठ दो ही ने फैलाए, एक फेसबुक और दूसरे नेता

जर्नलिस्ट्स एंड द पेंडेमिक प्रोजेक्ट के तहत इंटरनेशनल सेंटर ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्थित टो सेंटर फॉर डिजिटल जर्नलिज्म के साथ मिलकर कोविड 19 वैश्विक महामारी से सम्बंधित एक वैश्विक सर्वेक्षण किया है...

Update: 2020-10-15 10:54 GMT

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

कोविड 19 एक नयी वैश्विक महामारी है, इसलिए इसपर सही सूचना की आवश्यकता है पर इसका ठीक उल्टा हो रहा हैI कोविड 19 से सम्बंधित सही सूचनाओं की तुलना में अनेक गुना अधिक गलत और भ्रामक सूचनाएं सामने आ रही हैंI दुनियाभर के पत्रकारों ने कोविड 19 से सम्बंधित समाचारों को हमारे बीच पहुंचाया है, वे लॉकडाउन के दौर में भी समाचार लोगों तक पहुंचाते रहे, अस्पतालों की स्थिति बताते रहे, सामान्य जन की पीड़ा दिखाते रहेI जाहिर है, कोविड 19 से सम्बंधित जमीनी जानकारी पत्रकारों के पास ही हैI दुनियाभर के पत्रकारों ने हाल में ही बताया है कि कोविड 19 से सबंधित गलत सूचनाओं को फैलाने में फेसबुक और राजनेता सबसे आगे थेI

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जर्नलिस्ट्स एंड द पेंडेमिक प्रोजेक्ट के तहत इंटरनेशनल सेंटर ऑफ़ जर्नलिस्ट्स ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी स्थित टो सेंटर फॉर डिजिटल जर्नलिज्म के साथ मिलकर कोविड 19 वैश्विक महामारी से सम्बंधित एक वैश्विक सर्वेक्षण किया है। इसके तहत दुनिया के 125 देशों से चुने गए अंगरेजी भाषा के कुल 1406 पत्रकारों/संपादकों/सोशल मीडिया पर समाचार देने वालों से कोविड 19 से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए थेI इसमें से 66 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार सोशल मीडिया पर कोविड 19 से सम्बंधित झूठी खबरों और अफवाहों को फैलाने में फेसबुक सबसे आगे है। इसके बाद व्हाट्सऐप को 35 प्रतिशत पत्रकारों ने आगे मानाI पत्रकारों ने झूठी खबरों का बड़ा स्त्रोत राजनेताओं/जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों/सरकार द्वारा समर्थित सोशल मीडिया पेज को भी मानाI कुल 46 प्रतिशत पत्रकारों ने इसपर सहमति जताई।

इन पत्रकारों में सबसे अधिक पत्रकार अमेरिका, भारत, नाइजीरिया, इंग्लैंड और ब्राज़ील के थेI कुल पत्रकारों में से 53 प्रतिशत महिलायें और शेष पुरुष थेI इनमें से 65 प्रतिशत पत्रकारों की उम्र 25 से 49 वर्ष के बीच थीI इनमें से 29 प्रतिशत पत्रकार थे, 14 प्रतिशत सम्पादक थे, 50 प्रतिशत प्रिंट मीडिया के दूसरे स्टाफ थे और शेष डिजिटल मीडिया के स्वतंत्र पत्रकार थेI पत्रकारों में से 63 प्रतिशत पूर्णकालिक पत्रकार, 25 प्रतिशत फ्रीलान्सर्स, 6 प्रतिशत अंशकालिक और 6 प्रतिशत बेरोजगार थे।

इसमें से 81 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि उन्होंने सप्ताह में कम से कम एक झूठी/भ्रामक खबर देखी, जबकि 25 प्रतिशत का कहना था कि हरेक दिन कोविड 19 से सम्बंधित अनेक झूठी खबरों से उनका सामना होता थाI इस सर्वेक्षण में पत्रकारों से उनके मानसिक तनाव, आर्थिक तंगी, सुरक्षा उपकरण, रिपोर्टिंग के खतरे इत्यादि विषयों पर भी राय ली गई थीI इसमें से 50 प्रतिशत से अधिक पत्रकारों के अनुसार कोविड 19 के दौरान सरकारों द्वारा भय का माहौल पैदा किया गया था, जिससे खबरों का स्वरुप प्रभावित होता थाI इनके अनुसार समाचारों का हवाला देते समय अधिकतर सम्बंधित व्यक्ति नाम नहीं उजागर करने की गुजारिश करते थेI लगभग 20 प्रतिशत पत्रकारों को डिजिटल मीडिया, विशेष तौर पर ट्विटर पर, प्रताड़ित किया गया और 10 प्रतिशत को राजनेताओं द्वारा सार्वजनिक तौर पर प्रताड़ित किया गयाI लगभा 7 प्रतिशत पत्रकार सीधे तौर पर झूठे मुकदमें में फसाए गएI लगभग 48 प्रतिशत पत्रकारों ने माना कि कोविड 19 के दौर में प्रेस की आजादी का सरकारों द्वारा भरपूर हनन किया गया।

कोविड 19 के दौरान निष्पक्ष मीडिया घरानों को भरपूर आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, अनेक समाचारपत्र बंद हो गए, कर्मचारियों की छटनी की गई, वेतन में कटौती की गई या फिर समाचारपत्रों की प्रतियां कम कर दी गईंI कुल 89 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार राजस्व को नियंत्रित करने के लिए उनके मीडिया घराने से कम से कम एक प्रतिकूल कदम जरूर उठाया हैI लगभग 17 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार उनके मीडिया घराने को 75 प्रतिशत से भी अधिक आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, जबकि 43 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार यह नुकसान 50 प्रतिशत से अधिक थाI लगभग 7 प्रतिशत पत्रकारों ने बताया कि उनके समाचारपत्र का प्रिंट संस्करण बंद हो गया हैं, जबकि 11 प्रतिशत के अनुसार प्रिंट संस्करण की प्रतियों में कटौती कर दी गई हैI आर्थिक नुकसान झेलने की बात 67 प्रतिशत पत्रकारों ने स्वीकार की हैI

अधिकतर पत्रकारों के अनुसार कोविड 19 की पत्रकारिता उनके जीवन काल का सबसे चुनौतीपूर्ण काम था, जब सरकारी अंकुश अत्यधित था और सटीक खबरों तक पहुँचाना कठिन थाI इस कारण उनपर मनोब्वैज्ञानिक प्रभाव पड़ने लगेI लगभग 82 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार कोविड 19 की पत्रकारिता करने के दौरान उनके व्यक्तित्व में कम से कम एक मनोवैज्ञानिक विकार जरूर उत्पन्न हो गया, जो अब उनके व्यक्तित्व का हिस्सा हैI लगभग 30 प्रतिशत पत्रकारों के अनुसार उनकी संस्था ने उन्हें कभी भी सुरक्षा उपकरण नहीं दिएI

इस रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट है कि कोविड 19 की सटीक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग अधिकतर पत्रकारों के लिए उनके पत्रकारिता जीवन का सबसे चुनौतीपूर्ण काम रहा है, पर इस चुनौती का कोई पुरस्कार नहीं था, उलटे अधिकतर आर्थिक परेशानियों से घिरते जा रहे हैंI

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