राजस्थान से छुड़ाए गये 18 दलित बंधुआ मजदूर, प्रशासन की मिलीभगत से छोटे बच्चों से भी लिया जा रहा था भारी काम

लालच देकर इन मजदूरों से ईंट-भट्ठे में बंधुआ मजदूरी करवाई जा रही थी। बीती 21 जून को मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था असंगठित मजदूर मोर्चा के संज्ञान में जब मामला आया तो एक्शन एड व बंधुआ मुक्ति मोर्चा संगठनो ने मिलकर जानकारी जुटानी शुरू की...

Update: 2021-07-01 09:40 GMT

राजस्थान के श्रीगंगानगर के ईंट-भट्ठा में बंधुआ मजदूरी करने वाले मजदूर. 

जनज्वार ब्यूरो। कोरोना काल का नरसंहार देखने के बाद भी इंसानियत नाम की जात की आँख नहीं खुल रही है। इंसान को इंसान द्वारा बांधकर काम कराने का चलन रूकने का नाम नहीं ले रहा है। इसी कड़ी में बांदा के रहने वाले 18 से अधिक मजदूरों को राजस्थान के श्रीगंगानगर स्थित विजयनगर से छुड़ाया गया है।

लालच देकर इन मजदूरों से ईंट-भट्ठे में बंधुआ मजदूरी करवाई जा रही थी। बीती 21 जून को मजदूरों के लिए काम करने वाली संस्था असंगठित मजदूर मोर्चा के संज्ञान में जब मामला आया तो एक्शन एड व बंधुआ मुक्ति मोर्चा संगठनो ने मिलकर जानकारी जुटानी शुरू की। सही जानकारी के आधार पर मजदूरों से संपर्क किया गया तो पता चला कि मजदूरों से बिना मजदूरी के जबरन काम लिया जा रहा है। साथ ही मजदूरों के बच्चों से भी काम कराया जाता है।

इन सभी मजदूरों को अगस्त 2020 मेंं बांदा व चित्रकूट से प्रलोभन देकर राजस्थान के श्रीगंगानगर ले जाया गया था। बंधनमुक्त करवाए गये मजदूरों में से एक 23 वर्षीय रामसिंह ने जनज्वार से बात करते हुए बताया कि हम 18 लोगों में 4 महिलाएं, 5 पुरूष सहित 9 बच्चे हैं। वह लोग जहां काम करते थे वहां से सिर्फ किराया ही दिया गया है, मजदूरी भी नहीं मिली। वहां औरतों के साथ दुर्व्यवहार भी किया जाता था।

छुड़ाए गये इन मजदूरों में राम सिंह पुत्र राजा (23) बुद्धविलास पुत्र राजा (21), रोशनी पुत्री राजा (18), सुरेश पुत्र सुबेदार (36), रामपति पत्नी सुरेश (32), शालिनी पुत्री सुरेश (6), कामिनी पुत्री सुरेश (9), सरवन पुत्र सुरेश (3), लकी पुत्र सुरेश (3 माह), रामलाल पुत्र रामसजीवन (55), बिमला पत्नी रामलाल (51), सुशील पुत्र रामलाल (13), शिवमंगल पुत्र रामबहादुर (35), आरती पत्नी शिवमंगल (33), पूजा पुत्री शिवमंगल (9), जुगल किशोर पुत्र शिवमंगल (7), नन्दकिशोर पुत्र शिवमंगल (4), शुभम पुत्र शिवमंगल (2) शामिल हैं।

बंधक मजदूर और उन्हें छुड़ाने वाले मजदूर मोर्चा के दलसिंगार

मजदूरों से कई-कई दिनों तक भूखे पेट काम लिया जा रहा था। इस बात की तस्दीक करते हुए मजदूर मोर्चा के पदाधिकारी दलसिंगार जनज्वार को बताते हैं कि जब उन्हें इस बात का पता चला तो मैने वहीं के एक लोकल दुकानदार से बात की। दुकानदार ने उन्हें पे-टीएम नंबर भेजा जिसके बाद दलसिंगार ने 1500 रूपये भेजे तब जाकर मजदूरों को छोड़े जाने तक भोजन की व्यवस्था हो सकी। मजदूर ने भी बात करते हुए हमसे यह बात कही थी।

राजस्थान के श्रीगंगानगर से छुड़ाए गये इन मजदूरों में एक बात जो कॉमन है वह यह कि ये सभी दलित वर्ग से जुड़े हुए हैं। तो क्या यह वर्ग आसानी से बंधुआ मजदूरी कराने वालों का शिकार हो जाता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद ऐसे मजदूरों के लिए सरकारें जागरूक क्यों नहीं हो पाती हैं। जवाब की बात करें तो सरकार की अपेक्षा हमारे पास इन बातों का बेहतर जवाब है।

क्या है बंधुआ मजदूरी

1. वह व्यवस्था जिसके अंतर्गत लोन लेने वाले अथवा उसके आश्रितों को लोन चुकाने के लिए बिना किसी मजदूरी के लोनदाता के लिए काम करना पड़ता है। जिसे बंधुआ मजदूरी कहा जाता है। यह काम कानूनन प्रतिबंधित है।

2. बेगार की व्यवस्था अथवा बाध्यकारी श्रम के अन्य के अन्य रूप बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में आता है।

3. सुप्रीम केर्ट के फैसले के मुताबिक सरकार द्वारा तय की गई न्यूनतम मजदूरी की दर से कम दर पर काम करना या करवाना जिसमें श्रमिक अपनी मर्जी से काम कर रहा हो तो वह निश्चित तौर पर बंधुआ मजदूर है।

4. कार्यस्थल से कहीं आने जाने की स्वतंत्रता का ना होना अथवा रोजगार चयन की स्वतंत्रता का अभाव तथा काम कराने के बाद समय पर मजदूरी ना देना या फिर रोककर रखना बंधुआ मजदूरी है।

5. बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के अनुसार जिसको नाम मात्र की मजदूरी पर अथवा सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम पर काम करवाया जाता है, वह बंधुआ मजदूर कहलाएगा।

6. संविधान की धारा 23 के मुताबिक देश में किसी भी नागरिक से जबरिया मजदूरी अर्थात मजदूर या श्रमिक की इच्छा के खिलाफ काम कराने को मजबूर करना बंधुआ मजदूरी है।

बंधुआ मजदूरी प्रथा के लिए कौन-कौन है जिम्मेदार

1. गरीबी का बढ़ना तथा उसके समाधान हेतु उचित सरकारी नीतियों का अभाव।

2. किसी व्यक्ति द्वारा रोजगार चुनने की स्वतंत्रता का अभाव।

3. आवश्यकतानुसार स्वयं के रोजगार को छोड़ने अथवा दोबारा नियुक्ति के अधिकार की मनाही होना।

4. कर्ज बोझ का अधिक होना या कर्ज प्राप्ति के संदर्भ में बैंको का गैर जिम्मेदार रवैया।

5. गांवो में साहूकारी प्रथा का जिंदा रहना।

6. आवश्यकता के अनुसार नाममात्र या फिर किसी मजदूरी का ना मिलना।

इन सभी कानूनो के अलावा बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 की धारा 16 व 20 के तहत बंधुआ मजदूरी कराने वाले व्यक्ति के लिए तीन साल की कैद और आर्थिक जुर्माना भरने की सजा का प्रावधान है। लेकिन तमाम अफसरों और मजदूरी कराने वालों की मिलीभगत के चलते यह सभी कानून महज दिखावा साबित कर दिये जाते हैं।  

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