4 मज़दूर-विरोधी लेबर कोड रद्द करने और मज़दूरों के बुनियादी अधिकारों की सुरक्षा की मांग पर अखिल भारतीय मजदूर अधिकार दिवस आयोजित

मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) के आह्वान पर देशभर में जुझारू प्रदर्शन व रैलियों का आयोजन, हजारों मजदूर हुए शामिल, नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर करीब एक हज़ार मज़दूर प्रदर्शन में शामिल हुए...

Update: 2025-12-15 10:31 GMT

Delhi news : कल 14 दिसंबर को मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA), जो देशभर के 14 जुझारू मज़दूर संगठनों, यूनियनों और फ़ेडरेशन का एक समन्वय मंच है, ने हाल में लागू किए गए नए मज़दूर-विरोधी 4 लेबर कोड के ख़िलाफ़ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन और रैलियों का आयोजन किया, और विभिन्न राज्यों (दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, तमिलनाडु और कर्नाटक) के बड़े शहरों (दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, पटना, लखनऊ, बरेली, भुवनेश्वर, कुरुक्षेत्र, लुधियाना, हरिद्वार और रुद्रपुर, दावणगेरे, गुलबर्गा वगैरह) में “अखिल भारतीय मज़दूर अधिकार दिवस” मनाया।

नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर, भारी पुलिस दबाव के बावजूद, दिल्ली तथा हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों से एक हजार से अधिक मज़दूर शामिल हुए, जिनमें विभिन्न शहरी, औद्योगिक और ग्रामीण क्षेत्रों के ऑटोमोबाइल मज़दूर, गारमेंट मज़दूर, इलेक्ट्रॉनिक्स मज़दूर, घरेलू कामगार, मनरेगा मज़दूर, निर्माण मज़दूर, एमएसएमई मज़दूर, गिग मज़दूर, स्कीम मज़दूर शामिल थे। दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में मासा के घटक, मजदूर संघर्ष संगठन, सीएसटीयू, इमके, आईएफटीयू-सर्वहारा, ग्रामीण मजदूर यूनियन बिहार, व बनवासु ने संयुक्त रूप से प्रदर्शन का आयोजन किया, जिसमें और अन्य ट्रेड यूनियनों और श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। नामातः - ट्रेड यूनियन फेडरेशन - ICTU, इफ्टू, AIFTU (न्यू), मज़दूर एकता कमेटी; मजदूर यूनियनें - ऑल इंडिया रेलवे ट्रैकमेन यूनियन, मारुति सुजुकी संघर्ष समिति, बेल्सोनिका कर्मचारी यूनियन, डाइकिन वर्कर्स यूनियन, MMTC वर्कर्स यूनियन, संग्रामी घरेलू कामगार यूनियन, MNREGA मज़दूर यूनियन हनुमानगढ़, चीफ हेल्थ ऑफिसर्स यूनियन, किसान एकता केंद्र; और छात्र-युवा संगठन - पछास, कलेक्टिव, पीएसवाईए, क्रांतिकारी नौजवान सभा, अग्रगामी छात्रा नौजवान संगठन आदि।

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वक्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि 21 नवंबर को देश भर के श्रमिक संगठनों और ट्रेड यूनियनों के सभी विरोधों, चेतावनियों और अपीलों को नजरअंदाज करते हुए मोदी सरकार ने अहंकारपूर्वक विदेशी और भारतीय बड़े पूंजीपतियों के हित में बनाए गए चार श्रमिक-विरोधी श्रम कोड लागू कर दिए। इन चार लेबर कोड का मकसद स्थायी नौकरियों को खत्म करना, "हायर एंड फायर" की सुविधा देना, यूनियनबद्ध श्रम को खत्म करना, काम के घंटे बढ़ाना, श्रम संरक्षणों को वापस लेना, लेबर कोर्ट और लेबर विभाग को खत्म करना, ट्रेड यूनियन आंदोलन का अपराधीकरण, मजदूरों की कार्य सुरक्षा में कटौती और उनकी असुरक्षा में वृद्धि करना है।

ये श्रम संहिताएँ भारतीय मज़दूर वर्ग द्वारा लगभग एक सदी तक लड़े गए ट्रेड यूनियन संघर्षों से हासिल किए गए अधिकारों को एक ही झटके में छीन लेने की ताकत रखती हैं। यह मजदूरों को अधिकारविहीन नग्न गुलामी की तरफ धकेलने का सुनियोजित प्रयास है, जिसमें आगामी पीढ़ियों के सपनों और उम्मीदों का गला घोंट दिया जाएगा। यह केवल नीतिगत प्रस्ताव नहीं, यह मजदूर वर्ग पर संगठित, खतरनाक और जालिमाना हमला है, एक वर्गीय युद्ध है जिसे मजदूरों के प्रतिरोध और एकजुट संघर्ष से ही रोका जा सकता है।

वक्ताओं ने यह भी बताया गया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी ड्राफ्ट राष्ट्रीय श्रम एवं रोजगार नीति (ड्राफ्ट श्रम शक्ति नीति, 2025) एक और मज़दूर विरोधी कदम है। यह नीति मनुस्मृति से प्रेरणा लेती है, जो आधुनिक, वैज्ञानिक और संवैधानिक श्रम नीति के उलट है। आज भारत का मज़दूर वर्ग और अन्य मेहनतकश जनता इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुज़र रही है। एक ओर, कॉर्पोरेट पूंजीपतियों का मुनाफ़ा आसमान छू रहा है, वहीं दूसरी ओर मज़दूरों को नौकरी से निकाला जा रहा है, उनकी मज़दूरी कम की जा रही है, काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं और उनके सम्मान पर व्यवस्थित रूप से हमला किया जा रहा है। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों, बैंक और बीमा का निरंतर निजीकरण कर रही है और जनता से ज़रूरी सामाजिक सेवाएं छीन ली हैं।

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मज़दूर वर्ग की एकजुट शक्ति को कमज़ोर करने के लिए, शासक वर्ग जानबूझकर सांप्रदायिकता, जातिवाद और अंधराष्ट्रवाद का ज़हर फैला रहा है। ये विभाजनकारी ताकतें पूंजीपति वर्ग के वैचारिक हथियार हैं जो मजदूर वर्ग की एकता को तोड़ते हैं और मज़दूरों के गुस्से को उनके असली दुश्मनों - शोषकों और उत्पीड़कों - से दूर करते हैं। इस संदर्भ में, मासा नए लेबर कोड को रद्द करने, मज़दूरों के कठिन संघर्षों से अर्जित अधिकारों की रक्षा करने, और फ़ासिस्ट हमलों व पूंजीवादी शोषण-ज़ुल्म से लड़ने के लिए पूरे भारत में जुझारू, निरंतर और निर्णायक संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान करता है।

प्रदर्शन में ₹30,000 प्रतिमाह न्यूनतम वेतन, सभी मज़दूरों के लिए स्थाई और सुरक्षित रोजगार, तथा सभी श्रम कानूनों के संरक्षण की माँग भी उठाई गई, तथा निजीकरण, बेरोज़गारी, महंगाई, व विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ़ बुलंद आवाज़ उठाई गई। देश के दूसरे हिस्सों में भी अखिल भारतीय मज़दूर अधिकार दिवस के तहत ऐसे ही कार्यक्रम हुए, जिसमें मज़दूरों ने नए लेबर कोड के खिलाफ़ जुझारू निर्णायक संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्वान किया।

मासा आने वाले दिनों में देश भर की अन्य जुझारू ट्रेड यूनियनों के साथ समन्वय बना कर लेबर कोड और श्रम विरोधी नीतियों के खिलाफ़ एक अखिल भारतीय आंदोलन को तेज करने के लिए प्रयासरत है।

मासा की प्रमुख तात्कालिक मांगें:

1. मज़दूरों के अधिकारों को बहाल करें — मज़दूर विरोधी श्रम कानूनों को रद्द करें!

2. मज़दूरों के संघर्षों और हड़तालों पर राज्य के दमन को रोकें!

3. संगठित होने और ट्रेड यूनियन बनाने की स्वतंत्रता की गारंटी दें!

4. ठेका और अस्थायी रोज़गार खत्म करें — सभी नौकरियों को स्थायी करें!

5. ₹30,000 न्यूनतम मासिक वेतन घोषित करें और लागू करें — वेतन को महंगाई से जोड़ें!

6. ग्रामीण रोज़गार को मज़बूत और विस्तारित करें — ₹1,000 प्रति दिन पर 300 दिनों के काम की गारंटी दें!

7. 8 घंटे का कार्यदिवस लागू करें — अत्यधिक शोषण के लिए पूंजीवादी दबाव को ना!

8. गिग और प्लेटफॉर्म मज़दूरों को मज़दूरों के रूप में मान्यता दें — डिजिटल युग की गुलामी खत्म करें!

9. प्रवासी मज़दूरों की रक्षा करें और उन्हें सशक्त बनाएं — एक मज़दूर वर्ग, एक संघर्ष!

10. सामाजिक सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने के अधिकार की गारंटी दें!

11. निजीकरण बंद करें — लोगों की संपत्ति को कॉर्पोरेट लूट से बचाएं!

12. विभाजन और नफरत की राजनीति बंद करें — फासीवाद के खिलाफ मज़दूर वर्ग को एकजुट करें!

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