EWS Reservation : सरकारी नौकरियां ही खत्म हो रहीं तो किसे मिलेगा आरक्षण ? देश में रोजगार का अधिकार तक नहीं - युवा हल्ला बोल
EWS Reservation : रोजगार को लेकर कई आंदोलन कर चुके युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम ने कहा है कि देश में आरक्षण अब केवल एक गुलामी तस्वीर बनता जा रहा है, जब सरकारी नौकरियां ही नहीं बची हैं तो ऐसे में आरक्षण का क्या मतलब है...
EWS Reservation : सुप्रीम कोर्ट ने 'ईडब्ल्यूएस' यानी आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण व्यवस्था जारी रखने पर मुहर लगा दी है। रोजगार को लेकर कई आंदोलन कर चुके युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम ने कहा है कि देश में आरक्षण अब केवल एक गुलामी तस्वीर बनता जा रहा है। जब सरकारी नौकरियां ही नहीं बची हैं तो ऐसे में आरक्षण का क्या मतलब है। भारत में 'रोजगार का अधिकार' तक नहीं है। केंद्र और राज्य सरकारों में लगभग एक करोड़ पद रिक्त पड़े हैं। राजनितिक इच्छाशक्ति का अभाव बेरोजगार युवाओं में आक्रोश पैदा कर रहा है।
नौकरियां ही नहीं है तो आरक्षण पर बहस बेकार
अनुपम ने आगे कहा कि एसएससीजीडी 2018 के हजारों अभ्यर्थियों का मेडिकल होने पर भी उन्हें ज्वाइनिंग नहीं मिल सकी। अनेक अभ्यर्थी ओवरएज हो गए, क्योंकि परीक्षा का परिणाम ही चौथे साल में आया था। अभ्यर्थियों को लंबा आंदोलन करना पड़ा, लेकिन सरकार ने उसे दबा दिया। इसके साथ ही युवा हल्लाबोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम का कहना है कि जब नौकरी ही नहीं है तो आरक्षण किसे और कितना मिलेगा। ये सब हवाई बहस है। सरकार, आरक्षण को लेकर हवा में बॉक्सिंग कर रही है। असल सवाल ये है कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार, दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है। भारत में कुल रोजगार का चार फीसदी भी सरकारी क्षेत्र में नहीं है। चीन और अमेरिका सहित दूसरे देशों में सरकारी क्षेत्र का रोजगार प्रतिशत 10 फीसदी व उससे ज्यादा है। भारत में पहले से ही नौकरी कम है और ऊपर से एक करोड़ पद रिक्त हैं।
रिक्त पदों पर नहीं होती हैं भर्तियां
युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम का कहना है कि सबसे बड़ा सवाल ये है कि देश में सरकारी क्षेत्र क्यों सिकुड़ता जा रहा है। किसी भी विभाग को देखें तो वहां पद खाली पड़े हैं। हैरानी की बात तो ये है कि जितने पदों को भरने के लिए रिक्तियां निकलती हैं, वे भी नहीं भरी जातीं। विज्ञापन के वक्त पदों की जो संख्या होती है, ज्वाइनिंग तक वह नहीं रहती। उसमें बड़ी कटौती कर दी जाती है। रेलवे, बैंक, एसएससीजीडी और दूसरे विभागों में नौकरियों पर नजर दौड़ाएं, तो जॉब की सही स्थिति मालूम होती है। कभी तो परीक्षा ही नहीं होती, अगर होती है तो उसमें कई वर्ष लग जाते हैं। इसके बाद खबर मिलती है कि पेपर आउट हो गया है। उसके बाद रिजल्ट नहीं आता। परिणाम आता है तो ज्वाइनिंग नहीं मिलती। कोर्ट केस अलग से होते हैं।
देश में लागू होना चाहिए रोजगार का अधिकार
युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय संयोजक अनुपम ने आगे बताया कि बेहतर होगा कि सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं। उनमें कटौती न हो। पदों को भरने में लीपापोती न हो। युवाओं में असंतोष कम करना है तो सरकार को रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे। देश में भी 'रोजगार का अधिकार', इसे लागू करना होगा। जिस तरह से संविधान में 'राइट टू लाइफ' है, उसी तरह से 'रोजगार का अधिकार' दिया जाए। बता दें कि युवा हल्लाबोल ने 'भारत रोजगार संहिता' का आइडिया दिया है। किसी को न्यूनतम वेतन पर रोजगार मिल रहा है तो वह हजार किलोमीटर दूर है। ये गलत है। जब न्यूनतम वेतन पर ही रोजगार देना है तो पचास किलोमीटर के दायरे में दें।
रोजगार के अधिकार के लिए होगा आंदोलन
अनुपम ने कहा है कि देश में बढ़ रही बेरोजगारी से लोगों को निजात दिलाने के लिए एक बड़े आंदोलन की रुपरेखा तैयार की जा रही है। देश बचाओ अभियान के अंतर्गत गठित 'जन आयोग' द्वारा रोजगार एवं बेरोजगारी की स्थिति पर बीते दिनों एक रिपोर्ट पेश की गई है। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर एवं प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार, इस आंदोलन के समन्वयक हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और युवा हल्ला बोल के संस्थापक अनुपम सहित कई लोगों ने अपना योगदान दिया है। रिपोर्ट के साथ ही एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसमें 'रोजगार के अधिकार' को मौलिक अधिकारों में शामिल कराने के लिए संविधान में संशोधन करने की मांग की जाएगी।