Ground Report : बाप अंधा, बेटा 2 साल से पड़ा बिस्तर पर और बहू कहती है आयुष्मान कार्ड नहीं आया किसी काम

बीमारी ने हीरामन के पूरे परिवार को जहां बेजान कर दिया है, वहीं खेत बंधक हो जाने से दाने-दाने को ये लोग मोहताज हो गये हैं, बिन्दू भी शरीर से काफी कमजोर है...

Update: 2021-06-21 06:48 GMT

योगी के "रामराज" में हीरामन के कुनबे की तबाही के पीछे उसका दुर्भाग्य या सिस्टम की खामी है जिम्मेदार

अजय प्रकाश और जितेंद्र उपाध्याय की ग्राउंड रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो। केंद्र में मोदी सरकार के 3 वर्ष बाद सन 2017 में जब उत्तर प्रदेश में गोरक्षनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश सरकार की कमान संभाली तो भाजपा के लोगों ने कहा, मोदी हैं तो मुमकिन है योगी हैं तो यकीन है।

सचमुच रामराज की परिकल्पना साकार करने की उम्मीद के साथ लोगों ने अपार बहुमत से भाजपा की प्रदेश में वापसी दिलाई। अब हाल यह है कि योगीराज का कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है और सरकार अब चुनावी वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। ऐसे वक्त में देवरिया जिले के एक सुदूर गांव में रह रहा हीरामन का परिवार मानो यह खुद से सवाल पूछ रहा है कि मेरी तबाही के पीछे मेरा दुर्भाग्य है या योगी के रामराज का सिस्टम ही जिम्मेदार है।

इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए सबसे पहले हीरामन के परिवार के हालात को जानना जरूरी होगा। जनज्वार टीम ने यहां पहुंचकर इस परिवार का हाल जाना। देवरिया जिला मुख्यालय से तकरीबन 18 किलोमीटर दूर भलुअनी विकास खंड का गांव है सुरहा। यहां के 80 वर्षीय हीरामन प्रजापति के परिवार के पास सिर छुपाने को छत तक नहीं है। घर के नाम पर तिरपाल व पतहर का एक छप्पर है, जिसके नीचे परिवार के चार सदस्य किसी तरस जीवन-बसर कर रहे हैं। यह छप्पर भी ग्रामीणों ने पिछले वर्ष आपस में चंदा लगाकर खड़ा कराया था, मगर अब यह भी टूटकर जर्जर हो गया है। मानसून शुरू होने के बाद बारिश ने भारी तबाही ला दी है। छप्पर के बगल में ध्वस्त हो चुका खपरैल का मकान का एकमात्र निशानी बची मिट्टी की दीवार कभी भी बड़े हादसे को जन्म दे सकती है। इनके परिवार में कोई भी आय का स्रोत नहीं है।

कल्याणकारी योजनाओं से वंचित है हीरामन का परिवार

गरीबी व लाचारी के साथ पनपी बीमारी ने पूरे परिवार को तबाह कर दिया है। उम्र ढलने के साथ हीरामन के दोनों आंख की रोशनी चली गई है। लिहाजा वे हर पल चारपाई पर पड़े रहते हैं। 42 वर्षीय बेटा हरेन्द्र प्रजापति कुपोषित है। तमाम इलाज के बावजूद वह कुपोषणमुक्त नहीं हो सका है। अब तो वह खुद उठकर चल भी नहीं पाता। लिहाजा वह भी चारपाई पर पड़ गया है।

आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों का पांच लाख तक निःशुल्क इलाज का दावा करने वाली सरकार के ऊपर तमाचा है हीरामन का यह जवाब, जिसमें वह कहता है, आयुष्मान भारत योजना के तहत कार्ड बनने के बाद भी दवा के नाम पर एक रुपए की गोली तक नसीब नहीं हुई।'

उधर अपने पति हरेन्द्र का ईलाज कराने के लिए पत्नी बिंदु ने कृषि योग्य सारी भूमि भी बंधक रख दी है, लेकिन इसके बावजूद हरेन्द्र के सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। दूसरी तरफ गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए प्रधानमंत्री राहत कोष व मुख्यमंत्री राहत कोष से मदद करने की बात करने वाले क्षेत्रीय विधायक व सांसद ने कभी सुध लेने की कोशिश तक नहीं की। बीमारी ने परिवार को जहां बेजान कर दिया है, वहीं खेत बंधक हो जाने से परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया है। पत्नी बिन्दू भी शरीर से काफी कमजोर है। आय का कोई साधन नहीं होने से ईंधन व नमक तेल का भी संकट भी उत्पन्न हो जाया करता है।

गांव के लोग जब चंदा लगाकर पैसा देते हैं तो उसी पैसे से बिन्दू कोटे से खाद्यान्न लाती है। जब तक घर में खाद्यान्न रहता तब तक वह सूखा-रूखा बनाकर ससुर, पति, बेटा व अपना भूख मिटाती है, लेकिन जैसे ही खाद्यान्न समाप्त हुआ कि कई-कई दिन भोजन भी नसीब नहीं होता है। जो गांव के लोग उपलब्ध करा देते हैं उसी से काम चलाना पड़ता है। इतने के बावजूद भुखमरी के कगार पर खड़े इस परिवार की सुधि लेने वाला कोई नहीं है।

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शासन का स्पष्ट फरमान है कि हर जरूरतमंद को छत व भूखे को भोजन उपलब्ध होना चाहिए, लेकिन इस परिवार तक अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण अब तक कोई कल्याणकारी योजना नहीं पहुंच सकी है। न तो परिवार के बुजुर्ग मुखिया को वृद्धा पेंशन मिलती है और न ही इन्हें छत ही नसीब हो पायी है। ऐसे में यह परिवार सरकारी योजनाओं को मुंह ही चिढ़ा रहा है। परिवार की तबाही के चलते हरेंद्र के 10 वर्षीय एकलौते बेटे दुर्गेश के चेहरे से बालपन की वह चमक खो गई है। ऐसे में कोरोना काल के पहले से ही दुर्गेश के हाथों से स्कूल का बस्ता हालात के चलते छिन गया है। वह हर वक्त अपनी मां के साथ पिता व दादा की सेवा में लगा रहता है।

रामराज की बात करने वाली सरकार में हीरामन के परिवार की तबाही की तस्वीर को देख हर कोई कह रहा है कि सरकारी सिस्टम गरीबों के दरवाजे तक नहीं पहुंच पा रहा है, जिसका नतीजा है कि वृद्धावस्था व दोनों आंखों की रोशनी के बाद भी इन्हें कोई पेंशन का लाभ नहीं मिलता। आर्थिक हालात के अनुसार सरकार के खाद्यान्न योजना का सही लाभ नहीं मिल पा रहा है। गरीबों का निशुल्क इलाज के लिए बना आयुष्मान भारत योजना का कार्ड मात्र दिखावा बनकर रह गया है।

वर्ष 2011 में बनी स्थाई पात्रता सूची में नाम के बावजूद आज तक प्रधानमंत्री आवास योजना का हीरामन के परिवार को लाभ नहीं मिल पाया। गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों के इलाज के लिए संचालित योजना का लाभ दिलाने की जहमत कभी जनप्रतिनिधियों ने नहीं उठाई। इसके बावजूद अगर भाजपा प्रदेश में रामराज स्थापना की बात करे तो इससे बड़ी बेईमानी की बात क्या होगी। सही मायने में हीरामन के परिवार का दुर्भाग्य बताकर भले ही कोई परिस्थितियों पर पर्दा डालने की कोशिश करे, लेकिन सच्चाई यह है कि भ्रष्ट अफसरशाही के चलते फेल हो चुका सरकारी सिस्टम इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। सही मायने में हीरामन के परिवार का हालात मात्र बानगी भर है। ऐसे परिवारों की बड़ी संख्या है, जिनकी चिंता किए बिना रामराज की परिकल्पना सही मायने में साकार नहीं हो पाएगी।

मीडिया ने उठाई आवाज तो प्रशासन की टूटी नींद

हीरामन के परिवार के हालात को मीडिया ने विभिन्न रूपों में उजागर किया। सही मायने में इसके बाद ही प्रशासन की नींद खुली है। पक्का मकान को लेकर तो अभी परिवार नाउम्मीद है, लेकिन शौचालय का निर्माण शुरू हो चुका है। हालांकि बारिश के चलते इसका निर्माण भी प्रभावित है। संवेदनशील नागरिकों के पहल से हीरामन के परिवार को राहत सामग्री के रूप में कुछ खाद्यान्न अवश्य उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन इसके सहारे घर का चूल्हा कब तक जलेगा इसका सही आकलन करना आसान नहीं होगा।

इस परिवार के बारे में नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान दीनदयाल यादव का कहते हैं, मैंने उसके छप्पर पर बारिश से बचाव के लिए तिरपाल डलवाकर अन्न और कुछ पैसा देकर मदद की है। यह परिवार काफी बदहाली में है। उसकी हर तरह से मदद करूंगा।

सरकारी मशीनरी के फैले जंजाल के बावजूद खंड विकास अधिकारी भलुअनी आलोक दत्त उपाध्याय कहते हैं, मुझे ऐसे परिवार के बारे कोई जानकारी नहीं है, न ही किसी ने इसे संज्ञान में लाया है। ग्राम प्रधान व सचिव को परिवार के सहयोग के निर्देशित किया जाएगा तथा छत का इंतजाम भी व्यवस्था अनुसार होगा।

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