ग्राउंड रिपोर्ट : सरकार से नहीं खुद के प्रयोग से खुशहाल हैं इस गांव के किसान, उपज के विपरीत उगाते हैं सिंदूरी गन्ना

किसान सम्मान के 2 हजार रुपये मिलने की बाबत नीरज कहते हैं कि हां वो तो रुपया खाते में आ जाता है, पर कभी महीने-चौमाहे, लेकिन उस रुपये को देकर सरकार हमसे दसियों हजार वसूल भी तो लेती है, दुनियाभर के टैक्स, कहां देशी गन्ना जाता तो है बिकने क्या रुपया मिलता है....

Update: 2021-03-18 11:54 GMT

मनीष दुबे की रिपोर्ट

जनज्वार, कानपुर। दिल्ली बॉर्डर पर किसान अपनी मांगों को लेकर अनवरत धरने पर बैठा है। किसानों की हालत धरने से पहले भी कुछ ठीक नहीं रही। किसानों को लेकर हरित क्रांति समेत कई क्रान्तियां आई और गईं लेकिन नहीं सुधरे तो अन्नदाताओं के हालात। खेती करने के साथ-साथ किसान कभी मजदूरी तो कभी कोई और काम कर गुजारा करता है, बावजूद इसके सरकार और सरकारी तंत्र कागजी व हवाई वादे और उन वादों के बीच इन्हें बहुत कुछ दे डालते हैं, इनका दिया कहां जाता है भगवान मालिक है।

कानपुर शहर से 22-23 किलोमीटर दूर गांव नक्तु के कुछ किसानों ने सरकार और उनके वादों के चारण ना बनकर खुद से एक अनोखा प्रयोग कर डाला है। गांव के किसानों ने हरदोई से अलग तरह के गन्ने का बीज लाकर उसी प्रक्रिया से अपने खेतों में बोया, जिसके बाद इन किसानों की थोड़ी बहुत माली हालत ठीक हुई है। लेकिन प्राकृतिक आपदा और अन्ना मवेशियों से इन किसानों को फसल का नुकसान होता है।

सिंदूरी गन्ने यानी लाल गन्ने की फसल उगाने वाले 60 वर्षीय किसान तेजपाल कुशवाहा बताते हैं कि, 'इस फसल को उगाने में टोटल 40 हजार रुपये की लागत आती है। एक बीघे की। बचत की बाबत पूछनेवपर तेजपाल बताते हैं यही कोई करीब 20-25 हजार की बचत हो जाती है। मतलब कुल मिलाकर 40 हजार की लागत के बाद 60 से 65 हजार में जाकर बिक्री होती है जाकर। तो इस बिक्री के बाद 20-25 हजार हम पँचन का बचत हुई जात है।'

Full View

25 वर्षीय किसान दीपक कुशवाहा बताते हैं कि 'इस गन्ने की एक बीघा खेती में ठीक ठाक लागत आ जाती है। लेकिन सेफ्टी हो जाती है। अब जैसे कोई अन्ना जानवर है, फसल खा जाता है उससे तो बेहतर हमें की इस फसल को उगाने में हमें कुछ सेफ्टी हो जाती है और लागत कि अपेक्षा कुछ बहुत ठीक ही आमदनी निकल आती है। दीपक हमें इस स्पेशल गन्ने को उगाने की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि इसकी उपज के लिए अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। जैसे टाइम से खाद पानी, इसके बाद जब यह फसल तीन से चार फुट की हो तो इसकी जड़ों में मेड़ बांधी जाती है। जिसका विशेष ख्याल रखना पड़ता है।

लाल कलर के गन्ने की फसल उगा रहे कुलदीप हमसे बताते हैं कि इस खेती को करने के लिए भी बहुत अधिक मेहनत करने की जरूरत होती है। ऐसे ही नहीं सब होता है। ट्रैक्टर से कुड़ी (दोनों गन्नों के बीच की दूरी में बनी नाली ) बनानी पड़ती हैं। देखरेख सफेद यानी देशी गन्ने की अपेक्षा अधिक करनी होती है। सबसे अधिक दिक्कत आवारा जानवरों की होती है। कभी आंधी, बयार उसमे थोड़ी दिक्कत होती है, बट हम कंट्रोल कर ले जाते हैं।

इस गांव में स्कूल के नाम पर एक मात्र सरकारी प्राइमरी स्कूल ही है, वो भी आला हालत में। किसान राजा सिंह कहते हैं कि 'हमारे बच्चे जादा पढ़-लिख नहीं पाते। आस-पास दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है, अब वहां खुल गया है तो कहते हैं ये प्राइवेट है फीस बहुत है। अब हम तो दिहाड़ी लोग मिला तो मिला, नहीं मिला तो नहीं मिला। ऐसे में कहां से क्या करें? सरकार से कोई मदद नहीं मिलती और सही पूछो तो ना आज तक हम लोग इसके भरोसे रहे, कभी।'

इसी नक्तु गांव में गन्ना उगा रहे किसान नीरज कुमार कहते हैं 'कभी फसल की आपत्ति विपत्ति पर हमें सरकार से कुछ नहीं मिलता। किसान सम्मान के 2 हजार रुपये मिलने की बाबत नीरज कहते हैं कि हां वो तो रुपया खाते में आ जाता है पर कभी महीने-चौमाहे। लेकिन उस रुपये को देकर सरकार हमसे दसियों हजार वसूल भी तो लेती है। दुनियाभर के टैक्स, कहां देशी गन्ना जाता तो है बिकने क्या रुपया मिलता है। आप लोग तो सब जानते हो, मीडिया वाले हो।

नीरज आगे बताते हैं की 'इस गन्ने को उगाने में कीड़े लगने की बहुत संभावना होती है। इसलिए थोड़ी बड़ी होते ही समय दर समय इसके तनों की छंटाई करनी पड़ती है। साथ ही फसल में चूहों के खतरे को भी ध्यान देना होता है, इन फसलों में चूहे भी जल्दी लगते हैं। इनकी भी रोकथाम के लिए उपाय रखना होता है। कुल सब मिलाकर 20-25 हजार की हर फसल इनकम हो जाती है। दीपक भी नीरज की हां में हां मिलाते हुए कहते हैं कि इस फसल का सबसे बड़ा खतरा कीड़े लगना ही होता है, कीड़े लगे मतलब फसल खतम। बहुत ध्यान रखना पड़ता है।

इन किसानों में से कई किसानों का मानना है कि यदि सरकार की तरफ से किसानों के हित मे फैसले लिए जाएं तो स्थितियां सुधर सकती हैं। कुलदीप कहता है क्या मिलता है हम लोगों को। फसली चीजें उगाने पर कोई लाभ मोल नहीं मिलता था, अब हालात ठीक हैं। क्या लेना सरकार से।

Tags:    

Similar News