टमाटर उत्पादक क्षेत्रों में रखरखाव के लिए पर्याप्त मात्रा में होते कोल्ड स्टोरेज होते तो किसानों को भी मिलता वाजिब दाम और नहीं बढ़ती इतनी कीमतें
मई के महीने में किसानों को टमाटर का रेट 2.5 रुपये किलो बमुश्किल मिल रहा था। भारी घाटे की वजह से मंडी तक टमाटर पहुंचाने के बजाय किसानों को विवश होकर टमाटर की फसलों को खेतों में ही बर्बाद करना पड़ा....
लखनऊ । टमाटर उत्पादन में भारत चीन के बाद वैश्विक भागीदारी में 11 फीसद के साथ दूसरे स्थान पर है। बावजूद इसके मौजूदा समय में भारी किल्लत के कारण 100 रुपए से ज्यादा कीमत पर टमाटर खुदरा बाजार में मिल रहा है, जबकि मई के महीने में किसानों को टमाटर का रेट 2.5 रुपये किलो बमुश्किल मिल रहा था। भारी घाटे की वजह से मंडी तक टमाटर पहुंचाने के बजाय किसानों को विवश होकर टमाटर की फसलों को खेतों में ही बर्बाद करना पड़ा।
अगर टमाटर उत्पादक क्षेत्रों में रखरखाव के लिए पर्याप्त मात्रा में कोल्ड स्टोरेज होते तो न सिर्फ किसानों को वाजिब दाम मिल जाता, बल्कि आज लोगों को इतना महंगा टमाटर न खरीदना पड़ता। इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि प्रसंस्कृत टमाटर के वैश्विक बाजार में भारत की हिस्सेदारी बेहद कम है। शोध कार्यों में बेहद कम खर्च की वजह से भारत में टमाटर प्रसंस्करण उद्योग के लिए समुचित तकनीक का भी अभाव है। टमाटर प्रसंस्करण उद्योग में अमूमन बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कब्जा है।
अगर सरकार चाहे तो लोगों के समूह बनाकर उसके लिए उपयुक्त तकनीक मुहैया कराई जा सकती है जो लघु व कुटीर उद्योग के अनूकूल हो। इसके लिए विदेशी तकनीक की निर्भरता भी नहीं रहेगी। आइपीएफ ने मांग की कि टमाटर का भारी उत्पादन करने वाले सोनभद्र, मिर्जापुर व नौगढ़ में टमाटर के रखरखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज खोले जाएं और टमाटर प्रसंस्करण उद्योग के लिए सरकार यहां के युवाओं को पूंजी, तकनीकी व बाजार सुनिश्चित करे। इससे न सिर्फ किसानों को उचित मूल्य मिलेगा बल्कि बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन भी होगा।
आइपीएफ के प्रदेश महासचिव दिनकर कपूर ने टमाटर की बेइंतहा बढ़ी कीमतों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर सरकार इस तरह की नीति बनाए तो वैश्विक बाजार में निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ेगी, किसानों को वाजिब दाम के साथ ही टमाटर की बर्बादी व महंगाई पर भी रोक लगेगी।