Exclusive : पति-पत्नी बांदा से शिकोहाबाद मजदूरी करने गए, वहीं बंधुआ बना लिए गए और SDM रिपोर्टर से पूछता है 'तुमको का मतलब'
बंधुआ मजदूर बनायी गयी सतरूपा कहती है, हम लोग वहां तीन महीने से बंधक बनाकर रखे जा रहे थे, रात को सोने नहीं दिया जाता था और लगातार काम लिया जाता था, इसके अलावा वह लोग हम लोगों को प्रताड़ित कर बुरी तरह मारपीट की जाती थी, कहते थे कि घर से पैसे मंगवाओ नहीं तो यहीं जान से मार देंगे....
कानपुर से मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार, कानपुर। वक्त सुबह का सात बजकर ग्यारह मिनट हो रहा था। ठंड हाड़ को कंपा देने वाली हो रही है। इसी ठंड में 5 छोटे-छोटे बच्चों के साथ एक महिला और उसका पति कीड़े मकोड़ों की तरह झकरकटी बस अड्डे पर हमारे पहुंचने की राह तक रहे थे। दरअसल यह मजदूरी करने बाँदा से शिकोहाबाद गए और वहीं बंधक बना लिए गए।
अब के समय आदमियत की औकात कीड़े मकोड़ों के समान हो गई है। और योगिराज में तो चींटी से भी बदतर इंसान की हालत है। अगर इनकी यह हालत ना होती तो इस तरह से किसी को बंधक बनाकर मजदूरी ना कराई जा रही होती। जबकि भारत सरकार द्वारा देश में बंधुआ मजदूरी के मामले में लगातार कठोर रुख अपनाया जाना बताया जाता है। यह कानून इस क्रूरता से प्रभावित नागरिकों के मौलिक मानवाधिकारों का हनन मानता है और यह इसके यथा संभव न्यूनतम समय में पूर्ण समापन को लेकर अडिग है।
बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 को लागू करके बंधुआ मजदूरी प्रणाली को 25 अक्टूबर 1975 से पूरे देश से खत्म कर दिया गया। इस अधिनियम के जरिए बंधुआ मजदूर गुलामी से मुक्त हुए साथ ही उनके कर्ज की भी समाप्ति हुई। यह गुलामी की प्रथा को कानून द्वारा एक संज्ञेय दंडनीय अपराध बना दिया। इस अधिनियम को संबंधित राज्य सरकारों द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है।
बावजूद इसके बाँदा की अतर्रा तहसील के विसण्डा का रहने वाला 31 वर्षीय शिवमंगल पुत्र द्वारिका और उसका परिवार जिसमें उसकी 27 वर्षीय पत्नी सतरूपा, 11 वर्ष का पुत्र राहुल, 8 वर्ष का लवकुश, 6 साल की बेटी अनुराधा, 2 साल का आदित्य और एक 3 माह का पुत्र अरविंद को ठेकेदार कल्लू ने अक्टूबर, 2020 में ईंट पथाई काम के लिए कुुुछ रुपये देकर एम बी भट्ठा, थाना खैरगढ़, तहसील शिकोहाबाद, जिला- फिरोजाबाद लाया और सभी को नियोक्ता के हवाले करके चला गया।
बांदा के रहने वाले शिवमंगल ने जनज्वार से बात करते हुए बताया कि वहां जबरन मारपीट करते हुए उन लोगों से काम लिया जाता था। रुपये पैसे नहीं दिए जाते थे। बस दो टाइम के खाने बनाने भर का सामान दिया जाता जिसमे गीली लकड़ियों से वो लोग बेहद मुश्किल से बना खा पाते थे। ऑफिस के अंदर बुलाकर उन लोगों को तमंचा दिखाकर डराया धमकाया व जान से हाथ धोने की बाबत बातें कही जाती थीं।
जनज्वार को इन मजदूरों की मिली सूचना के बाद जब संवाददाता ने शिकोहाबाद के एसडीएम को फोन किया तो बेशर्म एसडीएम ने बेबाक अंदाज में हमसे कहा कि आप पहले पत्रकार हैं जिसका इस मामले में उसके पास फ़ोन गया है। हमने उससे पूछा कि क्या आपने इन मजदूरों के बयान लिए हैं, जिसपर एसडीएम ने हमसे कहा कि वह बिजी था। हमारे फ़ोन करने के बाद एसडीएम ने बस में बैठ चुके मजदूर को बस रुकवाकर मुलाकात तो की लेकिन बयान फिर भी दर्ज नहीं किया गया।
एसडीएम को फ़ोन करने के बाद जैसी की हमें आशंका थी ठीक वैसा ही हुआ। हुआ यह कि हमारे फ़ोन करने के बाद कुछ अधिकारी व भट्ठे के मुंशी ने शिवमंगल का फोन छीन लेने की कोशिश की। बकौल शिवमंगल उन्होंने कहा कि इसका फोन छीन लो, इसकी पहुंच बहुत ऊपर तक है। जब फ़ोन छीन लोगे तभी यह किसी को फोन नहीं कर सकेगा और हमे भी कोई परेशानी नहीं होगी। ये सारी कवायद हमारे और एसडीएम के बीच हुई बातचीत के बाद हुई।
शिवमंगल की पत्नी सतरूपा ने जनज्वार को बताया कि हम लोग वहां तीन महीने से बंधक बनाकर रखे जा रहे थे। रात को सोने नहीं दिया जाता था और लगातार काम लिया जाता था। इसके अलावा वह लोग हम लोगों को प्रताड़ित करते थे। बुरी तरह मारपीट की जाती थी। कहते थे कि घर से पैसे मंगवाओ नहीं तो यहीं जान से मार देंगे। सतरूपा बेहद डरी हुई थी। उसने बताया कि हम लोग गरीब मजदूर हैं खुद काम नौकरी की तलाश में गए थे, हमे रुपये देने की बजाय वह उल्टा हमसे ही रुपये मंगवा रहे थे। हम कहां से लाते रुपये।
शिवमंगल अपने बंधन मुक्त होने और घर जाने को लेकर बेहद खुश नजर आ रहा था। जाते हुए उसने हमें बताया कि अभी और भी लोग वहां इसी तरीके से बंधक बनाकर रक्खे जा रहे हैं, उनसे भी जानवरों की तरह सुलूक और काम लिया जाता है।
इस सिलसिले में बंधुआ मुक्ति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष दलसिंगार ने जनज्वार को बताया कि मामले में उन्होंने उत्तर प्रदेश के साथियों से संपर्क कर पूरी जानकारी प्राप्त की और जिलाधिकारी,। फिरोजाबाद तथा अन्य सम्बंधित पदाधिकारियों को पत्र के माध्यम से निवेदन किया कि अविलम्ब बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम, 1989 एवं संविधान के अनुच्छेद-21 और अनुच्छेद -23 तहत कार्यवाही करते हुए सभी को तुरन्त मुक्ति प्रमाण पत्र जारी कर उनके निवास भिजवाने का कष्ट करें। जिसके तहत आज एक परिवार मुक्त हो सका है। अभी और भी जो लोग वहां फंसे हुए हैं उनके लिए भी लड़ाई जारी रहेगी।