मोदी के बनारस में प्रशासन ने पथ विक्रेता अधिनियम की खुलेआम अवहेलना कर ठेले वालों के पेट पर लात मार बरपाया कहर !
प्रधानमंत्री मोदी बड़े-बड़े विज्ञापन लगवा कर रेहड़ी पटरी दुकानदारों के लिए स्वनिधि योजना का श्रेय ले रहे हैं, किंतु धरातल पर उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में दशकों से ठेला लगा रहे दुकानदारों को उजाड़ दिया गया है...
बनारस में ठेले-रेहड़ी वालों पर प्रशासनिक अत्याचार के बाद कैसे हैं हालात बता रहे हैं वरिष्ठ सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय
Banaras News : पथ विक्रेता (जीविका संरक्षण व पथ विक्रय विनियमन) अधिनियम, 2014 की धारा 2(1)(ङ) के अनुसार, 'प्राकृतिक बाजार,’ से ऐसा बाजार अभिप्रेत है जहां विक्रेता और क्रेता उत्पादों या सेवाओं के विक्रय और क्रय के लिए पराम्परा रूप से एकत्र होते हैं और जिसे शहरी विक्रय समिति की सिफारिशों पर स्थानीय प्राधिकारी द्वारा उस रूप में अवधारित किया गया है।
लंका, वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मुख्य द्वार से नरिया मार्ग पर करीब पचास पथ विक्रेता कई दशकों से अपने ठेले लगा रहा हैं। इनके पास 1985 की जब वि.वि. इनसे छह माह का रु. 62 शुल्क लेता था, उसकी रसीदें हैं। ये जो विश्विद्यालय से सटी सीमा दीवार के बाहर ठेले लगाते हैं, सीमा के भीतर सर सुंदरलाल अस्पताल के मरीजों एवं तीमारदारों को जरूरी खाने पीने की चीजें मुहैया कराते हैं, किंतु जब से नरेन्द्र मोदी वाराणसी से सांसद चुने गए हैं इनके लिए तो जैसे मुसीबत का पहाड़ ही टूट गया है।
पहले जब मोदी का हेलीकाॅप्टर विश्वविद्यालय में उतरता था तो एक हफ्ते के लिए इनके ठेले हटा दिए जाते थे। इससे इनको काफी नुकसान होता था। इनके संगठन गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति ने प्रधानमंत्री से हुए नुकसान का मुआवजा भी मांगा। अब जब से जी-20 के कार्यक्रम हुए तब से इनका जीना और भी दूभर हो गया है।
जिला नगरीय विकास अभिकरण के 26 जुलाई 2019 के पत्र में परियोजना अधिकारी ने गुमटी व्यवसाय कल्याण समिति के अध्यक्ष चिंतामणि सेठ को नगर पथ विक्रय समिति का सदस्य दर्शाया है। लंका चैक से नरिया मार्ग को 150 धारण क्षमता वाला विक्रय क्षेत्र भी दर्शाया गया है। चिंतामणि सेठ एवं अन्य पथ विक्रेताओं के पास सर्वेक्षण के बाद जारी किए गए प्रमाणपत्र हैं। इनमें से 54 पथ विक्रताओं को प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत ऋण भी दिए गए हैं। यानी ये पथ विक्रेता अपना व्यवसाय वैध तरीके से कर रहे थे।
21 अक्टूबर 2023 को अपर जिलाधिकारी ने पथ विक्रेता अधिनियम 2014 व इस अधिनियम के आलोक में बनाई गई यूपी की नियमावली 2017 के प्रावधानों को नजरअंदाज करते हुए, एक पत्र में लिख दिया कि विश्वविद्यालय नरिया मार्ग पर अति विशिष्ट व्यक्तियों की आवाजाही होती है और लंका चौराहे पर भीड़-भाड़ रहती है इसलिए इस मार्ग पर ठेला लगाना प्रतिबंधित है। इसी पत्र के बाद लंका के पथ विक्रेताओं पर कहर बरपा है।
पथ विक्रेता अधिनियम, 2014 की धारा 3(3) के अनुसार किसी भी पथ विक्रेता उपधारा (1) के अधीन विनिर्दिष्ट सर्वेक्षण के पूरा होने व सभी पथ विक्रेताओं को विक्रय प्रमाणपत्र जारी होने तक, यथास्थिति, बेदखल या पुनःस्थापित नहीं किया जाएगा।
उपर्युक्त अधिनियम की धारा 18(3) के अनुसार, किसी भी पथ विक्रेता को स्थानीय प्राधिकारी द्वारा विक्रय प्रमाण पत्र में विनिर्दिष्ट स्थान से तब तक पुनःस्थापित या बेदखल नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे उसके लिए तीस दिन की सूचना ऐसी रीति में, जो स्कीम में, विनिर्दिष्ट की जाए, न दे दी गई हो।
28 दिसम्बर 2023 को अचानक पुलिस व नगर निगम के अधिकारी आए और बिना कोई सूचना दिए करीब 20 ठेले और उनका सामान जब्त कर लिए गए। पहले भी ठेले जब्त होते थे, किंतु कुछ वैध-अवैध जुर्माना लेकर नगर निगम द्वारा पथ विक्रेताओं के ठेले छोड़ दिए जाते थे। इस बार नगर निगम कह रहा है कि पहले पुलिस की अनुमति लेकर वे आएं तब उनके ठेले छोड़े जाएंगे। किसी तरह रुपये 1000-1500 लेकर ठैले छोड़े गए। रसीद दी गई है प्लास्टिक का उपयोग करने के जुर्माने की।
उपर्युक्त अधिनियम की धारा 19(2) के अनुसार, पथ विक्रेता, जिसका माल, उपधारा (1) के अधीन अभिगृहीत किया गया है, अपने माल को ऐसी रीति में और ऐसी फीस का, जो स्कीम में विनिर्दिष्ट की जाए, संदाय करने के पश्चात वापस ले सकेगा, परन्तु खराब न होने वाले माल की दशा में, स्थानीय प्राधिकारी, पथ विक्रेता द्वारा किए गए दावे के दो कार्य दिवसों के भीतर माल को छोड़ देगा और खराग होने वाले माल की दशा में, स्थानीय प्राधिकारी, पथ विक्रेता द्वारा किए गए दावे के दिन ही माल को छोड़ देगा।
3 सितम्बर, 2024 को पुलिस ने बर्बरतापूर्वक लाठी चलाकर ठेले वालों को पुनः हटा दिया। 9 अक्टूबर को भेलूपुर नगर निगम क्षेत्रीय कार्यालय पर धरने के बाद संयुक्त नगर आयुक्त इस बात के लिए तैयार हुए कि अगले दिन से ठेले लगेंगे, किंतु पुलिस ने नहीं लगाने दिए। फिर 14 से 17 अक्टूबर लंका पर जहां ठेले लगते थे, वहीं धरना हुआ। तब पुलिस आयुक्त इस बात के लिए तैयार हुए कि पथ विक्रय समिति की अगली प्रस्तावित बैठक 8 नवम्बर तक ठेले लगने दिए जाएं ताकि दुकानादर दीपावली मना सकें।
9 नवम्बर को पुलिस ने पुनः बर्बरतापूर्वक ठेलों को हटा दिया। 11 नवम्बर को सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में लंका थाना लिखता है कि पुलिस द्वारा कोई उत्पीड़न नहीं किया जा रहा है और वेंडरों की आजीविका के सम्बंध में दायित्व नगर महापालिका एवं अन्य विभागों का है। 22 नवम्बर को पुनः पुलिस आयुक्त से मिलने पर उन्होंने साफ कह दिया कि ट्रैफिक बाधित होने की वजह से ठेले नहीं लगने दिए जा सकते। नगर आयुक्त ने, जो पथ विक्रय समिति के अध्यक्ष के नाते तय कर सकते हैं कि ठेले कहां लगेंगे, ने अपनी असमर्थता जता दी है। ठेले न लग पाने के कारण करीब पचास परिवार भुखमरी के कगार पर हैं।
प्रधानमंत्री तो बड़े-बड़े विज्ञापन लगवा कर रेहड़ी पटरी दुकानदारों के लिए स्वनिधि योजना का श्रेय ले रहे हैं, किंतु धरातल पर उन्हीं के संसदीय क्षेत्र में दशकों से ठेला लगा रहे दुकानदारों को उजाड़ दिया गया है। जब प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में यह हो सकता है तो बाकी जगह का क्या हाल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी की सरकार की यही विशेषता है - विज्ञापन तो रंगीन हैं लेकिन हकीकत स्याह है।
(संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के महासचिव हैं।)