'नाम बदलने के नाम पर मोदी सरकार कर रही मनरेगा को खत्म करने की कोशिश' प्रस्तावित VB-G RAM G विधेयक के विरोध में उठी आवाज

BJP संविधान के नाम पर संविधान के अंदर मौजूद जन पक्षधर प्रावधानों और उनसे जुड़े बने कानूनों को खत्म करने और कमजोर करने में लगी हुई है। देश में एक तानाशाही थोपने की उनकी मुहिम का परिणाम ग्रामीण रोजगार गारंटी के लिए चल रही मनरेगा योजना को खत्म करना भी है...

Update: 2025-12-17 12:58 GMT

लखनऊ। मनरेगा की जगह मोदी सरकार द्वारा शुरू की जा रही विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) बिल, 2025 योजना गांव के गरीबों और मजदूरों को मिलने वाले रोजगार के कानूनी अधिकार को छीनने की कार्रवाई है। ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट ने जारी बयान में कहा कि देश में यह मांग थी कि मनरेगा में साल भर काम की गारंटी दी जाए, मजदूरी दर को बाजार भाव के अनुरूप किया जाए और इसका बजट बढ़ाया जाए। इसे करने की जगह भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने नाम बदलने के नाम पर मनरेगा को ही खत्म करने की कोशिश की है।

भारतीय जनता पार्टी संविधान के नाम पर संविधान के अंदर मौजूद जन पक्षधर प्रावधानों और उनसे जुड़े बने कानूनों को खत्म करने और कमजोर करने में लगी हुई है। देश में एक तानाशाही थोपने की उनकी मुहिम का परिणाम ग्रामीण रोजगार गारंटी के लिए चल रही मनरेगा योजना को खत्म करना भी है। ऐसी स्थिति में एआईपीएफ देश के तमाम समूहों, संगठनों और दलों के साथ मिलकर ग्रामीण गरीबों पर किए इस हमले का चौतरफा विरोध करेगा।

ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्य समिति की तरफ से कहा गया है कि मनरेगा की जगह लाई गई नई रोजगार योजना गांव में हो रहे पलायन व बेरोजगारी को बढ़ाने का काम करेगी। जिससे ग्रामीण गरीबों की क्रयशक्ति और कमजोर होगी और उन्हें आजीविका के संकट को झेलना पड़ेगा। यह देश में पहले से ही जारी मंदी को और भी बढ़ाने का काम करेगी।

एआईपीएफ राष्ट्रीय कार्य समिति ने कहा है कि मनरेगा में जहां सभी ग्रामीण गरीबों को जॉब कार्ड मिलता था और सरकार की यह जवाबदेही थी कि काम मांगने के 14 दिनों के अंदर सरकार मजदूरों को काम देना सुनिश्चित करे और काम न दे पाने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता दे। साथ ही यदि मजदूरी बकाया रह जाती है तो ब्याज सहित उसका भुगतान करे। यह सारे प्रावधान नई योजना में नहीं हैं।

एआईपीएफ की राष्ट्रीय कार्य समिति की ओर जारी बयान में कहा गया है कि मनरेगा में जहां केंद्र सरकार 90 प्रतिशत धनराशि देती थी और 10 प्रतिशत ही राज्य सरकार को देना पड़ता था। वहीं इस कानून में 60 प्रतिशत केंद्र और 40 प्रतिशत राज्य द्वारा देने की जो बात कही गई है वह पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहे राज्यों के लिए दे पाना मुश्किल होगा।

इस योजना के अनुसार मनरेगा के तहत वर्ष के 60 दिन कृषि कार्य देने के प्रावधान पर रोक लगा दी गई है। सभी लोग जानते हैं कि कृषि कार्य के मशीनीकरण के कारण पहले ही खेत मजदूरों को कृषि में काम नहीं मिल रहा था और उन्हें बड़ी संख्या में पलायन करना पड़ता है। ऐसे में यह कार्यवाही मजदूरों पर एक बड़ा कुठाराघात है। मनरेगा में जहां जॉब कार्ड, मस्टर रोल, सोशल ऑडिट, सब लिखित और सार्वजनिक है, वहीं इस योजना में ऐसा कुछ भी नहीं है।

बयान में कहा गया है कि मनरेगा योजना लागू होने के समय से ही देश के बड़े पूंजी घराने इसका विरोध करते रहे हैं। सत्ता प्राप्त करने के बाद से ही मोदी सरकार मनरेगा के प्रति कभी भी सहज नहीं रही है। कोविड काल जिसमें मनरेगा ने लोगों को भुखमरी की हालत से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, उस अवधि को छोड़ दिया जाए तो सरकार मनरेगा के बजट फंड में लगातर कटौती करती रही है और अब उसने इसे सीधे तौर पर बंद करने का निर्णय लिया है। अत: सरकार को चाहिए कि वह तत्काल इस नई जनविरोधी रोजगार योजना को वापस ले और मनरेगा को मजबूत करने का काम करे।

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