26 जनवरी तक मोदी सरकार ने नहीं लिये किसान विरोधी कानून तो इसे समझें मेरा इस्तीफा : अभय चौटाला
मुझे कुर्सी नहीं मेरे देश का किसान खुशहाल चाहिए, सरकार द्वारा लागू इन काले कानूनों के खिलाफ मैंने अपना इस्तीफा अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता के बीच हस्ताक्षर कर किसानों को सौंपने का फैसला लिया है....
जनज्वार। पिछले लंबे समय से देशभर के किसान मोदी सरकार द्वारा लागू किये गये कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इस दौरान 100 से ज्यादा किसानों की मौत भी हो चुकी है। इनमें दर्जनों सुसाइड करने वाले किसान भी शामिल हैं। बावजूद इसके किसान अपनी मांगों पर अडिग हैं और मोदी सरकार भी सिर्फ उनसे वार्ता का नाटक भर कर रही है।
अब इस मुद्दे पर हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री बने चौधरी देवीलाल के पोते और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के विधायक अभय चौटाला ने सोमवार 11 जनवरी को विधानसभा अध्यक्ष को अपना 'सशर्त' इस्तीफा पत्र भेजा। उन्होंने पत्र में कहा है कि केंद्र सरकार अगर 26 जनवरी तक नए कृषि कानूनों को निरस्त करने में विफल रही तो हरियाणा विधानसभा से उनका इस्तीफा माना जाए।
गौरतलब है कि वह विधानसभा में एकमात्र इनेलो विधायक हैं। मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व वाली राज्य की भाजपा सरकार में उनकी पार्टी से टूटा गुट जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) हम गठबंधन सहयोगी है।
अपने पत्र में चौटाला ने लिखा है कि अगर 26 जनवरी तक केंद्र सरकार कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती है, तो इस पत्र को ही उनका इस्तीफा समझा जाए। उन्होंने स्पीकर को संबोधित अपने पत्र में लिखा है कि चौधरी देवीलाल जी ने हमेशा किसानों के लिए संघर्ष किया है। आज की परिस्थितियों में उसी विरासत का मैं रखवाला हूं। उन्होंने कहा कि कानूनों का देशभर में विरोध हो रहा है। कड़ाके की ठंड में 47 दिन से ज्यादा समय से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान 60 से ज्यादा किसान शहीद हो चुके हैं।
चौटाला ने कहा कि 8 दौर की बातचीत के बाद भी केंद्र सरकार ने तीनों काले कानूनों को वापस लेने के बारे में कोई सहमति नहीं दर्शाई है। सरकार ने जो परिस्थितियां बनाई हैं, उन्हें देखकर किसानों के हितों की रक्षा के लिए मैं अपनी भूमिका निभा पाने का विकल्प नहीं पा रहा हूं, इसलिए एक संवेदनहीन विधानसभा में मेरी मौजूदगी कोई महत्व नहीं रखती। इन हालातों को देखते हुए अगर भारत सरकार 26 जनवरी 2021 तक कानूनों को वापस नहीं लेती तो इस पत्र को ही विधानसभा से मेरा त्यागपत्र समझा जाए।
गौरतलब है कि जेजेपी नेता और उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पिछले 47 दिनों से कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर धरना दे रहे किसानों के मुद्दे पर जनता में उदासीन हैं, चुप्पी साधे हुए हैं।
इनेलो और जेजेपी मुख्य रूप से ग्रामीण जाट समुदाय केंद्रित पार्टी है, जिसके किसान कोर वोट बैंक हैं। जाट, एक प्रमुख कृषक समुदाय है, जिसकी राज्य में आबादी 28 प्रतिशत है।
अभय चौटाला ने अपने ट्वीटर हैंडल पर भी इस्तीफे को सार्वजनिक करते हुए लिखा है, 'मुझे कुर्सी नहीं मेरे देश का किसान खुशहाल चाहिए। सरकार द्वारा लागू इन काले कानूनों के खिलाफ मैंने अपना इस्तीफा अपने विधानसभा क्षेत्र की जनता के बीच हस्ताक्षर कर किसानों को सौंपने का फैंसला लिया है।'
उम्मीद करता हूँ देश का हर किसान पुत्र राजनीति से ऊपर उठकर किसानों के साथ आएगा।'
गौरतलब है कि कल सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र की मोदी सरकार को किसानों के मुद्दे पर फटकार लगाते हुए कह चुका है कि अगर आप कृषि कानून वापस नहीं ले सकते तो हमें मजबूरन इसे वापस लेने का आदेश देना पड़ेगा।
कोर्ट ने केंद्र से कहा कि अगर आप इस कानून पर रोक नहीं लगाएंगे तो हम लगा देंगे। कोर्ट ने कहा कि हम कमिटी बनाने जा रहे हैं, इसपर किसी को कुछ कहना हो तो कहे। इससे पहले याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि सिर्फ कानून के विवादित हिस्सों पर रोक लगाइए। लेकिन चीफ जस्टिस ने कहा कि नहीं हम पूरे कानून पर रोक लगाएंगे। कानून पर रोक लगने के बाद भी संगठन चाहें तो आंदोलन जारी रख सकते हैं, लेकिन हम जानना चाहते हैं कि क्या इसके बाद नागरिकों के लिए रास्ता छोड़ेंगे।
चीफ जस्टिस ने कहा कि आप हल नहीं निकाल पा रहे हैं। लोग मर रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं। हम नहीं जानते क्यों महिलाओं और वृद्धों को भी बैठा रखा है। खैर, हम कमिटी बनाने जा रहे हैं। किसी को इस पर कहना है तो कहे।