मोदी सरकार बढ़ती बेरोजगारी पर बिल्कुल भी नहीं गंभीर, संयुक्त युवा मोर्चा करेगा आजादी के बाद देश का सबसे बड़ा आंदोलन : प्रशांत भूषण
नोटबन्दी जैसे तुगलकी फरमानों का भारतीय जॉब मार्केट पर प्रतिकूल असर पड़ा, छोटे व्यापारी और व्यवसाय अभी भी उन झटकों से उबर नहीं पाए हैं। इससे भारी संख्या में रोजगार के अवसर खत्म हुए हैं, खासतौर से महिलाओं और सर्वाधिक कमजोर तबकों के....
Sanyukt Yuva Morcha : बेरोज़गारी को राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले युवा नेता अनुपम की पहल पर देश के 113 युवा समूहों के गठबंधन से बना 'संयुक्त युवा मोर्चा' का राष्ट्रीय अधिवेशन राजधानी दिल्ली में आज 15 जुलाई को संपन्न हुआ।
रोज़गार के लिए देशव्यापी आंदोलन खड़ा करने के उद्देश्य से गठित यह संयुक्त मोर्चा देश के कई राज्यों में सघन अभियान चला रहा है। अपनी पहली बैठक में 'संयुक्त युवा मोर्चा' के नेता अनुपम ने रोजगार के समाधान के तौर पर चार प्रमुख मांगों वाला एक प्रस्ताव पेश किया था। प्रस्ताव को 'भारत रोजगार संहिता' यानी 'भरोसा' नाम दिया गया।
अनुपम ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा गया कि "हमारे देश के युवाओं को सरकार से 'भरोसा' चाहिए कि उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा। यह भरोसा है 'भारत रोजगार संहिता', जिसके लिए हमें सामूहिक रूप से लड़ना होगा। जनसमुदाय के बीच बदलाव की यह उम्मीद पैदा करने के लिए व्यापकतम संभव एकता के साथ आज जनान्दोलन की जरूरत है। "भ-रो-सा" को केंद्रित कर एक व्यापक एकता के लिए साझा संकल्प के अलावा संयुक्त प्रयास की भी जरूरत है।"
अनुपम ने कहा कि हमारा देश आज गहरे रोज़गार संकट का सामना कर रहा है। इसके पर्याप्त आँकड़े और ज़मीनी प्रभाव की कहानियां मौजूद हैं। इस विभीषिका के लिए सत्ता की नीति और राजनीति ज़िम्मेदार है। न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था, बल्कि हमारा सामाजिक सौहार्द और लोकतंत्र भी आज निशाने पर है। इसलिये वर्तमान संकट बहुआयामी और अभूतपूर्व है। नोटबन्दी जैसे तुगलकी फरमानों का भारतीय जॉब मार्केट पर प्रतिकूल असर पड़ा, छोटे व्यापारी और व्यवसाय अभी भी उन झटकों से उबर नहीं पाए हैं। इससे भारी संख्या में रोजगार के अवसर खत्म हुए हैं, खासतौर से महिलाओं और सर्वाधिक कमजोर तबकों के। निराशा के कारण लोग रोजगार की तलाश ही छोड़ रहे हैं और लेबर फोर्स से बाहर आने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
अधिवेशन में 'संयुक्त युवा मोर्चा' के नेताओं के अलावा बैंक यूनियन के नेता सी.एच. वेंकटचलम, देवीदास तुलजापुरकर समेत चिकित्सक संघ से लेकर शिक्षक संघ तक के नेता शामिल हुए। अधिवेशन को पूर्व सूचना आयुक्त यशोवर्धन आज़ाद, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, जाने माने अर्थशास्त्री प्रो. संतोष मेहरोत्रा, पर्यावरणविद रवि चोपड़ा समेत कई विशिष्टजन ने भी संबोधित किया।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि सरकार रोजगार के प्रति बिलकुल गंभीर नहीं है। यह आंदोलन स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा आंदोलन होने वाला है। वहीं बैंक एसोसिएशन के नेता सी एच वेंकटचलम ने मोर्चा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की बात कही।
अपनी बात रखते हुए अखिलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि देश में बेरोजगारी के साथ साथ आर्थिक विषमता भी खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। इसका एकमात्र समाधान है देशव्यापी आंदोलन। वहीं पूर्व आईपीएस यशोवर्धन आजाद ने कहा कि न सिर्फ सत्ताधारी पार्टी बल्कि अन्य राजनीतिक दलों पर भी दबाव बनाना होगा कि वो इन मांगों पर अपना रुख स्पष्ट करे।
अधिवेशन के समापन पर संयुक्त मोर्चा के नेता और विभिन्न यूनियनों के नेताओं ने हाथ उठाकर एकता का सांकेतिक प्रदर्शन भी किया।