मोदीराज में लागू NMMS एप और ABPS ने मनरेगा मजदूरों की बढ़ायी मुश्किलें, रोजगार न मिलने से बढ़ता जा रहा असंतोष
मनरेगा मजदूर कौशल्या बताती हैं, जब से मोबाईल से नया सिस्टम आया है तब से ही ऑफिस के लोग बताते हैं कि जब तक मोबाईल में नाम और फोटो लोड नहीं होगा तबतक कुछ नहीं होगा, हमलोगों अपना आधार कार्ड भी दिया है फिर भी कुछ नहीं हो रहा है...
विशद कुमार की रिपोर्ट
MANREGA : जब से केंद्र में मोदी सरकार आयी है ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब व अकुशल मजदूर परिवारों के लिए रोजगार की सबसे महत्त्वाकांक्षी योजना महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा) के नियमों में कई ऐसे बदलाव किये गये हैं, जिससे मजदूरों में असंतोष तो बढ़ता ही जा रहा है। साथ ही उक्त योजना में काम के प्रति उदासीनता भी बढ़ती जा रही है, कारण है केंद्र सरकार द्वारा लाये गये नये नये नियम।
मनरेगा योजना की शुरूआत में मजदूरों का भुगतान पंचायत से नगद के तौर पर होता था। बाद में पोस्ट ऑफिस में मजदूरों का एकाउंट खोलकर वहां उनकी मजदूरी डाल दी जाती और मजदूर जब चाहे जाकर अपना पैसा निकालता था। कुछ दिनों बाद पोस्ट ऑफिस के खाते का सिस्टम बंद कर दिया गया और बैंक में खाता अनिवार्य कर दिया गया। जहां पहले मजदूर डाकघर में आसानी से निकासी कर लेते थे। बैंक में खाता खुलने से कई परेशानियां शुरू हो गईं। उन्हें बैंक से पैसा निकालने लिए कई चक्कर लगाना पड़ता है।
इन सारी दिक्कतों के बीच वर्तमान में केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक योजना में ऑनलाइन हाजिरी बनाने हेतु नया एक सिस्टम NMMS (नेशनल मोबाईल मॉनिटर सिस्टम) यानी राष्ट्रीय मोबाईल निगरानी प्रणाली और एबीपी यानी आधार बेस पेमेंट इस वर्ष एक जनवरी 2023 से लागू किया गया है, जिससे और भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। नेटवर्क की वजह से हाजिरी बन नहीं पा रही है, जिसके कारण मजदूरों का भुगतान नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं मजदूरों को काम भी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है।
इस योजना के तहत ग्रामीण अकुशल मजदूर परिवार को 100 दिन के रोजगार की गारंटी दी गई है। इसके इसके लिए मनरेगा कार्डधारक मजदूर काम की मांग करता है। मनरेगा 2005 की धारा 7 (1) के अनुसार काम की मांग के 15 दिन के अंदर रोजगार प्रदान किया जाता है। यदि किसी कारणवश 15 दिन के अंदर रोजगार प्राप्त नहीं होता है तो सरकार के द्वारा उसे बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है। यह भत्ता वित्तीय वर्ष के दौरान पहले 30 दिन का एक चौथाई होता है। इसके बाद यह न्यूनतम मजदूरी दर का पचास प्रतिशत प्रदान किया जाता है। इस योजना में मजदूरी का भुगतान बैंक, डाकघर के बचत खातों के माध्यम से किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर नगद भुगतान की व्यवस्था विशेष अनुमति लेकर की जा सकती है।
बता दें कि मनरेगा 2005 की धारा 7 (1) का घोर उल्लंघन हो रहा है। एक तो काम की मांग के बाद भी महीनों तक काम नहीं दिया जाता है और दूसरी तरफ काम की मांग के 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं देने पर बेरोजगारी भत्ता भी नहीं दिया जाता है। इन तमाम विसंगतियों के बीच ग्रामीण मजदूर बेरोजगारी का दंश झेलने तथा रोजगार के लिए दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर है।
इन तमाम समस्याओं के खिलाफ झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के पश्चिमी सिंहभूम व सोनुआ प्रखंड के विभिन्न गांवों से अनेक मनरेगा मज़दूरों ने विगत 8 अप्रैल 2023 को खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच के बैनर तले प्रखंड कार्यालय पर रोजगार की मांग को लेकर प्रदर्शन किया।
मजदूरों द्वारा मनरेगा में काम की मांग को लेकर मंच ने प्रखंड विकास पदाधिकारी व मुख्य कार्यक्रम पदाधिकारी को एक मांगपत्र दिया। पत्र में कहा गया है कि प्रखंड में अभी मज़दूरों को काम की व्यापक आवश्यकता है, लेकिन रोज़गार मुहैया करवाने के लिए पर्याप्त संख्या में मनरेगा योजनाओं का कार्यान्वयन नहीं किया जा रहा है। मज़दूरों द्वारा मनरेगा कर्मियों से मौखिक काम की मांग करने से उन्हें कई बार विभिन्न बहाना देकर वापिस भेज दिया जाता है।
बीडीओ को दिए गए पत्र में मंच द्वारा कहा गया है कि निम्न गांवों लोजो, उदयपुर, नीलाईगोट, पोड़ाहाट और सेगाईसाई के 103 मज़दूर काम की मांग करने प्रखंड कार्यालय आए हैं। मज़दूरों के काम की मांग का संलग्न आवेदन पत्र में मजदूरों की मांग है कि .जल्द से जल्द इन मजदूरों को उनके गांव में ही काम दिया जाए। प्रखंड प्रशासन सभी पंचायतों में बड़े पैमाने पर योजनाओं का कार्यान्वयन शुरू करे।
देखा गया है कि मनरेगा कर्मियों द्वारा मज़दूरों को बिना मस्टर रोल के ही काम शुरू करने बोला जाता है। यह सुनिश्चित किया जाए कि मज़दूरों की मांग अनुसार ससमय मस्टर रोल का सृजन कर कार्यस्थल पर पहुंचाया जाएगा।
कई बार मज़दूरों द्वारा किए गए काम व उपस्थिति को एमआईएस में जीरो कर दिया जाता है व कई बार तो पूरे मस्टर रोल ही जीरो कर दिया जाता है। इससे मज़दूर अपने मेहनत की मजदूरी से ही वंचित हो जाते हैं। इस खेल को पूर्ण रूप से बंद किया जाए एवं ऐसा करने वाले दोषी कर्मियों के विरुद्ध कार्यवाई की जाए।
NMMS और ABPS से मज़दूरों को ससमय काम व भुगतान मिलने में बहुत समस्याएं हो रही है। अतः एनएमएमएस को रद्द एवं एबीपीएस की अनिवार्यता को ख़तम करने के लिए सरकार को अनुरोध किया जाए, वहीं अवसर पर प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी को मनरेगा मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता देने का आवेदन भी दिया गया।
खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच ने प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी को संबोधित पत्र मजदूरों को बेरोजगारी भत्ता के लिए दिए गए पत्र में कहा है कि ग्राम पोड़ाहाट पंचायत पोड़ाहाट प्रखंड सोनुआ, जिला पश्चिम सिंहभूम के मनरेगा मजदूरों के द्वारा मनरेगा अधिनियम की अनुसूची 11 की धारा 3 (1) की पैरा 9 के तहत 02.02.2023 को काम के लिये आवेदन किया गया था, परन्तु आवेदन के 15 दिन बीत जाने के बाद भी 14 मजदूरों को अभी तक काम नहीं मिला है, जो कि मनरेगा 2005 की धारा 7 (1) के के तहत बेरोजगारी भत्ते की मांग करते हैं। संबंधित मजदूरों को जल्द से जल्द बेरोज़गारी भत्ता दिये जाने की भी मांग की गयी।
प्रदर्शन में आए मज़दूरों ने कहा कि अभी काम की बहुत जरूरत है, लेकिन गांवों में मनरेगा योजनाएं पर्याप्त संख्या में नहीं चल रही है। जब भी मनरेगा कर्मियों से काम की मौखिक मांग किया जाता है, उन्हें विभिन्न बहाना देकर वापिस भेज दिया जाता है। जैसे फंड नहीं है, एमआईएस नहीं हो रहा है आदि आदि। अभी तक इस साल अधिकांश गावों में योजनाएं जमीनी स्तर पर नहीं चल रही हैं। साथ ही फर्जी मस्टर रोल के माध्यम से बड़े पैमाने पर चोरी हो रहे है।
मनरेगा मजदूरों के प्रति प्रशासन की उदासीनता इससे झलकता है कि पोड़ाहाट गांव के 14 मजदूरों ने 2 फरवरी को काम की मांग की थी, लेकिन उन्हें आज तक काम नहीं मिला। मजदूरों ने हाल में लागू की गई मोबाइल हाजिरी एनएमएमएम और आधार आधारित भुगतान व्यवस्था एबीपीएस से हो रही समस्याएं को साझा किया। मजदूरों के मेहनत के काम व उपस्थिति को एमआईएस में जीरो कर दिया जा रहा है। जिन मजदूरों का एबीपीएस नहीं है, उन्हें काम ही नहीं दिया जा रहा है। प्रखंड कार्यालय पर अपनी मांगों लेकर मजदूरों ने नारे लगाए ‘हर हाथ को काम दो, काम का पूरा दाम दो, समय पर भुगतान दो।’
सोनुआ प्रखंड अंतर्गत पोड़ाहाट पंचायत व गांव का टोला गुदूसई की कौशल्या हेम्ब्रम ने टूटी फूटी हिन्दी में बताया कि उनको पिछले नवंबर से काम नहीं मिला है। हमने काम की मांग की है, बावजूद काम नहीं मिला है।
यह पूछे जाने पर कि आपके परिवार में कितना जॉब कार्ड है, कौशल्या बताती हैं कि वे और उनकी मां का कार्ड है लेकिन मां काम नहीं कर पाती है, मुझे ही काम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि उनकी शादी नहीं हुई है। वो कहती हैं जबसे मोबाईल से नया सिस्टम आया है तब से ही ऑफिस के लोग बताते हैं कि जब तक मोबाईल में नाम और फोटो लोड नहीं होगा तब तक कुछ नहीं होगा। हम लोगों अपना आधार कार्ड भी दिया है फिर भी कुछ नहीं हो रहा है।
लोंजो पंचायत व गांव की मंजो बोदरा बताती हैं कि उन्हें भी इस साल से पहले से ही काम नहीं मिला है। मनरेगा कर्मी और बीपीओ बताते हैं कि हमारा नाम नया नियम के कारण नहीं चढ़ रहा है। बासमती मान गान्दी को हिन्दी नहीं आती है, अतः उनकी बात को मंजो बोदरा बताती हैं, जिसके अनुसार उसे भी पिछले दिसम्बर से काम नहीं मिला है।
स्थिति यह हो गई है कि ग्रामीण रोजगार की अति महत्त्वाकांक्षी समझी जाने वाली योजना मनरेगा में वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा लगातार लायी जा रही कई नये नियमों से पैदा होती समस्याओं के कारण आज मजदूरों में इसके प्रति रूचि घटती जा रही है।
झारखण्ड में मनरेगा में प्रतिदिन काम कर रहे काम करने वाले मजदूरों की संख्या अब आधी से भी कम हो गई है। इस बात को स्वीकारते हुए राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम भी कहते हैं कि केंद्र की भाजपा सरकार ने सबसे अहम मनरेगा का बजट घटा दिया है, जिससे अब गरीबों को रोजगार देना मुश्किल होगा, जिसके कारण ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन शुरू हो रहा है।
केंद्र की मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2022-23 का बजट 89,000 करोड़ से घटाकर वर्ष 2023-24 के लिए 60,000 करोड़ रुपये कर दिया है। मतलब 34 प्रतिशत की बजट में कटौती हुई है। इस वजह से सभी राज्यों को कम पैसा मिल रहा है।
झारखण्ड का बजट भी एक चौथाई कर दिया गया है। अब सभी को रोजगार दे पाना भी असंभव है। शायद केंद्र सरकार की नीयत है कि मनरेगा को इतना जटिल बना दिया जाए कि मनरेगा ही समाप्त हो जाए।