PMAY reality प्रधानमंत्री आवास की आस में पथरायी गरीबों की आंखें, बरसात में टपकती झोपड़ियों में जिंदगी गुजारने को मजबूर

Ground Report : झोपड़ी में रहने वाली सुबीना ने प्रधानमंत्री आवास मिलने की तो उम्मीद ही छोड दी है वह कहती कि ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी से आवास और शौचालय दिलाये जाने की कई बार मांग कर चुकी हैं, मगर कोई भी नहीं सुनता....

Update: 2022-08-10 05:40 GMT

फतेहपुर से लईक अहमद की रिपोर्ट

Fatehpur news : प्रधानमंत्री आवास (PMAY)a मिलने की आस में कइ गरीब परिवारों की आंखें पथरा गयी हैं। सर्दी, गर्मी और बारिश के दिनों में कच्चे मकान की छत, टीन शेड, छप्पर और प्लास्टिक की झोपडी में ये लोग जीवन बसर कर रहे है। जिन लाभार्थियों का आवास चयन सूची में नाम चयनित भी है, उन्हें सालोंसाल इंजार करन के बाद भी धनराशि आवंटित नहीं की गई। इससे उनमें निराशा घर कर गयी है। शासन-प्रशासन के दावों और प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हर गरीब को छत मुहैया कराने के वादे यहां झूठे नजर आ रहे हैं। जनता कहने भी लगी है, मोदी जी ने झूठ कहा था कि 2022 तक हर गरीब के पास अपनी छत होगी।

गौर करने वाली बात तो यह भी है कि कई गरीब परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना (Sarkari Yojana 2022) में शामिल तक नहीं किया गया, जबकि वे झोपडी के आशियाने में गुजर बसर करते हैं। विकास खंड देवमई के गांव गंगरावल हरदासपुर के गरीबों वंचितों से वजह पूछी गई तो वह बताते हैं, 'ग्राम प्रधान हमसे कहते हैं, हमें वोट थोडे दिये हो।' जब मुखिया की ऐसी मानसिकता होगी तो गरीब लाभार्थियों को न्याय की उम्मीद नहीं दिखाई देती है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत देश के ग्रामीण और शहरी इलाके के गरीब परिवार, झुग्गी बस्तियों व सड़क किनारे रहकर अपना गुजर बसर कर रहे देश के चार करोड़ नागरिकों को 2022 तक पक्के मकान बनाकर देने का वादा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया था।

ऐसी झुग्गियों में रहने वाले को नहीं मिला प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ तो आखिर कौन हैं लाभार्थी

इसके अलावा जितने भी कमजोर और मध्य वर्ग के के नागरिक हैं] उन्हें कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराने की घोषणा भी की गयी थी, जिससे वे लोग बिना ज्यादा आर्थिक भारी के आवास का निर्माण करा सकें। प्रधानमंत्री आवास योजना की शुरुआत 25 जून 2015 को देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने की थी। उत्तर प्रदेश में 5.51 लाख गरीबों के आवास बनाने की योजना बनायी गयी।

प्रधानमंत्री आवास योजना (PM Awas Yojana PMAY) के लाभार्थियों को देखने के लिए जब जनज्वार ने पड़ताल की तो पाया कि कई परिवार अभी भी ऐसे हैं, जो ठंड, गर्मी और अब बरसात में बिना छत के जिंदगी गुजार रहे हैं। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत 2022 तक सभी गरीबों को पीएम आवास का लाभ उपलब्ध कराया जाना है। आवास योजना की सूची भी जारी कर दी गई, लेकिन अभी बड़ी तादाद में गरीब परिवार पीएम आवास योजना से वंचित हैं, इनके पास प्रशासन पहुंचा तक नहीं है। उल्टा जो लोग प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ पाना चाहते हैं, वो अधिकारियों के पास जा जाकर जरूर परेशान हो चुके हैं।

जिनको आवास योजना का लाभ नहीं लि पाया है, वो गरीब कहते हैं प्रधानमंत्री आवास योजना कागजों में सिमटी है, पक्की छत की आस में हम सरकार की ओर निहार रहे हैं, मगर मोदी-योगीराज में अपात्रों को बड़ी संख्या में लाभान्वित किया गया। ऐसा क्यों हुआ यह जांच का विषय है कि पात्रों को वंचित करके अपात्रों को लाभान्वित कराया गया है।

प्रधानमंत्री आवास योजना कागजों में सिमटी है, पक्की छत की आस में हम सरकार की ओर निहार रहे हैं

चलने फिरने में अशक्त दिव्यांग राकेश शुक्ला निवासी बकेवर बुजुर्ग बताते हैं, करीब 30 सालों से वह आवासविहीन हैं और दूसरों की शरण में जिंदगी गुजार रहे हैं। ट्राई साइकिल के सहारे से चलने वाले राकेश शुक्ला कहते हैं, कुछ दिनों के लिए पंचायत घर में आश्रय दिया गया था, किंतु एक पूर्व प्रधान ने वहां से भी उसे निष्कासित कर दिया, जिसके बाद वह एक स्थानीय शिक्षक के रहमोकरम पर अपनी जिंदगी गुजार रहा है।

बकौल राकेश उन्होंने कई बार अलग अलग प्रधानों के कार्यकाल में आवास की गुहार लगाई थी, किंतु किसी ने गरीब होने के नाते सुनवाई नहीं की है। मुझे मात्र सरकार से मिलने वाली दिव्यांग पेंशन से किसी तरह जीवन यापन करना पड़ रहा है। आज जिस मकान में रह रहा हूं, वह शिक्षक के जानवर बांधने का कमरा है जो बरसात में पूरी तरह से टपक रहा है और उसकी कच्ची छत की मिट्टी गिरने से हमेशा जान का खतरा बना रहता हुआ है। इसी वजह से रात में मुझे दूसरे के घर में जाकर सोना पड़ता है।

विकास खंड देवमई के गांव गंगरावल हरदासपुर निवासी बाबूलाल कुशवाहा बताते हैं, मेरे पास कच्ची मडैया के अलावा कोई आवास नहीं है। सर्दी, गर्मी और बरसात के दिनों में सुकून की जिंदगी नहीं गुजार सकता। बाबूलाल अपने खेतों के पास कच्ची मडैया बनाकर रह रहा है। उसके चार बच्चे हैं। बच्चों को मिलाकर बाबूलाल का एक दर्जन लोगों का परिवार है। उसकी पत्नी की तीन माह पहले मौत हो गई थी।

बाबूलाल के पास मात्र पौने दो बीघा खेती है। खेती के साथ दो पाली है, जिनका दूध बेचकर परिवार का पालन पोषण कर रहा है। बाबूलाल के परिवार को पानी भी आसानी से सुलभ नहीं है। करीब आधा किलोमीटर दूर जाकर पानी लाना पड़ता है।

प्रधानमंत्री आवास योजना का आईना दिखाती फतेहपुर की झोपड़ी

बाबूलाल दुखी होकर कहते हैं, प्रधानमंत्री आवास और हैंड पाइप के लिए जब भी ग्राम प्रधान से कहा तो उसने जवाब दिया जिसको वोट दिया है, उसी से कॉलोनी और हैंडपंप ले लो। बाबूलाल का यह भी कहना है कि स्वच्छता अभियान के तहत दिए जाने वाला शौचालय भी उसे मुहैया नहीं कराया गया है, जिससे शौच के लिए खुले जंगल में जाना पड़ता है। बाबूलाल 60 साल पार कर चुके हैं और उन्हें वृद्धावस्था पेंशन का लाभ भी नहीं दिया गया है। बाबूलाल खुलकर आरोप भी लगाते हैं कि प्रधान ने वोट न देने की वजह से सभी योजनाओं से मुझे दूर रखा है। इनके बेटे मोहन को उज्ज्वला योजना के तहत गैस सिलेंडर मिला था, किन्तु पैसों के अभाव में खाली पड़ा है और पूरे परिवार का खाना लकड़ी से चूल्हे में बनाना पड़ता है।

ग्राम पंचायत रसूलपुर बकेवर निवासी 35 वर्षीय मोबिन शाह लगभग दस सालों से एक पॉलीथिन का टेंट लगाकर परिजनों के साथ रहते हैं। मोबिन के 6बच्चे हैं और इन बच्चों के साथ मोबिन गर्मी, सर्दी और बारिश के दिनों में पालीथीन के टेंट में गुजर बसर करते हैं।

मोबिन कहते हैं, बरसात के दिनों में उसके निवास स्थान पर पानी भर जाता है, जिससे खाना बनाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। उसके पास शौचालय भी नहीं है, जिस कारण बारिश के दिनों में पानी भरे रास्ते से महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को गांव से दूर शौच के लिए जाना पड़ता है। ऐसी अवस्था में छोटे बच्चों के लिए हमेशा खतरा बना रहता है।

मोबिना बताता है उसके पास खेती भी नहीं है, सिर्फ राजमिस्त्री करके काम चलाना पड़ रहा है। बारिश के दिनों में काम न मिलने से इनका परिवार तंगहाली से गुजर रहा है।

मोबिन की झोपड़ी के बगल में साजन पत्नी सुबीना का आशियाना तंबू और टीन शेड के कमरे में है। सुबीना का पति ट्रक चालक है। इनके दो बच्चे हैं। मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह परिवार का खर्च चलता है।

सुजीना बताती है उसे स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय का लाभ ग्राम प्रधान द्वारा नहीं दिया गया है, जिससे इस परिवार को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है

सुजीना बताती है उसे स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय का लाभ ग्राम प्रधान द्वारा नहीं दिया गया है, जिससे इस परिवार को भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। सुबीना ने प्रधानमंत्री आवास मिलने की तो उम्मीद ही छोड दी है। वह कहती कि ग्राम प्रधान और सेक्रेटरी से आवास और शौचालय दिलाये जाने की कई बार मांग कर चुकी हैं, मगर कोई भी नहीं सुनता। ये परिवार आर्थिक कमजोरी के चलते अपनी समस्या को आलाधिकारी तक पहुंचाने में भी असहज महसूस करता है।

जगदीशपुर निवासी मनोज और सविता का भी मकान कच्चा है। उन्होंने छप्पर में प्लास्टिक डालकर बारिश से बचने का इंतजाम किया है। मनोज बताते हैं उनके परिवार में 5 बच्चे हैं, जिसमें तीन बेटी और दो बेटे हैं। मनोज एक बेटी की शादी कर चुके हैं और अभी दो बेटियों की शादी करनी है। उसके पास मात्र डेढ़ बीघा जमीन है, जिससे परिवार को रोटी कपड़ा मुहैया कराने में भी दिक्कत हो रही है, खुद से आवास बनाने की बात तो दूर रही।

मनोज बताते हैं, करीब तीन साल पहले जो आवास सूची बनी थी उसमें उसका नाम था, लेकिन आज तक आवास बनाने के लिए पैसा उपलब्ध नहीं कराया गया है। अब कॉलोनी मिलने की आस भी खत्म हो गई है। उसके पड़ोस में रहने वाले सुरेंद्र दीवारों पर टीनशेड डालकर निवास कर रहा है। उसका भी नाम आवास चयनित सूची में दर्ज किया गया था, किन्तु उसे भी आज तक आवास की धनराशि नहीं मिला है।

आवास से वंचित है पात्र जनता

सरकार द्वारा गरीब पात्रता सूची में आने वाले गरीब लोगों को आवास उपलब्ध कराने का समय.समय पर ढिंढोरा पीटा जाता रहा है, किंतु धरातल पर तमाम ऐसे गरीब लोग हैं, जिन्हें आज भी छत मुहैया नहीं है या यूं कहें की उनकी पहुंच ग्राम प्रधान, पंचायत सचिव, खंड विकास अधिकारी या उच्च अधिकारियों के पास तक नहीं है, इसलिए उन्हों शौचालय और आवास का लाभ नहीं मिल पाया।

वहीं आरोप हैं कि ग्राम प्रधान अपने पराए की पहचान करके अपात्रों को भी आवास उपलब्ध उपलब्ध करा देते हैं और गरीब आज भी गरीबी से उबर नहीं पा रहा है, न ही उसे सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा है। फतेहपुर जनपद का कोई भी ऐसा गांव नहीं है जहां बदहाली का जीवन जी रहे लोगों के पास अावास हो।

फतेहपुर जिला ओडीएफ घोषित, फिर भी शौचालय से वंचित हैं लोग

केंद्र व प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान के तरह सभी परिवारों को शौचालय उपलब्ध कराया जाना था। फतेहपुर जिले को ओडीएफ भी घोषित किया जा चुका है, किंतु इसके विपरीत आज भी जनपद के लगभग सभी गांव में काफी तादाद में लोग शौचालय विहीन हैं और जंगल में शौच के लिए जाने के लिए मजबूर हैं। इसके उदाहरण में एक ही गांव पर्याप्त है।

ये गांव है विकास खंड देवमई का रसूलपुर बकेवर, जहां आज भी दो दर्जन से ज्यादा लोगों को शौचालय न मिलने से जंगल में जाकर सोच क्रिया करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा हर ग्राम पंचायत में जाकर शौचालयों की टैगिंग की गई है किंतु यह टैगिंग का काम ग्राम प्रधानों की सहमति के आधार पर करके गांव को ओडीएफ घोषित कर दिया गया है।

यदि इसकी उच्च स्तरीय समिति बनाकर जांच कराई जाए तो विकास खंड अधिकारियों और कर्मचारियों तथा प्रधानों, सचिवों की सांठगांठ का खुलासा हो जाएगा। गांवों में अनेक लाभार्थी ऐसे भी हैं जिन्होंने कई कई बार शौचालय का लाभ तो ले लिया लेकिन शौचालय अभी तक नहीं बने है। अनेक लाभार्थियों द्बारा पूर्व में बनाये गये शौचालयों को नया शौचालय घोषित कर दिया। सांठगांठ करके सरकारी धन का आहरण किया है।

आवास लाभार्थी को मिलते हैं एक लाख 20 हजार

पीएम आवास योजना के प्रत्येक लाभार्थी को अपना आशियाना बनाने के लिए एक लाख 20 हजार रुपयें शासन द्वारा दिया जाता है। योजना के अनुसार लाभार्थी अपना आवास खुद बनाते हैं। इसके लिए उन्हें मनरेगा फंड से 18 हजार रुपये पारिश्रमिक दिए जाते हैं।

जिन लाभार्थियों का पीएम आवास सूची में नाम शामिल है, सरकार द्वारा योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी जिससे गरीब लाभार्थी आवास नहीं बना सके

वादे को पूरा नहीं कर पा रही सरकार

जिन लाभार्थियों का पीएम आवास सूची में नाम शामिल है, सरकार द्वारा योजना में राशि उपलब्ध नहीं की जा सकी जिससे गरीब लाभार्थी आवास नहीं बना सके। जगदीशपुर गांव निवासी मनोज, सुरेंद्र ने बताया कि ग्राम प्रधान से लेकर खंड विकास अधिकारी तक चक्कर काट चुके हैं, सिर्फ यही आश्वासन दिया जाता है कि धनराशि जारी होते ही लाभार्थियों के खाते में पहुंच जायेगी, मगर करीब तीन साल हो चुके हैं। अभी तक लाभ नहीं मिल सका है।

यूपी में 5.51 लाख लाभार्थियों को आवास

केंद्र और प्रदेश की योगी सरकार 5.51 लाख गरीब लाभार्थियों का आवास देगी, जिसमें से चार लाख से अधिक लोगों को आवास की चाभी दी जा चुकी है। प्रदेश में करीब 25 करोड की आबादी है। सरकारी आंकड़े के अनुसार ही उत्तर प्रदेशकी 30 फीसदी या उससे ज्यादा आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीती है। यानी हर 10 में से 3 लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं, तो फिर भाजपा सरकार ने सिर्फ 5.51 लाभार्थियों को किस आधार पर चुना होगा। कई गरीब परिवार ऐसे हैं जिन्हें पीएम आवास चयन सूची में शामिल तक नहीं किया गया, इसके पीछे कारण है कि ग्राम प्रधान ने अपने चहेतों को आवास पात्रता सर्वे के दौरान लाभ चयन सूची में नाम शामिल करा दिया है। उन्होंने गरीब पात्र लोगों को वंचित रहने पर मजबूर किया। इस खामी को दूर कराने में अधिकारी और कर्मचारी भी नाकाम रहे।

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