सर्वे में खुलासा: लॉकडाउन में प्राइवेट स्कूलों की स्थिति हुई बदतर, राजस्व में गिरावट, शिक्षकों के वेतन में भारी कटौती

Update: 2021-07-25 13:15 GMT

लॉकडाउन में लंबे समय से बंद रहने के कारण प्राइवेट स्कूलों की हालत बिगड़ गई है (file pic)

जनज्वार। लॉकडाउन में लंबे समय से बंद रहने की वजह से देश भर के ज्यादातर निजी स्कूलों के राजस्व में भारी गिरावट आयी है जिससे उन विद्यालयों और उससे जुड़े शिक्षकों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया है कि निजी विद्यालयों के राजस्व में यह गिरावट 20 से 50 प्रतिशत तक की रही है। इन हालातों में बड़ी संख्या में स्कूलों ने शिक्षकों के वेतन में कटौती की है।

एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में गुणवत्तापूर्ण स्कूल शिक्षा पर काम कर रहे एनजीओ सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (सीएसएफ) द्वारा सर्वे के उपरांत जारी की गई एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गयी है। यह रिपोर्ट एक अध्ययन पर आधारित है जिसमें 20 राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों के 1,100 से अधिक अभिभावक, स्कूल प्रशासक और शिक्षक शामिल हुए।

रिपोर्ट में कहा गया है, ''ज्यादातर स्कूलों के राजस्व में 20-50 फीसदी की कमी आयी है लेकिन खर्च पहले जितना ही बना हुआ है जिसके चलते पहले की तरह स्कूल का संचालन मुश्किल हो गया है। अभिभावकों के नियमित तौर पर फीस न देने के कारण स्कूलों के राजस्व में कमी आयी है। शहरी स्कूलों में यह ज्यादा है। 55 प्रतिशत स्कूलों ने सुझाव दिया कि इस अकादमिक वर्ष में नए दाखिलों की संख्या में भारी कमी आयी है।''

रिपोर्ट में बताया गया है कि लॉकडाउन के दौरान निजी स्कूलों के कम से कम 55 प्रतिशत शिक्षकों के वेतन में कटौती हुई। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम फीस वाले स्कूलों ने 65 प्रतिशत शिक्षकों का वेतन रोक रखा है, जबकि अधिक फीस वाले स्कूलों ने 37 प्रतिशत शिक्षकों का वेतन रोक रखा है। कम से कम 54 प्रतिशत शिक्षकों की आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है, जबकि 30 प्रतिशत शिक्षक ट्यूशन पढ़ा रहे हैं।

हालांकि सर्वे में शामिल ज्यादातर (77 फीसदी) स्कूलों ने कहा कि इन परिस्थितियों में वे कर्ज भी नहीं लेना चाहते। वैसे कुछ विद्यालयों ने इन परिस्थितियों से उबरने के लिए कर्ज का सहारा लिया तो कई विद्यालयों को कर्ज अबतक उपलब्ध नहीं हो सका था।

कम से कम 77 प्रतिशत स्कूलों ने कहा कि वे कोविड-19 के दौरान स्कूलों की वित्तीय मदद के लिए कर्ज नहीं लेना चाहते और केवल तीन प्रतिशत ने ही सफलतापूर्वक कर्ज लिया, जबकि पांच फीसदी अपने कर्ज को मंजूरी दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं।

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