हंगर वॉच सर्वे में लाॅकडाउन के महीनों बाद भी झारखंड में मुश्किलें जारी, 40 प्रतिशत को मुश्किलें बढने का डर
सर्व में यह तथ्य सामने आया है कि मार्च 2020 में लॉकडाउन शुरू होने के बाद से लगभग सभी उत्तरदाता परिवारों की मासिक आय कम हुई है। आधे परिवारों की अप्रैल और मई में कोई आय नहीं हुई और एक तिहाई परिवारों की सर्वे से पहले के महीने में कोई आय नहीं थी। 58 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद भोजन के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत बढ़ गई थी।
जनज्वार। भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड के सदस्यों ने राज्य भर में 12 सितंबर से 10 अक्टूबर तक लोगों की आर्थिक स्थिति और खाद्य सुरक्षा पर लॉकडाउन के प्रभाव का आकलन करने के लिए 179 कमजोर परिवारों का सर्वे किया। इसमें अधिकतर परिवारों ने बताया कि लॉकडाउन से पहले की तुलना अभी भी उनकी स्थिति ज्यादा खराब है। यानी कोरोना लाॅकडाउन के पूर्व की स्थिति में लाॅकडाउन खत्म होने के कई महीनों बाद भी ये परिवार नहीं पहुंच पाए हैं। झारखंड के लिए यह सर्वे इस वजह से अहम है क्योंकि इस सूबे से भूख से मरने की खबरें समय-समय पर आती रहती हैं और वे राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बनती हैं।
आर्थिक मुश्किलें
सर्व में यह तथ्य सामने आया है कि मार्च 2020 में लॉकडाउन शुरू होने के बाद से लगभग सभी उत्तरदाता परिवारों की मासिक आय कम हुई है। आधे परिवारों की अप्रैल और मई में कोई आय नहीं हुई और एक तिहाई परिवारों की सर्वे से पहले के महीने में कोई आय नहीं थी। 58 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद भोजन के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत बढ़ गई थी।
11 प्रतिशत को आभूषण या अन्य वस्तुएं बेचनी पड़ी और आठ प्रतिशत भूमि मालिक परिवारों ने जमीन बेचने के लिए स्वयं को मजबूर महसूस किया। 13 प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक ऐसा सदस्य था जो लॉकडाउन से पहले काम नहीं कर रहा था, लेकिन जिसने सर्वे के पिछले 30 दिनों में काम करना शुरू किया। अन्य 40 प्रतिशत में एक सदस्य था जो सर्वे के समय काम तलाश कर रहा था। केवल 21 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगा कि अगले तीन महीनों में उनकी स्थिति में सुधार होगा। एक चौथाई को लगता है कि स्थिति वैसी ही रहेगी और लगभग 40 प्रतिशत को उनकी हालत और भी बिगड़ने का डर था।
खाद्य सुरक्षा योजनाओं की स्थिति
लॉकडाउन के दौरान विभिन्न खाद्य सुरक्षा योजनाओं में सार्वजनिक वितरण प्रणाली सबसे नियमित रूप से चली। 94 प्रतिशत प्राथमिकता-अंत्योदय राशन कार्ड वाले या एनएफएसए स्टांप वाले एपीएल-बीपीएल कार्डधारियों को अप्रैल से अगस्त तक हर महीने अनाज मिला। लॉकडाउन के दौरान केवल प्राथमिकता-अंत्योदय कार्डधारक ही अतिरिक्त मुफ़्त अनाज के हकदार थे, लेकिन ऐसे परिवारों में से केवल 41 प्रतिशत को ही अप्रैल से अगस्त तक हर महीने यह अतिरिक्त राशन मिला। बाकी को केवल कुछ ही महीनों के लिए मुफ्त अनाज मिला था बिना एनएफएसए राशन कार्ड वाले परिवारों में से लगभग एक तिहाई ने राशन कार्ड के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें कार्ड नहीं मिला। 18 प्रतिशत परिवारों को पता नहीं था कि वे राशन कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं। 16 प्रतिशत परिवार आवेदन नहीं कर सके क्योंकि उनके पास सभी जरूरी दस्तावेज नहीं थे। सर्वे से पहले के महीने में स्कूल जाने वाले बच्चों वाले 69 प्रतिशत परिवारों को मध्याह्न भोजन के एवज में सूखा राशन मिला। 15 प्रतिशत ऐसे परिवारों को कुछ नहीं मिला। छह साल से कम उम्र के बच्चे, गर्भवती, धात्रि महिला वाले 53 प्रतिशत परिवारों को स्थानीय आंगनबाड़ी से सूखा राशन मिला। आंगनबाड़ी सेवाओं के हकदार एक तिहाई परिवारों को कुछ नहीं मिला।
भोजन की उपलब्धता
लगभग आधे परिवारों ने बताया कि लाॅकडाउन के पहले की तुलना, पिछले महीने उनकी चावल-गेहूं की खपत कुछ कम थी। 18 प्रतिशत अन्य परिवारों में खपत काफ़ी कम थी। कम से कम आधे परिवारों में दाल-हरी सब्ज़ियों की खपत कुछ कम हुई और एक तिहाई अन्य परिवारों में तो काफ़ी कम हुई। अंडे-मांस-मछली की खपत लाॅकडाउन से पहले भी कुछ ख़ास नहीं थी, पर सर्वे के पिछले महीने में 93 प्रतिशत से अधिक परिवार इन खाद्य पदार्थों को और भी कम खा सके। लाॅकडाउन के पहले 17 प्रतिशत परिवारों में कम से कम एक सदस्य को कभी कभार भूखे पेट सोना पड़ता था। सर्वे के 30 दिनों पहले ऐसे परिवारों का अनुपात 23 प्रतिशत हो गया था। 19 प्रतिशत परिवारों को लाॅकडाउन शुरू होने के बाद अपनी जाति या धर्म के कारण भोजन पाने या बेचने में भेदभाव का सामना करना पड़ा।
भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड ने रखी हैं ये मांगें
भोजन का अधिकार अभियान, झारखंड ने कहा है कि लाॅकडाउन के कारण लोगों को हो रहे कष्ट अगले कई महीनों तक जारी रहेंगे। लोगों के जीवन में कुछ राहत लाने और झारखंड में पोषण की आपातकालीन स्थिति को कम करने के लिए सरकार को कुछ अहम कदम उठाने चाहिए, जो इस प्रकार हैं:
1. सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सार्वभौमीकरण और उसमें खाद्य तेल व दालों को शामिल करना।
2. आँगनबाड़ियां पुनः खुले और उनमें व मध्याह्न भोजन में रोज़ अंडा मिले।
3. आदिम जनजाति, बुज़ुर्ग व भूमिहीन जैसे वंचित समूहों के लिए विशेष पोषण पैकेज हो।
4. हर गाँव में नरेगा की योजनाएं खुले, जिससे रोज़गार के लिए इच्छुक हर परिवार को कम से कम 100 दिन का काम मिले।
5. सभी बुज़ुर्ग, एकल महिलाओं व विकलांग लोगों को 2000 रुपये की मासिक पेंशन मिले।
6. सब गर्भवती, धात्रि महिलाओं को 6, 000 रुपये का मातृत्व लाभ मिले।