उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाले में हाईकोर्ट द्वारा नियुक्त कर्मचारियों को हटाने पर रोक के बाद धामी सरकार के लिए इधर कुआं उधर खाई
UKSSSC Bharti Ghotala : उच्च न्यायालय के दखल के बाद बर्खास्त कर्मचारियों को जहां इस मामले में बड़ी राहत मिल गई है तो वहीं विधानसभा अध्यक्ष खंडूड़ी के सामने अब अपने फैसले को सही साबित करने की चुनौती बढ़ गई है
UKSSSC Bharti Ghotala : विधानसभा सचिवालय में बैकडोर से हुई भर्तियों के बर्खास्त लाभार्थियों को उच्च न्यायालय से राहत मिलने पर जहां उनके बीच हर्ष का माहौल है तो कोर्ट के दखल के बाद राज्य सरकार फिलहाल ऐसे दोराहे पर आ गई, जहां आगे कुआं तो पीछे खाई वाली स्थिति है। हर मामले में टिप्पणी को आतुर सरकार और भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता 24 घंटे बाद भी इस मामले में टिप्पणी करने बचे हुए हैं। विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को लेकर आए नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद विधानसभा की इन नियुक्तियों पर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है। उच्च न्यायालय के दखल के बाद बर्खास्त कर्मचारियों को जहां इस मामले में बड़ी राहत मिल गई है तो वहीं विधानसभा अध्यक्ष खंडूड़ी के सामने अब अपने फैसले को सही साबित करने की चुनौती बढ़ गई है।
बताते चलें कि प्रदेश में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की भर्तियों में धांधली सामने आने के बाद विधानसभा में हुई बैकडोर भर्तियों पर भी सवाल खड़े हो गए थे। पूर्व अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल और गोविंद सिंह कुंजवाल के समय हुई नियुक्तियों के मामले में बेरोजगार युवाओं के भड़कते गुस्से को शांत करने की नियत से विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी ने भर्तियों की जांच के लिए समिति का गठन कर दिया था। रिटायर्ड आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्षता में गठित समिति ने विधानसभा के दस्तावेजों की जांच करने के बाद वहां हुई सभी भर्तियों को पूरी तरह गलत और अवैध पाया था।
जांच के लिए बनी तीन सस्यीय विशेषज्ञ जांच समिति की इस रिपोर्ट की सिफारिश के आधार 2016 की 150 भर्तियां (कांग्रेस सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के कार्यकाल) तथा 2020 की छह, 2021 की 72 तदर्थ व 22 उपनल की भर्तियां (भाजपा सरकार में विस अध्यक्ष रहे प्रेमचंद अग्रवाल के कार्यकाल) रद्द की गई थी। इतना ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड विधानसभा भर्ती घोटाले मामले में विधानसभा सचिव मुकेश सिंघल को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करते हुए उनके खिलाफ जांच बैठा दी गई थी।
इधर विधानसभा सचिवालय में नौकरी कर रहे कर्मचारियों ने सरकार द्वारा एक झटके में बेरोजगार किए जाने के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी, जिसके बाद बर्खास्त कर्मचारियों ने नैनीताल उच्च न्यायालय की राह पकड़ी। जहां न्यायालय ने शनिवार को इस मामले में सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए निकाले गए कर्मचारियों को तात्कालिक तौर पर राहत दे दी थी।
न्यायालय के इस रुख से सरकार की चौतरफा घेराबंदी शुरू हो गई है। भाकपा माले के इंद्रेश मैखुरी सहित कई लोगों ने इसे सरकार की असंवैधानिक कार्यवाही का नतीजा बताते हुए उसकी आलोचना शुरू कर दी थी। न्यायालय के इस रुख से खुद सरकार सकते की स्थिति में आ गई। जिस कारण 24 घंटे बाद भी न तो सरकारी प्रवक्ता ने और न ही हर मामले में बयान देने को आतुर भाजपा प्रवक्ताओं ने इस विषय पर मुंह नहीं खोला। अलबत्ता इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी का यह जरूर कहना है कि सोमवार 17 जुलाई को कोर्ट का ऑर्डर मिलने के बाद उसका अध्ययन किया जाएगा और उसके बाद ही आगे के कदम को लेकर निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल अभी तक स्थिति साफ नहीं है कि सरकार का इसमें अगला रुख क्या होगा।