Unemployment News In Hindi : कोरोनाकाल में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने गंवाईं ज्यादा नौकरियां
Unemployment News In Hindi : भारत में महिलाओं का रोजगार में कुल 10 प्रतिशत ही भागीदारी है। लेकिन पिछले एक साल (मार्च 2020-21) के दौरान 23 फीसदी महिलाओं को अपनी नौकरी गंवानी पड़ीं।
Unemployment News In Hindi जनज्वार। देश में बेराजगारी (Unemployement) का आंकड़ा जारी करने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) द्वारा जारी कंज्यूमर पिरामिड हाउसहोल्ड सर्वे (CPHS) के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 का रोजगार पर बुरी तरह असर पड़ा है। पुरुषों- महिलाओं को अपनी नौकरी से हाथ धाना पड़ा है। लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान जहां शहरी क्षेत्र की महिलाओं के घरेलू कामकाज दो से तीन गुना बढ़ गए वहीं ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी तादाद में पुरुषों के पलायन से गांव की महिलाओं का काम भी प्रभावित हुआ है। ये बातें मुख्य अर्थशास्त्री सोना मित्रा ने अंग्रेजी अखबार द हिंदू को बतायी हैं।
सीएमआईई (CMIE) द्वारा जारी आंकड़ों का हवाला देते हुए सोना मित्रा (Sona Mitra) ने कहा कि मार्च 2020 से मार्च 2021 के दौरान 6.3 मिलियन (6.3 करोड़) नौकरियां खत्म हुईं, यानि करीब 1.5% प्रतिशत रोजगार में गिरावट हुई। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान बेरोजगारी के मामले में शहरी इलाकों में रहने वाले पुरुष सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। वहीं मार्च 2020-21 के बीच लगभग सभी तिमाहियों में महिलाओं का प्रदर्शन भी खराब रहा।
भारत में महिलाओं का रोजगार में कुल 10 प्रतिशत ही भागीदारी है। लेकिन पिछले एक साल (मार्च 2020-21) के दौरान 23 फीसदी महिलाओं को अपनी नौकरी गंवानी पड़ीं। सीएमआईई के आंकड़े बताते हैं कि कोरोना (Covid 19) की पहली लहर के दौरान महिलाओं में बेरोजगारी का स्तर बेहद निराशाजनक रहा। शहरी महिलाओं की आबादी का कुल 3 प्रतिशत ही रोजगार में भागीदार होता है, पर इन इलाकों में इनके बेरोजगार होने का दर 39 फीसदी है।
शहरी क्षेत्र में महिलाओं के रोजगार में तेजी से होती गिरावट को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में सोना मित्रा बताती हैं कि आमतौर पर देखा जाता है कि महिलाएं टूरिज्म, सौंदर्य, हॉस्पिटैलिटी और वेलनेस जैसे रोजगार के क्षेत्रों में ज्यादा योगदान देती हैं। इस तरह के कार्य सेक्टर किसी भी आपदा में बेहद आसानी से और ज्यादा प्रभावित होते हैं। साथ ही इन क्षेत्रों में काम कर रहीं महिलाओं के पास कार्य कुशलता, अनुभव और बाजार में मजबूत नेटवर्क नहीं होता, जिसके कारण वे विपरीत परिस्थितियों में लंबे वक्त तक बाजार में नहीं टिक पातीं। इसके अलावा महिलाओं में बेरोजगारी दर के बढ़ने का प्रमुख कारण ये भी रहा कि कोरोना के वक्त पूरा परिवार घर पर होता था और सबके खान-पान और अन्य घरेलू जिम्मेदारी भी महिलाओं के सिर पर आ गईं, जिसके कारण उन्हें वैतनिक कामों को छोड़ना पड़ा।
अर्थशास्त्री आगे बताती हैं कि आर्थिक संकट (Economic Crisis) के समय श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ जाती है, वहीं दूसरी ओर ऐसे समय में उपलब्ध रोजगार में कम भुगतान के साथ कार्यक्षेत्र पर खराब कामकाजी परिस्थितियों में इजाफा होता है। कोरोना काल में देखा गया कि शहरी क्षेत्र से एक बड़ी संख्या में पुरुषों का पलायन ग्रामीण क्षेत्रों की तरफ हुआ। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र की कामकाजी महिलाओं के लिए भी रोजगार में मुश्किलें पैदा हो गईं।
उदाहरण के तौर पर मनरेगा योजना को लिया सकता है, जिसमें ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी श्रम बल में अधिक होती है। लेकिन, कोरोना की पहली लहर के दौरान जिस तरह से पुरुष जनसंख्या का पलायन गांवो की तरफ हुआ, उससे महिलाओं का रोजगार छिन गया। सीएमआई के वेबसाइट पर जारी आंकड़ों में यह साफ देखा जा सकता है कि कुल व्यक्ति-दिन के अनुपात में साल 2018-19 में यह महिला व्यक्ति-दिन में 54.6% रहा और 2019-20 में 54.9% था, लेकिन चालू वित्तीय वर्ष में अबतक यह 52.7% है, जो पिछले दो साल की तुलना में कम है।
सीएमआईई के आंकड़ों से ये भी पता चलता है कि कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन के कारण मार्च 2020 में औसत घरेलू आय में 9.2% और अप्रैल 2020 में 27.9% की गिरावट आई। वहीं, पीएलएफएस (Periodic Labour Force Survey) के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल-जून 2020 में नियमित वेतन/वेतनभोगी श्रमिकों की वास्तविक आय में 7.6% की गिरावट हुई। इसलिए, जब पहले लॉकडाउन के बाद रोजगार के अवसर खुले तो उसी नौकरी के लिए मार्च 2020 से पहले की तुलना में कम वेतन का भुगतान किया गया।
कोविड (COVID-19) के दौरान महिलाओं के लिए उभरे रोजगार संकट को सरकार किन उपायों से दूर कर सकती है, इस सवाल के जवाब में अर्थशास्त्री सोना मित्रा कहती हैं कि महिलाओं को घर से बाहर काम करना जारी रखने के लिए जरूरी है कि सभी क्षेत्रों में छोटे बच्चों के देखभाल के लिए सुविधाएं उपलब्ध हों। इसके अलावा सरकार को उन क्षेत्रों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए जिनमें सब्सिडी या टैक्स ब्रेक के माध्यम से अधिक महिलाएं काम करती हैं। साथ ही, सरकार द्वारा घरेलू कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी पर एक कानून बनाने और महिला निर्माण श्रमिकों को उनके अधिकारों की रक्षा के लिए पंजीकृत करने की भी आवश्यकता है।