आजाद भारत के इतिहास में बेरोजगारी पर होगा सबसे बड़ा आंदोलन, मोदीराज में Unemployment बन चुका है राष्ट्रीय आपदा
मोदी सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार का वायदा करती रहती है और रोजगार मेला जैसे आडम्बरपूर्ण इवेंट आयोजित करती है, पर सच्चाई यह है कि सरकारी नौकरियां लगातार खत्म की जा रही हैं, 8 साल में महज 7.22 लाख नौकरियां दे सकी....
जयपुर। सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान राजस्थान द्वारा चल रहे जन हक धरने में आज 11 जुलाई को महात्मा गांधी नरेगा, शहरी रोजगार गारंटी योजना एवं देश में बढ़ती बेरोजगारी पर बातचीत हुई।
धरने में अपनी बात रखते हुए 'युवा हल्ला बोल' संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुपम शहीद स्मारक पर धरने में शामिल हुए और उपस्थित लोगों को बेरोजगारी पर आंदोलन की रूपरेखा के बारे में बताया और राजस्थान में होने वाले आंदोलन से जुड़ने की अपील की। उन्हें देश में बढ़ रही बेरोजगारी पर मोदी सरकार को घेरते हुए कहा कि जब मोदी सरकार आई थी तो उन्होंने 2 करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात कही थी और आज स्थिति पहले से भी बदतर हो चुकी है।
अनुपम ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी परीक्षा पर चर्चा करते हैं पर कभी पेपर लीक पर चर्चा नहीं करते। आज देशभर के युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी के कारण हताशा का माहौल है और इस निराशा को उम्मीद में बदलने के लिए ही संयुक्त युवा मोर्चा की शुरुआत हुई है। देशभर के 113 संगठनों ने मिलकर के संयुक्त युवा मोर्चा के बैनर तले बेरोजगारी के खिलाफ लड़ने का फैसला लिया है। बेरोजगारी अब राष्ट्रीय आपदा का रूप ले चुकी है। आजाद भारत के इतिहास का सबसे बड़ा आंदोलन बेरोजगारी पर होने वाला है। आंदोलन की रूपरेखा सामने रखते हुए अनुपम ने बताया कि शनिवार 15 जुलाई को राजधानी दिल्ली में संयुक्त युवा मोर्चा का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है।
अनुपम ने विस्तार से बताते हुए कहा कि वह सरकार जो 2 करोड़ रोजगार हर साल देने के वायदे के साथ आई थी, उसने 45 साल का बेरोजगारी का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार का वायदा करती रहती है और रोजगार मेला जैसे आडम्बरपूर्ण इवेंट आयोजित करती है, पर सच्चाई यह है कि सरकारी नौकरियां लगातार खत्म की जा रही हैं। विडंबना है कि जो सरकार 8 साल में महज 7.22 लाख नौकरियां दे सकी, वह अब अगले 1 साल में 10 लाख सरकारी नौकरियों का वायदा कर रही है। ऐसे वायदे अतीत में भी जुमले से अधिक नहीं साबित हुए।
इस गहराते अंधेरे से निकलने का रास्ता है उम्मीद। हमारे देश के युवाओं को सरकार से यह 'भरोसा' चाहिए कि उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा। यह भरोसा है 'भारत रोजगार संहिता', जिसके लिए हमें सामूहिक रूप से लड़ना होगा। जनसमुदाय के बीच बदलाव की यह उम्मीद पैदा करने के लिए व्यापकतम सम्भव एकता के साथ आज जनान्दोलन की जरूरत है। "भ-रो-सा" को केंद्रित कर व्यापक एकता के लिए साझा संकल्प के साथ संयुक्त प्रयास की जरूरत है।
प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए निखिल डे ने कहा कि हम लंबे समय से जवाबदेही कानून के लिए संघर्ष कर रहे हैं। तीन बार बजट में घोषणा करने के बाद भी कानून राज्य सरकार लेकर नहीं आई है। लेकिन हम ये संघर्ष करते रहेंगे।
सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता कविता श्रीवास्तव ने कहा कि जब नौकरियों की बात करते हैं, सबसे पहले महिला की नौकरी कहीं से जाती हैं और नौकरी में सबसे बाद में महिलाओं का नंबर आता है। इसलिए आज हम महिलाओं को भी रोजगार के लिए बराबर लड़ाई लड़नी होगी।
धरने में अलवर जिले की रामगढ़ पंचायत समिति से आई सीमा ने कहा कि महात्मा गांधी नरेगा कानून होने के बाद हमें आज भी काम नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि ये हम गरीब और वंचितों के साथ क्यों होता है सरकारें कानून की पालना क्यों नहीं कराती हैं।
अलवर जिले से आई मीनू ने कहा कि ये कानून लोगों ने लड़कर लिया और बहुत अच्छा कानून बना लेकिन सरकार में बैठे लोग इसे इसकी मूल भावना के अनुसार लागू नहीं कर रहे हैं।
शहरी रोजगार गारंटी अपनी बात रखते हुए गिरधारीपुरा कच्ची बस्ती से आई सुशीला ने कहा कि ये योजना बना दी लेकिन हमें काम ही नहीं मिलता है और इसलिए हमारी मांग है कि शहरी रोजगार गारंटी की कानून बनाया जाए जिससे हम अधिकारियों से जिम्मेदार बनाया जा सके।
धरने में निम्न संकल्प हुए पारित
1- 'रोजगार का अधिकार' एक कानूनी गारंटी के बतौर, 21-60 आयुवर्ग के प्रत्येक वयस्क के लिए उसके आवास से 50 किमी के अंदर बेसिक न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करते हुए।
a- विभिन्न भौगोलिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में अधिक से अधिक औद्योगिक क्लस्टर पुनर्जीवित करते हुए तथा नया खड़ा करते हुए।
b- ऊपरी 1% अति-धनिक तबकों पर संपत्ति कर तथा उत्तराधिकार कर लगा कर रोजगार गारंटी के लिए वित्तीय उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है।
2- सार्वजनिक क्षेत्र में सभी खाली जगहों को निष्पक्ष और समयबद्ध ढंग से भरा जाए।
a- एक 'मॉडल एग्जाम कोड' लागू करते हुए 9 महीने के अंदर हर भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए।
b- भर्ती प्रक्रिया में पेपर लीक, विलम्ब और अनियमितताओं के मामले में जवाबदेही तय की जाए।
3- स्थायी प्रकृति के कामों में व्याप्त ठेका प्रथा का उन्मूलन किया जाए।
a- युवा-विरोधी अग्निपथ योजना निरस्त की जाए तथा सेना व अर्धसैनिक बलों में सभी पदों के लिए फिर से नियमित भर्तियां शुरू की जाए।
b- श्रमिकों, गिग मजदूरों के शोषण पर रोक लगाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं और नियमों का उल्लंघन करने वाली एजेंसियों तथा उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
4- 'मोडानीकरण' अर्थात "घाटे के राष्ट्रीयकरण तथा मुनाफे के निजीकरण" की नीति पर रोक लगाई जाए, जिसने सामाजिक न्याय पर प्रतिकूल असर डाला है तथा असमानता और बेरोज़गारी को चरम पर पहुँचा दिया है।
a- ऐसी नीतियां जो आम नागरिकों को समुचित स्वास्थ्य सेवाएं तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में बाधक हैं, उन पर रोक लगे।
b- रेलवे और बैंक जैसे अतिमहत्वपूर्ण क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, इन्हें स्वायत्त बनाया जाना चाहिए और निजी क्षेत्र को नहीं बेचा जाना चाहिए।