हाईकोर्ट ने माना विधानसभा कर्मचारियों की बर्खास्तगी को ठीक, एकल पीठ के आदेश पर लगी रोक-बैकडोर से हुई नियुक्तियों का मामला

Uttarakhand Bharti Scam : वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में पूरे प्रकरण की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था, इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इन नियुक्तियों को स्पीकर की ओर रद्द कर दिया गया था....

Update: 2022-11-24 13:00 GMT

सचिवालय भर्ती घोटाले की तपिश कुर्सी पर पहुंचते ही सक्रिय हुए CM धामी, विधानसभा अध्यक्ष को दिया नियमविरुद्ध नियुक्तियां निरस्त करने का आदेश

Uttarakhand Bharti Scam : उत्तराखंड विधानसभा में चर्चित बैकडोर से नियुक्ति पाए विधानसभा और सचिवालय के 196 बर्खास्त कर्मचारियों के मामले में बर्खास्त कर्मचारियों को हाईकोर्ट ने आज बृहस्पतिवार 24 नवंबर को एकल पीठ का निर्णय खारिज करते हुए झटका दे दिया। उच्च न्यायालय ने विधानसभा और और सचिवालय से इन कर्मचारियों की बर्खास्तगी को जायज ठहराते हुए विधानसभा अध्यक्ष की कार्यवाही को क्लीन चिट दे दी है। हाई कोर्ट ने उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय से बर्खास्त कर्मचारियों को एकलपीठ के बहाल किए जाने के आदेश को चुनौती देती विधान सभा की ओर से दायर विशेष अपीलों पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय दिया।

गौरतलब है कि उत्तराखंड विधानसभा व सचिवालय में रिश्तेदारों व चहेतों को मानकों को दरकिनार करते हुए नियुक्तियां दे दी गई थी। यूकेएसएसएससीएस घोटाला सामने आने के बाद विधानसभाओं में गुपचुप हुई इन भर्तियों को लेकर प्रदेश के युवा आंदोलित थे। मामला तूल पकड़ते देख वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष ने इस मामले में पूरे प्रकरण की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इन नियुक्तियों को स्पीकर की ओर रद्द कर दिया गया था। स्पीकर के इस फैसले के खिलाफ बर्खास्त हुए कर्मचारी मामले को उत्तराखंड उच्च न्यायालय में ले गए थे।

विधानसभा से बर्खास्त बबिता भंडारी, भूपेंद्र सिंह बिष्ठ व कुलदीप सिंह व 102 अन्य ने एकलपीठ के समक्ष बर्खास्तगी आदेश को चुनौती देते हुए अपनी याचिकाओं में कहा गया था कि विधान सभा अध्यक्ष ने लोकहित को देखते हुए उनकी सेवाएं 27, 28, 29 सितम्बर को समाप्त कर दी है। कर्मचारियों का कहना था कि उनको बर्खास्त करते समय अध्यक्ष ने संविधान के अनुच्छेद 14 का पूर्ण रूप से उल्लंघन किया है।

स्पीकर ने 2016 से 2021 तक के कर्मचारियों को ही बर्खास्त किया है, जबकि ऐसी ही नियुक्तियां विधान सभा सचिवालय में 2000 से 2015 के बीच भी हुई हैं, जिनको नियमित भी किया जा चुका है। यह नियम तो सब पर एक समान लागू होना था। उन्हें ही बर्खास्त क्यों किया गया। 15 अक्टूबर को एकल पीठ ने विधानसभा अध्यक्ष के 27, 28, व 29 सितंबर के आदेश पर रोक लगाते हुए सभी की दोबारा विधानसभा में नियुक्ति कर दी थी। इन कर्मचारियों से एक शपथपत्र मंगा गया था जिसे इन्होंने जमा कर दिया था।

हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद भी सरकार की ओर से इन बर्खास्त कर्मचारियों को पुनर्नियुक्ति नहीं दी गई थी। विधानसभा अध्यक्ष ने इसके लिए कानूनी पहलुओं को देखने की बात की थी। बाद में इस मामले को उच्च न्यायालय की डबल बेंच में ले जाते हुए एकल पीठ के निर्णय को चुनौती दी गई। जिस पर सुनवाई के दौरान बृहस्पतिवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को निरस्त कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि बर्खास्तगी के आदेश को स्टे नहीं किया जा सकता। विधान सभा सचिवालय की तरफ से कहा गया कि इनकी नियुक्ति कामचलाऊ व्यवस्था के लिए की गई थी। शर्तों के मुताबिक इनकी सेवाएं कभी भी बिना नोटिस व बिना कारण के समाप्त की जा सकती हैं। इनकी नियुक्तियां विधान सभा सेवा नियमावली के विरुद्ध की गई थी।

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