ग्राउंड रिपोर्ट : पेट की आग बुझाने के लिए भीख मांगने को मजबूर बेघर महिलायें, कहती हैं महिला दिवस सिर्फ बड़े लोगों के चोंचले
किसी तरह अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करती इन महिलाओं को नहीं पता क्या होता है महिला दिवस, पूछने पर कहती हैं, का फायदा महिला—फहिला दिवस से, हम तो रोज भीख मांगकर जिंदगी काट रहे हैं, महिला वहिला दिवस सब बड़े-बड़े लोगों के चोंचले हैं...
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार, कानपुर। देश भर में आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। मोदी सहित सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ के अलावा देशभर के तमाम नेताओं ने शोसल मीडिया पर महिलाओं के नाम संदेश से सबकुछ पाट दिया है। इन लोगों के संदेश मात्र से ही देश में महिलाएं खुशहाल हो गई हैं।
टीवी और अखबारों में महिला सशक्तिकरण और नामी गिरामी महिलाओं व उनकी सफलता के गड़े-उखड़े झण्डे दिखाए बताए जा रहे हैं। बावजूद इसके इसी देश में ऐसी भी महिलाएं हैं जिनके सिर पर छत होना तो दूर की बात है, उन्हें दो वक्त की रोटी भी बमुश्किल जुटती है।
टीवी अखबारों की फील गुड दुनिया से अलग जनज्वार ने आज के दिन भी ऐसी कई महिलाओं से बात की, जो मंदिरों के बाहर भीख मांग रहीं हैं। हाइवे के नीचे सालों साल से पड़ी महिलाएं किस देश की हैं। इसका जवाब शायद ही कोई सांसद, विधायक या फिर मंत्री मिनिस्टर न दे सकता है और न देना ही चाहेगा।
कानपुर के बर्रा बाईपास पुलिस चौकी के सामने ठीक हाइवे के नीचे रहने वाली एक महिला हमें ठीक-ठीक अपना नाम भी नहीं बता पा रही थी। दीपावली में खाए जाने वाले गट्टे खिलौनों की पोटली लिए वह हंसती हुई खाए जा रही थी। अगल बगल कुछ पोटलियां और कुछ सूखी लकड़ियां रखे हुए एक बुजुर्ग महिला एक पतीले में कुछ पका रही थी। हमारे पूछने पर बताया कि इसमें चावल पक रहा है। हमसे बोली खाओगे, हमने कहा माताजी आप खाओ।
हम आगे चले तो हाईवे के दूसरे पुल के नीचे दोनो तरफ दो महिलाएं बेतरतीब बिस्तर बिछाए मिलीं। एक महिला के साथ छोटा बच्चा भी था, जो उपने पिता की गोद में लेटकर अपलक हमें देखे जा रहा था। उन महिलाओं से हमने आज महिला दिवस होने का मतलब पूछा तो उन्होने कहा कि हमें इसकी जानकारी नहीं है।
उन दोनों महिलाओं में से एक रजनी कहती है, वह पिछले दो महीने से यहाँ रह रही है। अकबरपुर से यहां किसी काम की तलाश में आई थी, कोई काम नहीं मिला तो कूड़ा-कबाड़ बिनकर खाना खर्चा चला रही है। हमने उसकी रोजाना की कमाई पूछी तो उसने कहा मिल जाते हैं दो-ढ़ाई सौ रुपये रोज। रजनी का पति भी दिन में कबाड़ इत्यादि इक्टठा करता है। एक बच्चा और दो प्राणी उतने में पल जा रहे हैं।
दूसरी महिला कुसुम हाइवे के बीचोंबीच बने पुल के नीचे पिछले दो सालों से रह रही है। वह फतेहपुर की मूलनिवासी है। उसका एक बेटा है जो मजदूरी करता है। कुसुम का पति कुछ साल पहले भगवान को प्यारा हो गया, तब से कुसुम बेटे के साथ सड़कों पर जिंदगी बिता रही है। कुसुम भी यहां कोई काम-धाम की तलाश में आई थी, लेकिन आज तक काम की तलाश पूरी नहीं हो पाई। कहीं कमरा ले तो किराया देने के लिए उसके पास इतना पैसा नहीं है। कुसुम कहती है कि इतनी कमाई नहीं है कि कहीं कमरा लेकर रह सकें। दो वक्त की रोटी चल जाए इतना ही बहुत है। बेटा कमाने वाला अकेले है, वही हमें पाल-खिला रहा अब सिर पर छत देखें या पेट।
इन दोनों ही महिलाओं से बात करते हुए हमें सरकार की तमाम योजनाएं जो महिलाओं के लिए चलाई जा रही हैं, उनकी याद हो आई। पूछा तो जवाब वही था जो हमें पहले से ही पता था, कि आज तक सरकारी नाम की कोई चीज उन तक पहुँची ही नहीं।
रजनी कहती है, साहब ये बताओ हमारे पास राशन कार्ड, आधार कार्ड वगैरह तो है नहीं। इतनी बार प्रयास किया, लेकिन किसी ने बनाया ही नहीं। कोई योजना आए भी तो मिले कैसे। हमने कहा कागज नहीं हैं तो सरकार निकाल भी सकती है, जिस पर कुसुम ने कहा कि निकाल देगी तो जहाँ भगवान ले जाएगा वहां जायेंगे या जो किस्मत में होगा उससे कम ज्यादा तो आखिर मिलने से रहा।
इसी पुल के दूसरी तरफ एक प्राचीन शिव मंदिर है, जिसके सामने लगभग दर्जनो की संख्या में बुजुर्ग महिलाएं भीख मांग रहीं थीं। हमने उनसे पूछा कि आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, उनमें से एक ने कहा यो क्या होता है। हमने तफ्सील से बताया तो महिला बोली 'का फायदा महिला-फहिला दिवस से। हम तो रोज भीख मांगकर जिंदगी काट रहे हैं। महिला वहिला दिवस सब बड़े-बड़े लोगों के चोंचले हैं। हमारे घूमते ही फिर सभी महिलाएं मांगने में मशरूफ हो गईं।
कानपुर साउथ एसपी कार्यालय के सामने बने छोटे से मंदिर के बाहर फूल बेंच रही गुलाब देवी को महिला दिवस का मतलब पता था। गुलाब देवी हमसे कहती है कि वह 5 साल से यहाँ फूल बेंचने का काम कर रही है। उसके पति एक प्राईवेट फैक्ट्री में काम करते हैं। गुलाब देवी की तीन बेटियां हैं। हमने उनकी कमाई पूछी तो गुलाब बताती हैं 'भईया का कमाई, कुछो नहीं है। 20-30 रूपिया मिल मिला जात हैं। कुछ बहुत फूल की पुड़िया बिक जाती हैं। बमुश्किल 100 रूपये से जादा की कहां आमदनी है।' तो ऐसे में तीन-तीन बेटियां पालना कैसे हो पाता है। गुलाब कहती हैं 'भईया कुछ नमा पूछो बड़ी मराही है, बिटियन की शादी भी करनी है। बड़ी तंगी का जीवन है।' सरकार से कुछ मिलने के सवाल पर गुलाब कहती हैं 'आज दिन तक कसम है जो एक रुपया सरकार कि किसी भी योजना से मिला हो।'
गजब की विडम्बना है हमारे देश में। झक्क सफेद कपड़ों में भूरभुराते चेहरों वाले गणमान्य नेता जी लोग बंद शीशों की कारों में सर्र से निकल जाते हैं। वोट लेने के समय बड़े-बड़े हवाई किले बांधकर मंत्री, संत्री, मिन्स्टर बनकर पुस्तों दर पुस्तों खाते उड़ाते रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ उन्हें वोट देकर जिताने वाली जनता अभागी बनकर खुद को ठगा महसूसती रहती है, क्योंकि यही उनकी नियती है।