योगी सरकार यूपी की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर बनाने के नाम पर थोपने जा रही काम के 12 घंटे कानून, ट्रेड यूनियनों ने जताया विरोध

योगी सरकार द्वारा प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर बनाने के नाम पर काम के घंटे 12 करने का लाया कानून अवैधानिक है। यह कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 5 का उल्लंघन है....

Update: 2024-08-10 04:35 GMT

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लखनऊ। भारत छोड़ो आंदोलन दिवस के अवसर पर 9 अगस्त को उत्तर प्रदेश की सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र ट्रेड यूनियन फेडरेशन ने जिलाधिकारी कार्यालय पर प्रदर्शन कर राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन सौंपा। प्रदर्शन में कॉर्पोरेट की सेवा में लगी हुई योगी सरकार द्वारा काम के घंटे 12 करने के कानून को विधानमंडल से पारित करने का विरोध किया गया।

राष्ट्रपति के नाम संबोधित ज्ञापन में उनसे अनुरोध किया गया कि वह आधुनिक गुलामी को शुरू करने वाले कारखाना (उत्तर प्रदेश संशोधन) विधेयक 2024 को अनुमति न प्रदान करें। ज्ञापन में कहा गया कि योगी सरकार द्वारा प्रदेश की अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर बनाने के नाम पर काम के घंटे 12 करने का लाया कानून अवैधानिक है। यह कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 5 का उल्लंघन है।

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यह धारा स्पष्ट कहती है कि देश में आपातकालीन स्थिति में ही कोई भी प्रदेश सरकार केंद्र सरकार के कारखाना अधिनियम में संशोधन कर सकती है। सच्चाई यह है कि अभी देश में कोई भी आपातकाल नहीं लगा हुआ है। ज्ञापन में कहा गया कि केंद्र की मोदी सरकार भी लेबर कोडों के जरिए काम के घंटे 12 करने पर आमादा है। देश के कई राज्यों में तो इसे कर दिया गया है और कर्नाटक जैसे राज्यों में आईटी सेक्टर में 14 घंटे काम करने का आदेश जारी किया गया है। काम के घंटों में की जा रही है यह वृद्धि मजदूरों को काम करने में ही असक्षम बना देगी और इसका उत्पादन पर बेहद बुरा असर होगा। यही नहीं इससे बेरोजगारी में बड़ा इजाफा होगा।

ज्ञापन में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में हालत बहुत बुरी है न्यूनतम मजदूरी कानून के हिसाब से उत्तर प्रदेश में न्यूनतम मजदूरी का वेज रिवीजन 2019 में हो जाना चाहिए था जिसे आज तक नहीं किया गया। परिणामत: इस भीषण महंगाई में बेहद कम वेतन में मजदूरों के लिए अपना परिवार चलाना कठिन होता जा रहा है। ज्ञापन में कहा गया कि उत्तर प्रदेश में असंगठित मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है।

ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ से ज्यादा मज़दूरों के बीमा, पेंशन, आवास, पुत्री विवाह अनुदान और मुफ्त शिक्षा की मांग को अनसुना कर दिया गया है। सरकार ने चुनाव में वादा किया था कि आंगनबाड़ी, आशा, मिड डे मिल रसोईयों को सम्मानजनक मानदेय दिया जाएगा लेकिन आज सरकार इसे करने को तैयार नहीं है। हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद रिटायर्ड आंगनबाड़ियों को ग्रेच्युटी नहीं दी जा रही है और मिड डे मील रसोइयों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है।

घरेलू कामगारों के लिए केंद्रीय कानून बनाने और पुरानी पेंशन को बहाल करने पर भी सरकार तैयार नहीं है। ज्ञापन में भारत के हर नागरिक के सम्मानजनक जीवन को सुनिश्चित करने, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की गारंटी करने, सरकारी विभागों में खाली पड़े पदों को तत्काल भरने और संसाधन जुटाने के लिए सुपर रिच की संपत्ति पर समुचित टैक्स लगाने की मांग को भी उठाया गया।

कार्यक्रम में एटक के प्रदेश महामंत्री चंद्रशेखर, एचएमएस के प्रदेश महामंत्री उमाशंकर मिश्रा, सीटू के राज्य कमेटी सदस्य राहुल मिश्रा, इंटक के दिलीप श्रीवास्तव, यू. पी. वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर, सेवा की अध्यक्ष सीता बहन, एचएमएस के अविनाश पांडेय, स्कीम वर्कर्स से बबिता, यूपीएमएसआर से आनंद शर्मा, कुली यूनियन के राम सुरेश यादव, पीयूष मिश्रा, समाजसेवी मोहम्मद नईम, जल निगम से हरेश कुमार, चालक यूनियन से रमेश कश्यप, निर्माण यूनियन के नौमीलाल, नगर निगम से बाबू मुकेश, भगत सिंह छात्र मोर्चा की आकांक्षा, मोहम्मद मोईन, नागरिक समाज से एडवोकेट विरेन्द्र त्रिपाठी समेत सैकड़ों लोग शामिल रहे।

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