लेखक उदय प्रकाश ने खुद पर चर्चा कराने का किया नया जुगाड़, राम मंदिर के चंदे की पर्ची शेयर कर आये बहस के केंद्र में

हिंदी साहित्य के लेखक उदय प्रकाश पिछली बार 4 साल पहले पुरस्कार वापसी के बाद चर्चा में आये थे, लेकिन उसके बाद से हाशिये पर चल रहे इस लेखक ने विवादों का नया पासा फेंका है जिसके बाद फिर से एक बार वह चर्चा में हैं...

Update: 2021-02-04 15:44 GMT

जनज्वार। कहते हैं बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ, और उदय प्रकाश ने बस उसी का जुगाड़ किया है जिसके बाद से वह फिर से मीडिया की सुर्खियां बनने की आस में हैं। उन्हें उम्मीद होगी कि जल्दी ही उनके राम मंदिर चंदा देने वाले प्रकरण पर अखबारों में लेख लिखे जाएंगे और साहित्यकारों में बहसें होंगी।

पीली छतरी फेम वरिष्ठ साहित्यकार उदय प्रकाश कहे जाने वाले उदय प्रकाश आज दिन से चर्चा में हैं और चर्चा का कारण है उनका राम मंदिर के लिए दिया गया चंदा। चंदे की जानकारी उन्होंने खुद अपने फेसबुक वाॅल पर शेयर की है, जिसके बाद वह लगातार ट्रोल हो रहे हैं।

लेखक बिरादरी राम मंदिर के लिए दिये गये चंदे पर तरह-तरह की टिप्पणियां कर रही है। कोई इसे लेखक की मौत कह रहा है तो कोई उदय प्रकाश को संघी की छवि से नवाज रहा है।

लेखक मसूद अख्तर कहते हैं, 'गोरखपुर में योगी द्वारा पुरस्कार संयोग नहीं था। हां, पुरस्कार वापस कर छवि पर आवरण डालने का प्रयास अब फिर अनावृत हो गई...'

दीपक घई ने हिंदी लेखक मैनेजर पांडेय की पूजा करते हुए फोटो शेयर कर लिखा है, 'कुछ इमेज तोड़ने में भी अपना अलग मजा है...'


लेखिका सुशीला पुरी कहती हैं, 'अपने विचार अपनी जगह पर सलामत... बस, और क्या! लेकिन रसीद में गिरि जी ने आपके नाम के आगे 'प्रताप' काट दिया... और सिंह जोड़ दिया, यह खासा दिलचस्प है...'

युवा लेखक अनुराग अनंत लिखते हैं, 'उदय सदैव उदय नहीं होता वह अस्त भी होता है। यह दौर आंखों से पर्दा हटने का दौर है। मैं भीतर से इस नतीज़े पर पहुंच रहा हूँ कि कोई भी व्यक्ति सेलिब्रिटी नहीं। कोई हीरो नहीं। कोई आदर्श नहीं। सब बस हैं। जैसे होना चाहते हैं वैसे हैं। जैसे आप इस समय नृत्य करना चाहते हैं और आप कर रहे हैं।'

शादाब आनंद लिखते हैं, 'हिंदी साहित्य का बड़ा वर्ग अंदर से हमेशा साम्प्रदायिक रहा है, हम जिसे प्रगतिशील धड़ा समझते हैं उनमें भी ऐसे लोग भरे पड़े हैं। शर्मनाक।

विनय शाह कहते हैं, 'पिछले वर्षों में कुछ हुआ हो न हुआ हो, लेकिन भारत देश समाज की दुर्दशा के वास्तविक कारण न केवल समझ में आ रहे हैं बल्कि दिखाई भी देने लगे हैं... अपने लेखन और जीवन प्रवाह के प्रति ईमानदारी ही असली चीज है बाकी तो सब मोह माया है।'

संजीव दुबे ने कहा है, 'स्व शशिभूषण द्विवेदी की असामयिक मृत्यु पल आपकी पोस्ट के बाद यह पोस्ट भी काफी हिट होगी। पिछली पोस्ट में कैमरे के माॅडेल ;कीमतद्ध की तुलना में यह दक्षिणा बहुत कम है।'

संजीव गौतम लिखते हैं, 'बड़े बड़े नाम भी हकीकत में ऐसे ही छोटे निकलते हैं। पहले भी आप अपने विचारों का मुरब्बा बना चुके हैं। कोई हैरत नहीं आदरणीय...'

विजेंद्र सोनी कहते हैं, 'थोड़ा सा पाने के चक्कर में बहुत कुछ खो दिया, वैसे भी उदय प्रकाश के आगे सिंह लगाना इस समय उनके अपने इलाके की फौरी जरूरत है।'

अरविंद अरुण ने लिखा है, 'ऐसा करके आपने हम जैसों को बहुत निराश किया है। आपने मान लिया है कि बाबरी मस्जिद गिराना सही था। अत्यंत दुखद। अब आखिर हमलोग किन लोगों पर भरोसा करें! विचार कुछ, व्यवहार कुछ!'

पीयूष बबेले लिखते हैं, 'आप क्या समझते हैं कि चंदा देने के बाद आपको सार्वजनिक कार्यक्रमों में अपने गले में पड़ी तुलसी की माला दिखा कर यह साबित नहीं करना पड़ेगा कि आप हिंदू हैं...'

चंद्र भूषण ने लिखा है, 'अखलाक की हत्या के बाद आपकी पुरस्कार वापसी पर जो लोग आपका सिर उतार लेने की बात कर रहे थे, उनमें भी ज्यादातर आपके परिचित और सुह्रद ही थे। गांव में लोगों को मना करना मुश्किल होता है लेकिन उन्हें गांव में ही किसी बेहतर सामूहिक काम के लिए राजी करके आप नई लकीर खींच सकते थे। किस स्थिति में आपको यह राशि देनी पड़ी, नहीं जानता। लेकिन इस फोटो से राजनीतिक चंदेबाजी अभियान को बल मिलेगा। दुखद, भाई उदय प्रकाश।'

भूपेंदर चौधरी कहते हैं, 'प्रगतिशील व्यक्ति में जब गिरावट शुरू होती है तो वह सीधा राममंदिर जा कर रुकता है। एक और खेत रहे।'

डीएन यादव ने लिखा है, 'हिंदी के शानदार साहित्यकार उदय प्रकाश जी की यह दान लीला कुछ जँची नहीं। यह उदय प्रकाश जी का निजी मामला भले हो, लेकिन थोड़ी निराशा हुई।

अब्बास पठान ने लिखा है, 'इसी बिना रीढ़ के साहित्यकार वर्ग पर अक्सर मैं लानत भेजता रहता हूँ। क्या आपकी कलम में ये पूछने की हिम्मत है कि इससे पहले किया गया अरबों रुपये का चन्दा किधर है और ऐसी कौनसी इमारत का नक्शा जारी कर दिया गया है जिसकी लागत 5000 करोड़ आने वाली है...'

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