हे पुरुष मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो कौन हो तुम, मां-बहन-बेटी-पत्नी के रक्षक या भक्षक !

हे पुरुष अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो तुम इंसान क्यों नहीं बन पाते हिंसक और अत्याचारी मर्द क्यों बने रहते हो....

Update: 2024-08-30 08:11 GMT

चर्चित रंगचिंतक मंजुल भारद्वाज की कविता 'हे पुरुष !'

हे पुरुष

मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

तुम कौन हो?

तुम्हारे पास क्या है?

आत्म बल

शारीरिक बल

वैचारिक शक्ति ?

या सांप की तरह

बहन, बेटियों की पुश्तैनी जायदाद पर

कब्ज़ा करके फुंकार रहे हो!

हे पुरुष

मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

कौन हो तुम ?

मां-बहन-बेटी-पत्नी के

रक्षक या भक्षक !

मां को बचपन से गाली

लात खाते देखते देखते

तिरस्कार सहते हुए

तुमने देखा है...

बाप की ज्यादतियों को

सहते हुए तुमने देखा है

क्या तुमने मां की रक्षा की ?

उसके ठीक उल्ट तुम बाप की तरह बन गए

तुमने वही अपनी पत्नी के साथ करना शुरू किया

तुम अपने बाप की तरह

अपनी पत्नी के साथ अत्याचार करने लगे

तुम क्या हो पत्नी के साथी

रक्षक , मालिक या भक्षक !

हे मर्द

अपनी मूंछों को ताव देने से पहले

सोचो तुम कौन हो?

बहन के रक्षक या भक्षक?

बहन को तुम बिना अकल की समझते हो

उसको कैद में रखना

उस पर निगरानी रखना

वो किसी पुरुष से बात न करे

कहीं अपनी मर्ज़ी से आ जा ना सके

ऐसे बिना आधार की रेंगती हुई

अमर बेल बनाकर तुम उसे

किसी बरगद के गले में लटकाकर

भाई होने का

बाप होने का फ़र्ज़ निभाते हो

यानी एक व्यक्ति की

उसके व्यक्तित्व की हत्या कर

उसके शरीर की रक्षा करते हो

क्यों ?

पर यह रक्षा तुम कर पाते हो ?

हर साल रक्षाबंधन का पाखंड करने वालों

क्या तुम बहनों की रक्षा कर पाते हो

अगर कर पाते तो

देश में हर रोज 87 बलात्कार नहीं होते

यह तो लिखाए जाते हैं

जो लिखवाए नहीं जाते

उनका क्या ?

अगर आज हर औरत शिकायत कर दे

तो 99 फ़ीसदी पुरुष जेल में होंगे

हालात यह हो जाएगी की

सारी पुलिस और अदालत

जेल में होगी !

हे पुरुष

मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

बहन-बेटियों की शादी के लिए

क्यों गिड़गिड़ाते हो ?

क्यों दहेज देते हो ?

क्यों लड़के वालों की गालियां खाते हो

बहन की बेइज्जती करवाते हो

इसके उल्ट उसे पढ़ा लिखा कर

स्वतंत्र नागरिक बनने में मदद /क्यों नहीं बनाते ?

हे पुरुष

मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

संविधान ने सबको समान अधिकार दिए हैं

अब जात पात,धर्म की बेड़ियों से बाहर निकलो

संविधान सम्मत देश बनाओ !

हे मर्द

मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

तुम महिला को संपत्ति क्यों समझते हो?

क्योंकि तुम पितृसत्तात्मक व्यवस्था के गुलाम हो

तुम्हें पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाया गया है

औरत सिर्फ़ एक संपत्ति है तुम्हारी

तुम्हारे वंश को आगे बढ़ाने

और उसका पालन करने वाली

गुलाम है वो

औरत का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है

अपना वजूद नहीं है

वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मर्द की गुलाम है!

यही तुम्हारी संस्कृति है

यही तुम्हारे संस्कार हैं

यही तुम्हारे शास्त्र तुम्हें सिखाते हैं

अग्नि परीक्षा हमेशा महिला देगी

मर्द हमेशा सच्चा होगा

मनुस्मृति हो या रामायण ..

हर समय एक औरत की रक्षा

एक पुरुष करेगा !

क्यों ?

हे मर्द

अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

क्यों तुम्हारे लिए एक औरत

दो स्तन

दो नितंब

एक गर्भाशय

एक योनि के सिवाय कुछ नहीं है!

क्यों वो एक स्वतंत्र व्यक्ति नहीं है?

हे मर्द

अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

मां को किस मुंह से पूजते हो

जब महिला का शरीर तुम्हारे लिए

भोग्या के सिवाय कुछ नहीं !

हे पुरुष

अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

उस राखी का क्या मान है

जब दूसरे की बहन, बेटी का तुम बलात्कार करते हो ?

हे मर्द

अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

तुम्हारे पाखंडों ने

जायदाद की हवस ने

तुम्हें संस्कारी नहीं

अत्याचारी बना दिया

रक्षक नहीं भक्षक बना डाला

तुम इंसान नहीं दरिंदे हो गए

इंसान का शरीर लिए

अपनी मां,बहन,बेटियों का

शरीर नोंचने वाले भेड़िए हो गए !

हे पुरुष

अपनी मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो

तुम इंसान क्यों नहीं बन पाते

हिंसक और अत्याचारी मर्द क्यों बने रहते हो ?

हे पुरुष

मूंछ प्राकृतिक हैं

तो प्रेम प्राकृतिक है

आओ प्रेम का सबक लें

किसी को कमतर समझना

किसी की रक्षा का ठेका लेने की बजाए

उसे अपनी रक्षा करने के लिए सक्षम बनाएं!

मूंछ हैं इसलिए हम ताकतवर है के भ्रम से बाहर निकलें

प्रकृति ने हर इंसान को शक्ति दी है

उस शक्ति के रूप अलग हैं

आओ विविधता का सम्मान करें

महिला कहां जायेगी / आयेगी

किसके साथ रहेगी

किसके बच्चे को जन्मेगी या नहीं जन्मेगी

यह महिला का निर्णय और अधिकार है

उसका संपत्ति पर अपना अधिकार है

यह संवैधानिक और मौलिक अधिकार हैं

आओ संविधान और प्रकृति का सम्मान करें

आओ समता मूलक समाज बनाएं

आओ मर्द नहीं इंसान बने !

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