AFSPA को पूर्वोत्तर से क्यों खत्म नहीं कर पाई कांग्रेस, PM मोदी ऐसा करने का कैसे दिखा पा रहे साहस
AFSPA : मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों ने लंबे समय से अफस्पा के तहत सुरक्षा कर्मियों द्वारा नागरिकों पर कथित रूप से की गई ज्यादतियों और अत्याचारों को उजागर किया है, इसे स्वतंत्रता के बाद से भारत में सबसे कठोर कानूनों में से एक कहा है....
दिनकर कुमार की रिपोर्ट
AFSPA : भारत के उत्तर पूर्व (North East India) से सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम 1958 या अफस्पा को आंशिक रूप से हटाने के लगभग एक महीने बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 28 अप्रैल को कहा कि इस क्षेत्र से इसे पूरी तरह से हटाने के प्रयास जारी हैं क्योंकि पिछले आठ वर्षों में कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है।
असल में पूर्वोत्तर राज्यों में जो भी दल भाजपा के साथ सरकार चला रहे हैं, वे नगालैंड (Nagaland) में दिसंबर में हुए नरसंहार के बाद एक सुर में अफस्पा हटाने की मांग कर रहे थे और उनको संतुष्ट करना मोदी सरकार की मजबूरी है। यह समझना नादानी की बात होगी कि भाजपा का हृदय परिवर्तन हो गया है या लोकतंत्र (Demorcracy) को लेकर उसके भीतर आदर का भाव पैदा हो गया है। वैसे भी भाजपा (BJP) ने पुलिस स्टेट बनाने के लिए कड़े कानून बनाए हैं। यानी अफस्पा को हटाकर भी दमन का सिलसिला कायम रह सकता है।
अफस्पा (AFSPA) उग्रवाद विरोधी अभियानों में शामिल सुरक्षा बलों को व्यापक शक्तियों की गारंटी देता है। इसके तीन संस्करण हैं - अफस्पा (असम और मणिपुर), 1958; अफस्पा (पंजाब और चंडीगढ़), 1983; और अफस्पा (जम्मू और कश्मीर), 1990।
यह अधिनियम केंद्र को निर्दिष्ट क्षेत्रों में नागरिक सहायता के लिए सशस्त्र बल भेजने का अधिकार देता है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों (Human Rights Activists And Legal Experts) ने लंबे समय से अफस्पा के तहत सुरक्षा कर्मियों द्वारा नागरिकों पर कथित रूप से की गई ज्यादतियों और अत्याचारों को उजागर किया है, इसे स्वतंत्रता के बाद से भारत में सबसे कठोर कानूनों में से एक कहा है। उन्होंने यह भी मांग जारी रखी है कि इस कानून को जल्द ही निरस्त किया जाए।
केंद्र की नई अधिसूचना के अनुसार, 1 अप्रैल से अगले छह महीनों तक, अफस्पा असम, नागालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के कुछ हिस्सों में लागू रहेगा। त्रिपुरा और मेघालय ने क्रमशः 2015 और 2018 में अफस्पा को हटा दिया था।
गृह मंत्रालय (एमएचए) ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि पूर्वोत्तर राज्यों में पिछले आठ वर्षों में उग्रवाद की घटनाओं में 80 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि सुरक्षा बलों की हताहतों की संख्या में 75 प्रतिशत और नागरिकों की मौत में 99 प्रतिशत की कमी आई है।
भाजपा, जो असम, मणिपुर और अरुणाचल में शासन करती है और नागालैंड में सत्तारूढ़ गठबंधन की सहयोगी है, ने नागालैंड के ओटिंग (सोम जिले) में 4 दिसंबर की घटना को गंभीरता से लिया है, जिसमें भारतीय सेना की विशेष बल इकाई ने कथित तौर पर छह कोयला खनिकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। सेना ने जांच के लिए एक कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की स्थापना की, जिसे एक असफल उग्रवाद विरोधी अभियान के रूप में देखा गया था।
सात अन्य नागरिक और एक जवान उसी स्थान पर घंटों के भीतर मारे गए, जब ग्रामीणों ने जवाबी कार्रवाई की। इस घटना ने उत्तर पूर्व में बड़े पैमाने पर आक्रोश फैलाया और नागरिक समाज संगठनों और स्थानीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अफस्पा को पूरी तरह से वापस लेने की मांग की।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का यह भी मानना है कि अफस्पा का निरंतर प्रवर्तन नगा शांति प्रक्रिया में बाधा बन सकता है, जिसे मोदी सरकार ने अत्यधिक महत्व दिया है।
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