भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हुई गरतांग गली में फिर शुरू हुआ रोमांच का सफर, पूरा हुआ पुनर्निर्माण कार्य

उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले की करीब छः दशक से बन्द गरतांग गली हमेशा से दुनिया भर के सैलानियों के बीच रोमांच की वजह से खास स्थान रखती है। भारत-तिब्बत के व्यापारिक रिश्तों का गवाह यह ऐतिहासिक गलियारा गंगोत्री धाम से दस किमी. पहले भैरोघाटी से जाड़गंगा के किनारे से होकर निकलता है....

Update: 2021-08-20 15:52 GMT

(समुद्रतल से ग्यारह हजार मीटर खड़ी सपाट चट्टानों से लगा लकड़ी का डेढ़ सौ मीटर लंबा सीढ़ीनुमा यह रास्ता इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है)

उत्तरकाशी, जनज्वार ब्यूरो। भारत-चीन युद्ध के दौरान सुरक्षा के लिहाज से बन्द हुई भारत-तिब्बत के बीच व्यापार की रोमांचकारी अहम कड़ी पर रोमांच के शौकीन अब अपना सफर कर सकेंगे। उत्तराखण्ड में साहसिक पर्यटन की संभावनाएं तलाश रही राज्य सरकार ने गरतांग गली की लोकप्रियता को देखते हुए इसकी सीढ़ियों का पुनर्निर्माण कराते हुए इसे अब आम सैलानियों के लिए खोलने का फैसला लिया है। 136 मीटर लम्बे और पौने दो मीटर चौड़े इस सीढ़ीदार ट्रेक पर एक बार में सिर्फ दस लोग ही जा सकेंगे।

उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी जिले की करीब छः दशक से बन्द गरतांग गली हमेशा से दुनिया भर के सैलानियों के बीच रोमांच की वजह से खास स्थान रखती है। भारत-तिब्बत के व्यापारिक रिश्तों का गवाह यह ऐतिहासिक गलियारा गंगोत्री धाम से दस किमी. पहले भैरोघाटी से जाड़गंगा के किनारे से होकर निकलता है।

समुद्रतल से ग्यारह हजार मीटर खड़ी सपाट चट्टानों से लगा लकड़ी का डेढ़ सौ मीटर लंबा सीढ़ीनुमा यह रास्ता इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है। इंसान की ऐसी कारीगिरी और हिम्मत की मिसाल देश के किसी और हिस्से में देखने को नहीं मिलेगी। पेशावर से आये पठानों ने इस पल का निर्माण डेढ़ सौ साल पहले किया था।

आज़ादी से पहले तिब्बत के साथ व्यापार के लिए उत्तरकाशी जिले में नेलांग वैली होते हुए बनाये गए तिब्बत ट्रैक के लिए भैरोघाटी के नज़दीक खड़ी चट्टान में लोहे की रॉड गाड़कर उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया गया था। जिस पर ऊन, चमड़े से बने कपड़े, नमक तिब्बत से उत्तरकाशी के बाड़ाहाट पहुंचाया जाता था।

1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद चीन सीमा से लगी इस नेलांग घाटी को पर्यटकों के लिए बन्द कर दिया गया था। इस घाटी में जाडुंग नाम का एक गांव आबाद था जो युद्ध की विभीषिका के चलते पूरी तरह से उजड़ गया था। यहां जाड़ जनजाति के लोग साल के छः महीने यहां रहते थे।

युद्ध के बाद की शांतिवार्ताओं के दौरान जाड़ जनजाति के इन लोगों ने भारत और चीन के विकल्प में से भारत में रहना चुना। जिसके बाद इन लोगों को तब हरसिल के पास बसाया गया था। इनकी वर्तमान पीढ़ी के लोग बागोरी में निवास करते हैं। युद्ध काल के बाद से ही बन्द और भारतीय सीमा की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए और जाडुंग जैसी अन्तिम चौकियों वाले इस क्षेत्र में स्थानीय ग्रामीणों को एक निश्चित प्रक्रिया पूरी करने के बाद साल में सिर्फ एक बार पूजा-अर्चना के लिए यहां आने की इजाज़त मिलती थी। अभी छः साल पहले ही केन्द्र सरकार की ओर से पर्यटकों को नेलांग घाटी तक जाने की इजाज़त मिली थी।

उत्तराखण्ड में साहसिक पर्यटन की संभावनाएं तलाश रही राज्य सरकार ने गरतांग गली की लोकप्रियता को देखते हुए इसकी सीढ़ियों का पुनर्निर्माण कराते हुए इसे अब आम सैलानियों के लिए खोलने का फैसला लिया है। 136 मीटर लम्बे और पौने दो मीटर चौड़े इस सीढ़ीदार ट्रेक पर एक बार में सिर्फ दस लोग ही जा सकेंगे।

पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर का कहना है कि इस ऐतिहासिक धरोहर के संरक्षण के लिए नेलांग घाटी में स्थित ऐतिहासिक गरतांग गली की सीढ़ियों का 64 लाख रुपये की लागत से पुनर्निर्माण कार्य पूरा करने के बाद पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। गरतांग गली के खुलने के बाद स्थानीय लोगों और साहसिक पर्यटन से जुड़े लोगों को फायदा मिल रहा है। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक मुख्य केंद्र बन रहा है।

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