Godi Media: स्क्रीनशॉट ली गई इन दो तस्वीरों को देखकर बताइये कि इसे मीडिया का दोगलापन नहीं तो और क्या कहा जाए?

पीएम की डुबकी को लेकर मीडिया लहालोट रहा। वहीं दूसरी तरफ चंडीगढ़ में नमाजियों को नमाज पढ़ने से जब रोका जा रहा था तब इसी मीडिया के मुँह में दही जम गया था...;

Update: 2021-12-26 11:05 GMT
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(सत्ता और विपक्ष को अलग नजर से देखती भारतीय मीडिया)

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Godi Media: देश में कोरोना के नए वैरिएंट और उसके खतरे को देखते हुए कड़ाई तथा लॉकडाउन जैसी संभावनाएं बनने लगीं हैं। लेकिन इस बीच देश की टीवी और बड़े अखबार समूह भी कुछ कम गेम प्लान नहीं कर रहे हैं। उपर की तस्वीर को देखकर मीडिया की क्रोनोलॉजी को समझा जा सकता है। कि, मीडिया किस तरह से खबरों को परोसने में अलग अलग नजरिया अख्तियार करती है। 

खबर की लीड में लगे एबीपी न्यूज के दो स्क्रीनशॉट हैं, जिसे यहां जोड़कर दिखाया गया है। एक ट्वीट 25 दिसंबर का है जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा टैबलेट और मोबाईल बांटने के लिए जुटती भीड़ का रेला दिखाकर प्रशंसा की जा रही है। इसमें ओमीक्रॉन जैसा खतरा गायब कर दिया गया है। बगल में दूसरी तस्वीर भी है जो विपक्ष यानी कांग्रेस की मैराथन यात्रा को दिखाया गया है, इसमें ओमीक्रॉन का खतरा घुस गया है। साथ ही कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ने जैसी बात भी कही गई।


अब दूसरे स्क्रीनशॉट द्वारा ली गई यह तस्वीर देखिए। इसमें पहली हैडिंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कानपुर में प्रस्तावित 28 दिसंबर की रैली के बारे में जिक्र किया गया है। इस खबर का शीर्षक है जो दैनिक जागरण का है। 'पीएम मोदी की रैली में 2 लाख की भीड़ जुटाने का लक्ष्य, मंच पर मौजूद होंगे 40 नेता।' उसके नीचे ओमीक्रॉन का संकट दिखाते हुए दूसरी हैडिंग है जिसमें प्रदेश की योगी सरकार द्वारा रात 11 से सुबह 5 बजे तक रात्री कर्फ्यू का जिक्र किया गया है।   

कोरोना और कोरोनाकाल के दौरान लगे लॉकडाउन में पूरे देश ने भारतीय जनता पार्टी का मिसमैनेजमेंट आंखों से देखा है। प्रधानमंत्री काशी विश्वनाथ में जाकर गंगा में डुबकी लगाते हैं। दूरदर्शन के 55 कैमरे पीएम की अलग-अलग ऐंगल से फुटेज दिखाते रहे। पीएम की डुबकी को लेकर मीडिया लहालोट रहा। वहीं दूसरी तरफ चंडीगढ़ में नमाजियों को नमाज पढ़ने से जब रोका जा रहा था तब इसी मीडिया के मुँह में दही जम गया था। 

देश में मंहगाई, बेरोजगारी आसमान पर है जिसपर मीडिया कुछ बोलने की बजाय मुंह सिलकर बैठा है। क्यों..क्योंकि मुंह खोलने पर करोड़ों का विज्ञापन बंद किया जा सकता है। चैनल और अखबार का धंधा मंदा पड़ सकता है। दुकान सजाए बैठे मीडिया घराने सड़क पर आ सकते हैं। जिसके चलते सरकार की जी हजूरी वाली मजबूरी है। लेकिन यह सब देश की जनता को समझना होगा..अभी भी वक्त है। अन्यथा जब चिड़िया खेत पूरा चुग जाए जब जागे तो फायदा नहीं रहेगा।  

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