कुसहा त्रासदी के पीड़ित पूछ रहे सवाल- कब बनेगा 12 साल पहले ध्वस्त हुआ पुल
स्थानीय लोग सांसद और विधायक से भी कई बार पुल एवं सड़क निर्माण के लिए गुहार लगा चुके हैं, पर लोगों को आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला, वहीं अधिकारी भी व्यवस्था का हवाला दे लोगों की परेशानी को नजरअंदाज करते रहे हैं....
जनज्वार ब्यूरो, पटना। एक तरफ तो सरकार विकास कार्यों के दावे करते नहीं थकती, वहीं दूसरी तरफ एक छोटे से पुल के अभाव में हजारों की आबादी वर्षों से परेशान है। राज्य के मधेपुरा जिला के उदाकिशुनगंज प्रखंड मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर स्थित बीड़ी रणपाल सहित कई गांवों की हजारों की आबादी कुशहा त्रासदी का दर्द झेल रही है। ये ग्रामीण जनप्रतिनिधियों एवं सरकार के उदासीन रवैये के कारण अब मायूस हो चुके हैं।
स्थानीय लोग सांसद और विधायक से भी कई बार पुल एवं सड़क निर्माण के लिए गुहार लगा चुके हैं, पर लोगों को आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला। व्यवस्था का हवाला दे लोगों की परेशानी को नजरअंदाज करते रहे हैं।
सरपंच ज्योति शर्मा यादव ने कहा 'साल1991 में पुल का निर्माण पूर्व सांसद शरद यादव के द्वारा कराया गया था। उस वक्त गाँव के लोग काफी खुश हुए थे। लोगों की उम्मीद जगी थी कि अब सुचारू रूप से आवागमन हो पायेगा। समय बीतता गया और कुशहा त्रासदी की नज़र पुल के साथ साथ गांव के लोगों को भी लग गई। लगभग 18 वर्षों के बाद 2008 ई के कुशहा त्रासदी ने सब उजाड़ दिया।'
ग्रामीणों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कुसहा त्रासदी की बर्बादी के पुनर्निर्माण का वादा किया था। नदी के इस पार और उस पार कई गांव बसे हैं। इन गांवों के बीच सिर्फ नदी का फासला है, पर ग्रामीणों को लगता है कि इन दो भागों के बीच जैसे सैकड़ों किलोमीटर की दूरी हो।
कमलेश्वरी साह कहते हैं 'त्रासदी तो सब बहा कर चला गया लेकिन एक गहरा जख्म भी देकर चला गया। ऐसा जख्म जिसने वर्षों से लोगों के जेहन को झकझोर कर रखा है। गाँव के उस पार वालों को इस पार रह रहे रिश्तेदारों से मिलना भी दूभर हो गया है। शादी या किसी के दैहिक लीला समाप्त होने पर ग्रामीण एक दूसरे के यहां जाने को तरस कर रह जाते हैं।'
मालूम हो कि उदाकिशुनगंज प्रखंड क्षेत्र के बीड़ी के वार्ड नं 1 और वार्ड नं 2 के बीच पुल था, लेकिन ग्रामीणों की किस्मत कहें या कुदरत का खेल, अब लगभग 100 -200 मीटर की यह दूरी हज़ारों किलोमीटर की दूरी जैसी लगती है।
लड्डू राम कहते हैं 'कभी कई गाँवो को जोड़ने वाला यह पुल 2008 के कुशहा त्रासदी का शिकार हुआ। इस पार के गांव उदाकिशुनगंज, बीड़ी, अठगामा, झोली बासा,पकड़िया एवं उस पार के गाँव बीड़ी बाजार, देबैल, परिहारपुर, मोहमडीह, लष्मीपुर, लालचंद, मंजौरा, जोतेली आदि गाँवों का पुल के टूट जाने से संपर्क पूर्ण रूप से भंग हो गया है। 2008 के बाद इन गांवों के लोग एक दूसरे से मिल भी नहीं पाते हैं।'
कुसहा त्रासदी को याद कर ग्रामीण आज भी सिहर जाते हैं। उन्हें उस वक्त की एक-एक बात चलचित्र की तरह याद है।
विजय मंडल कहते हैं 'राहगीर खेतों और पगडंडी के सहारे आवागमन करने को मजबूर हैं। पुल के टूट जाने से लगभग 5 हज़ार से 10 हज़ार लोगों की आवाजाही बाधित है। लगभग 12 वर्षों से लोग इस तकलीफ को झेल रहे हैं।'
ग्रामीणों ने बताया कि पुल के बगल में पहले विकास भवन हुआ करता जिसमे क्षेत्र के लोगों का नियमित आना जाना हुआ करता था। कुशहा ने उसको भी अपने अंदर समा लिया। ग्रामीणों के लिए त्रासदी का समय भयावह था।
स्थानीय जयकांत पंचायत के सरपंच ज्योति शर्मा यादव, प्रमोद यादव कुमोद यादव, संदीप कुमार, सूरज नारायण यादव, हरिलाल यादव, वीरेंद्र यादव, धर्मवीर कुमार, हरिबल्लभ यादव, विजय मंडल, गोपाल पासवान, संजीव साह, कमलेश्वरी साह, कारे ऋषि देव, छठु ऋषि देव, नागो मेहरा ,गोखरू मेहरा ,लड्डू राम ,विलास राम, राजेश पासवान ,गणेश पासवान ,जमीर राम, हरिलाल यादव, धीरेंद्र यादव, धर्मवीर, कुमोद कुमार, हरिबल्लभ यादव, विजय मंडल, गोपाल पासवान, राजीव साह, कमलेश्वरी साह, कारेऋषिदेव, छठ्ठू ऋषिदेव, नागो मेहरा, जमहिर खान आदि का कहना है कि आवागमन बहाल होने से बीड़ी रणपाल और आसपास के आधा दर्जन गांव के लोगों को फायदा होगा।
इन लोगों ने कहा कि कुशहा त्रासदी के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पुनर्निर्माण का वायदा किया था, लेकिन मुख्यमंत्री का वायदा अबतक पूरा नहीं हो सका है।
ग्रामीण यह भी कहते हैं कि स्थानीय जनप्रतिनीधियों ने उपेक्षित रखा है, जिस कारण एक सौ से दौ सौ मीटर की खाई हजारों मील की दूरी लग रही है। बात खेत खलिहान जाने की करें या फिर एक दूसरे घर आने जाने करें। इस दूरी के कारण आपस के संबंध में खटास भी आ गई है।