Bihar Politics : लालू के ठिकानों पर CBI छापे से नीतीश क्यों हैं परेशान?

Bihar Politics : रेलवे भर्ती घोटाले को लेकर लालू यादव के ठिकानों पर छापेमारी तो बहाना है। यह मोदी और शाह की ओर से नीतीश कुमार को साफ तौर पर सियासी संदेश है।

Update: 2022-05-20 05:58 GMT

धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण

Bihar Politics : बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और लालू यादव ( lalu Prasad Yadav ) , राबड़ी देवी, मीसा भारती और हेमा यादव के दिल्ली से पटना तक  के 17 ठिकानों पर सीबीआई की छापेमारी ( CBI Raids ) शुक्रवार सुबह से जारी है। स्वाभाविक है लालू परिवार के सामने एक नई मुसीबत आ खड़ी हुई है, लेकिन कोई आप से ये कहे कि ये मुसीबत लालू परिवार की नहीं बल्कि नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) के लिए सियासी संदेश है, आप चुपचाप वहीं रहें, जहां हैं, नहीं तो अच्छा नहीं होगा। आप यही कहेंगे न, भला ये भी कोई तर्क है क्या?

ये तो लालू यादव व उनके परिवार की परेशानी पर नमक छिड़कने जैसा है, पर ऐसा नहीं है, जनाब। रेलवे भर्ती घोटाले को लेकर लालू यादव के ठिकानों पर छापेमारी तो बहाना है। यह मोदी ( PM narendra Modi ) और शाह ( Amit shah ) की ओर से नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) को साफ तौर पर सियासी संदेश है। आप लालू, तेजस्वी और तेज प्रताप से नजदीकी बढ़ाकर ज्यादा फड़फड़ाएं नहीं। ऐसा करेंगे तो आप भी भुगतेंगे।

दरअसल, नीतीश कुमार ( Nitish kumar ) के खिलााफ भ्रष्टाचार के मामले पेंडिंग हैं। नीतीश के शासनकाल में भी कई ऐसे काम हुए हैं, जो भ्रष्टाचार के दायरे में आते हैं। जांच एजेंसियों को इस बाबत शिकायतें भी मिली हुई हैं। 

ताजा सीबीआई छापे के बाद लालू यादव के करीबी विधायक मुकेश रोशन ने तत्काल अपने बयान के जरिये साफ कर दिया है कि जिस तरीके से नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच में इफ्तार पार्टी के बाद दूरियां कम हुई है और दोनों साथ नजर आते हैं इससे भाजपा परेशान है। जेडीयू और आरजेडी के बीच घटती दूरियां भाजपा के लिए बिहार में सियासी खतरे की तरह है। मुकेश रोशन का कहना है कि भाजपा के इशारे पर ही सीबीआई की छापेमारी चल रही है। रोशन ने कहा कि भाजपा लालू परिवार को परेशान और तंग करने के इरादे से रेड करवा रही है।

आरजेडी विधायक रोशन के इन बातों में दम है। दम इसलिए की नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व के बीच मतभेद चरम पर है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सीएम पद से बेदखल है। दूसरी तरफ भाजपा की दखलंदाजी से परेशान सीएम नीतीश कुमार ने आरजेडी से नजदीकी बढ़ाने का खेल काफी पहले शुरू कर दिया था। इस काम में नीतीश कुमार काफी सफल भी रहे हैं। अपना पक्ष मजबूत करने के लिए उन्होंने आरएलएसपी का जेडीयू में विलय कर उपेंद्र कुशवाहा को अपने साथ कर लिया। हम पार्टी के जीतन राम मांझी उनके साथ हैं।

दूसरी तरफ बिहार से राज्यसभा की पांच सीटों को लेकर भी भाजपा और जेडीयू में मतभेद जारी है। भाजपा जेडीयू से एक सीटें ज्यादा चाहती हैं। इस पर दोनों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है। नीतीश कुमार भाजपा की कमजोरियों को जानते हैं। इसलिए हर बार वो झुकने के बजाय अपनी बात मनवाते हैं। भाजपा की कमजोरी ये है कि वो नीतीश को झटका देकर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। ऐसे में नीतीश आरजेडी के साथ हाथ मिलाकर 2017 वाला ​सियासी ड्रामा दोहरा सकते हैं। ऐसा करने में नीतीश कुमार को माहिर भी माना जाता है। भाजपा इस स्थिति से बचना चाहती है। ऐसा इसलिए कि जेडीयू और आरजेडी के एक साथ आने से बिहार में भाजपा का खेल बिगड़ सकता है।

इस बात ध्यान में रखते हुए भाजपा बिहार में हर कदम फूंक-फूंककर रख रही है। जब भी बिहार एनडीए सरकार के दो बड़े दलों के बीच मतभेद बढ़ता है तो केंद्र को दखल देना पड़ता है। शाह या मोदी एक्टिव हो जाते हैं। होली से पहले जब एक डीएसपी को लेकर विधानसभा स्पीकर सिन्हा और सीएम नीतीश कुमार के बीच खुल्लमखुल्ला तकरार हुआ तो होली से ठीक एक दिन पहले केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय अमित शाह का दूत ​बनकर नीतीश कुमार मिले थे और सबकुछ ठीक हो गया था। उसके बाद जब रमजान के दौरान लालू यादव को जमानत मिली तो इफ्तार के बहाने जेडीयू और आरजेडी के बीच नजदीकी भी बढ़ी। भाजपा ने इसे अपने लिए खतरे की घंटी मान केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीतीश से मिलने के लिए भेजा। उनकी मुलाकात के बाद नीतीश ने ताबड़तोड़ अधिकारियों के तबादले किए। इसमें भाजपा नेताओं की एक भी नहीं चली। यानि मोदी और शाह अपने पक्ष में सियासी माहौल न देखकर तत्काल चुप हो गए।   

वहीं नीतीश कुमार कॉमन सिविल कोड और जातीय जनगणना मामले में पहले की तरह मुखर होकर बोलने से बचने लगे लेकिन मामला यहीं तक सीमित नहीं हैं। नीतीश के लिए भाजपा की ओर से सबसे बड़ा खतरा यह है कि नीतीश के करीबी आईएएस अधिकारियों ने केंद्र सरकार ने मंत्रालय में या पीएमओ में अपने पास बुला लिया है। नीतीश के लिए सबसे गंभीर चिंता का विषय यही है।

इन अधिकारियों में अतीश चन्द्रा बिहार कैडर के अधिकारी हैं और उनकी पत्नी आईपीएस हैं। अतीश चन्द्रा केन्द्र में भी किसी महत्वपूर्ण विभाग में पहले नहीं रहे। इसके बावजूद उन्हें पीएमओ पोस्ट किया गया है। यह पोस्ट ऐसे ही अधिकारी को मिलता है जो पीएम या फिर पीएम का ब्यूरोक्रेसी देखने वाले खासम खास अधिकारी के करीब हो, अतीश चन्द्रा दोनों योग्यता में फिट नहीं बैठते हैं। इसके बावजूद उनकी पोस्टिंग पीएमओ में क्यों हुई, क्योंकि ये नीतीश कुमार के करीबी अधिकारी हैं। नीतीश कुमार नेता पर कम अधिकारियों पर भरोसा ज्यादा करते हैं। चंचल कुमार तीसरे अधिकारी थे जो रेलमंत्री के समय से ही साथ हैं आज कल केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं। मतलब नीतीश के करीबी अधिकारियों केंद्र के पास हैं। 

अब यही अधिकारी ​नीतीश कुमार के लिए विभीषण भी साबित हो सकते हैं। नीतीश कुमार को इसी बात का खतरा है कि भाजपा उनके ​भरोसे के अधिकारियों को ही उनके खिलाफ इस्तेमाल करने में जुटी है। मतलब नीतीश के करीबी अधिकारी मोदी के लिए सियासी हथियार साबित हो सकते हैं। यही वो असल वजह है जिसकी वजह से नीतीश कुमार ज्यादा परेशान दिख रहे हैं। हालांकि, नीतीश कुमार को पता है कि मोदी के लिए नीतीश मजबूरी हैं। बिहार को लेकर मोदी अभी भी सहज नहीं हैं। बस देखना यही है कि इस खेल में कौन किसका किस तरीके से इस्तमाल करता है और इसमें नीतीश माहिर खिलाड़ी है। ये भाजपा की चिंता है। इस चिंता को समाप्त करने के लिए ही भाजपा नेतृत्व ने सीधे जेडीयू को कमजोर करने के बदले लालू फैमिली को परेशान करने का फैसला लिया है। ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।


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