बिहार: संबद्ध कॉलेजों के करोड़ो के घोटाले की साजिश का खुलासा, अब हो सकती है शुरुआती दौर से जांच
रिजल्ट आधारित अनुदान के खेल में करोड़ों रुपये के घोटाले की साजिश सामने आई है, ऐसे में अनुदान की शुरुआती दौर यानी सत्र 2005-08 से ही इसकी जांच की जरूरत महसूस की जाने लगी है...
जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार के विश्वविद्यालयों में वैसे तो गड़बड़ियों, घपलों-घोटालों की खबरें अक्सर सुर्खियां पाती रहती हैं, एक बार फिर बड़े घोटाले की साजिश कतिपय संबद्ध कॉलेजों द्वारा की गई थी, इसका खुलासा राज्य के शिक्षा विभाग द्वारा की गई जांच में सामने आया है। संबद्ध कॉलेज वैसे कॉलेज होते हैं, जो वित्त रहित शिक्षा नीति के तहत खोले गए थे और इनकी अपनी गवर्निंग बॉडी होती है। बाद में सरकार ने रिजल्ट पर आधारित अनुदान देना शुरू किया था।
इसी रिजल्ट आधारित अनुदान के खेल में करोड़ों रुपये के घोटाले की साजिश सामने आई है, हालांकि इस बार तो इस घोटाले का समय रहते खुलासा हो गया है और सरकारी खजाने को चूना लगने से बच गया है। पर सवाल यह उठता है कि क्या पहले भी तो ऐसा नहीं किया गया है और पहले इस तरीके से कहीं सरकारी खजाने को चूना लगाने में ये सफल तो नहीं हो चुके हैं। ऐसे में अनुदान की शुरुआती दौर यानी सत्र 2005-08 से ही इसकी जांच की जरूरत महसूस की जाने लगी है।
राज्य के संबद्ध कॉलेजों में यह साजिश स्नातक कक्षाओं के रिजल्ट के आधार पर मिलने वाली अनुदान राशि के लिए की गयी थी। इसके तहत सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों द्वारा स्नातक कक्षाओं में जितने छात्र-छात्रा पास हुए, उससे कहीं ज्यादा के पास होने के दावे अनुदान के लिए फर्जी तौर पर कर दिए गये।
चौंकाने वाली बात यह है कि संबंधित विश्वविद्यालयों ने भी कॉलेजों के रिजल्ट के दावे की जांच किये बिना ही प्रस्ताव को राज्य के शिक्षा विभाग को भेज दिया। शिक्षा विभाग के उच्च शिक्षा निदेशालय द्वारा विश्वविद्यालयों से भेजे गए इस मांग की रेंडमली जांच की गई तो संबद्ध कॉलेजों द्वारा एक बड़े घोटाले कि कोशिश किए जाने का यह मामला सामने आया।
बिहार में सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों को शैक्षिक सत्र 2005-08 से वहां पढ़ रहे छात्र-छात्राओं के स्नातक रिजल्ट के आधार पर सरकारी अनुदान देने की व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अनुसार फर्स्ट डिवीजन से पास होने पर 8700 रुपये, सेकेंड डिवीजन से पास होने पर 8200 रुपये और थर्ड डिवीजन से पास होने पर 7700 रुपये की प्रति छात्रा अनुदान राशि तय है। चूंकि, स्नातक की पढ़ाई तीनों वर्षों की है, इसलिए अनुदान की राशि भी एक छात्रा पर तीन गुणा हो जाती है।
इसी तरह किसी छात्र के फर्स्ट डिवीजन से पास होने पर 8500 रुपये, सेकेंड डिवीजन से पास होने पर 8000 रुपये और थर्ड डिवीजन से पास होने पर 7500 रुपये की अनुदान राशि दी जाती है। यह राशि भी एक छात्र पर तीन गुणा बढ़ जाती है।
हालांकि यह अनुदान भी वित्तरहित कॉलेजों के शिक्षकों-कर्मियों की लंबी लड़ाई के बाद मिलना शुरू हुआ है। वित्तरहित कॉलेजों के शिक्षकों-कर्मियों ने सड़क और सदन से लेकर कोर्ट तक लड़ाई लड़ी है और जब रिजल्ट आधारित अनुदान मिलना शुरू हुआ तब इसपर भी लगातार घपलों-घोटालों की आंच आ रही है।
अनुदान राशि कॉलेजों को इस शर्त के साथ दी जाती है कि उसका भुगतान विधिवत नियुक्त एवं कार्यरत शिक्षक-कर्मियों को पारिश्रमिक के रूप में किया जायेगा। हालांकि इसके लिए कई क्लॉज लगाए गए हैं। वैसे कई संबद्ध कॉलेजों के संचालकों द्वारा इस राशि के बंदरबांट और इसे हजम कर जाने के भी मामले सामने आ चुके हैं, जो विजिलेंस की जांच के दायरे में हैं और कई मामले कोर्ट में भी हैं।
अनुदान की प्रक्रिया के तहत कॉलेजों द्वारा अपने छात्र-छात्राओं के श्रेणीवार स्नातक परीक्षाफल के आधार पर अनुदान का प्रस्ताव विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा विभाग को सौंपा जाता है। कॉलेजों को अनुदान राशि संबंधित विश्वविद्यालय के माध्यम से ही मिलती है।
तय प्रावधानों के तहत शिक्षक एवं शिक्षकेतर कर्मचारियों को भुगतान के बाद यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट कॉलेजों द्वारा अपने विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा विभाग को सौंपे जाते हैं। विभिन्न विश्वविद्यालयों के तहत वर्तमान में ऐसे सम्बद्ध डिग्री कॉलेजों की संख्या 227 है।
ऐसे कॉलेजों द्वारा वर्तमान में शैक्षणिक सत्र 2009-2012 से 2014-2017 तक के रिजल्ट के आधार पर अनुदान के दावे के प्रस्ताव विश्वविद्यालयों द्वारा शिक्षा विभाग के उच्च शिक्षा निदेशालय को सौंपे गये थे।
एक कॉलेज ने पहले अपने तकरीबन पांच सौ विद्यार्थियों के स्नातक परीक्षा पास होने का दावा किया, लेकिन एक माह बाद ही उक्त कॉलेज द्वारा पास होने वालों की संख्या बढ़ा दी गयी। एक माह में यह संख्या पांच सौ से बढ़ कर 550 पर पहुंच गयी। इसके बाद कॉलेजों द्वारा अनुदान के लिए सौंपे गये रिजल्ट की रैंडम जांच शुरू की गई।
रैंडम जांच में कॉलेजों के रिजल्ट का मिलान उनके संबंधित यूनिवर्सिटी के मूल टैबुलेशन रजिस्टर से किया गया। मूल टैबुलेशन रजिस्टर लेकर यूनिवर्सिटीज के एग्जाम कंट्रोलर एवं अन्य अफसर पहुंचे। 39 कॉलेज रैंडम जांच की जद में आये।
इनमें बीएन मंडल यूनिवर्सिटी, मधेपुरा के 30 कॉलेजों में आठ, मगध यूनिवर्सिटी, बोधगया के 75 में छह, बीआरए बिहार यूनिवर्सिटी, मुजफ्फरपुर के 17 में छह, तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी के 20 में छह, वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी, आरा के 45 में छह एवं ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी, दरभंगा के 25 में सात कॉलेजों की जांच की गई। जांच में खुलासा हुआ कि जितने छात्र-छात्रा पास हैं, उससे अधिक का दावा किया गया है।