बिहार में फर्जी शिक्षिका इस्तीफा देने के बाद भी तीन साल तक उठाती रही वेतन

प्रखंडों में गलत तरीके से नियुक्त शिक्षकों को इस्तीफा देने का निर्देश दिया गया था। शिक्षिका ने इस्तीफा तो दिया पर उसके बाद भी तीन साल वेतन उठाती रही।

Update: 2020-06-17 10:24 GMT
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जनज्वार ब्यूरो पटना। बिहार में नौकरी का फर्जीवाड़ा कोई नई बात नहीं। यहां की नियुक्तियां अक्सर विवादों के घेरे में आ जातीं हैं। आयोगों के माध्यम से की गईं नियुक्तियां भी कोर्ट-कचहरी के फंदे में फंस जातीं हैं। बहालियों में जुगाड़तंत्र वाले हावी हो जाते हैं और वास्तविक अभ्यर्थी ताकते रह जाते हैं। अक्सर ऐसे मामले सामने आते रहते हैं।

ताजा मामला सारण जिला के मशरक प्रखंड का है। मशरक प्रखंड के उत्क्रमित मध्य विद्यालय जजौली की शिक्षिका चंदा कुमारी फर्जी तरीके से नियुक्त हो गईं। बिहार में ऐसे हजारों मामले सामने आने के बाद मामला पटना हाईकोर्ट पहुंच गया। पटना उच्च न्यायालय में CWJC संख्या 15459/2014 दायर हुआ।

उच्च न्यायालय के निर्देश पर राज्य के विजिलेंस विभाग ने पूरे मामले की जांच की। जिलों में कैंप लगाकर काफी समय तक विजिलेंस की टीमों ने शिक्षकों के नियोजन से संबंधित कागजातों की जांच की। कितने शिक्षकों के नियोजन से संबंधित फोल्डर ही गायब पाए गए थे। बहाली के समय नियोजन इकाई पंचायत, जिला परिषद और नगर परिषद को बनाया गया था।

जांच के दौरान कुछ जगहों पर पंचायत सचिव, जिन्हें नियोजन इकाई का सचिव बनाया गया था, वे लापता पाए गए। नियोजन में फर्जीवाड़ा के दोषी पदाधिकारियों और कर्मियों के विरुद्ध बड़ी संख्या में प्राथमिकियां दर्ज हुईं, कई गिरफ्तारियां भी हुईं। गलत तरीके से नियोजित शिक्षकों को उच्च न्यायालय के निर्देश के आलोक में इस्तीफा देना था। जांच के दौरान ही बड़ी संख्या में ऐसे शिक्षकों ने इस्तीफा दे दिया था।

इसी क्रम में उत्क्रमित मध्य विद्यालय, जजौली की शिक्षिका चंदा कुमारी ने भी इस्तीफा दे दिया था। पर आश्चर्यजनक बात यह है कि चंदा कुमारी ने इस्तीफा देने के बावजूद जुलाई 2015 से अक्टूबर 2018 तक खुद को विद्यालय में कार्यरत दिखा दिया। यही नहीं, उसने इस अवधि का वेतन भी उठा लिया।

मामले का खुलासा होने के बाद मशरक के प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी अशोक कुमार सिंह ने अब मशरक थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई है। इसे लेकर मशरक थाने में कांड संख्या 329/20 दर्ज की गई है। प्राथमिकी में यह जानकारी दी गई है कि फर्जी घोषित होने के बाद शिक्षिका चंदा कुमारी ने इस्तीफा दिया था। इस्तीफा देने के बाद भी तत्कालीन प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी और प्रधानाध्यापक से मिलीभगत कर इस्तीफा के बाद के तीन वर्ष की अवधि के वेतन की निकासी कर ली गई है। पुलिस मामले की जांच में लगी है।

अब सवाल उठता है कि राज्य में कहीं ऐसे और भी मामले तो नहीं। चूंकि उस दौर में हजारों की संख्या में ऐसे शिक्षकों ने इस्तीफा दिया था। यह बड़े स्तर पर जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। चंदा कुमारी वाले मामले में भी यह सवाल उठता है कि वर्षो पूर्व इस्तीफा देने के बावजूद क्या इतने दिनों तक शिक्षिका नियमित रूप से स्कूल जाती रही।

क्या उसने स्कूल की हाजिरी पंजी में नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज की है। अगर हां, तो प्रधानाध्यापक या स्कूल के अन्य शिक्षकों ने इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों को क्यों नहीं दी। अगर बिना आए ही वह नियमित रूप से वेतन उठाती रही तो प्रधानाध्यापक और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी इतने लंबे समय तक उसकी उपस्थिति को सत्यापित कैसे करते रहे।

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