इस विश्वविद्यालय में 747 शिक्षकों के भरोसे पढ़ते हैं 3 लाख छात्र, पूर्व सांसद कीर्ति आजाद सरकार पर बरसे
कीर्ति आजाद ने कहा कि यू.जी.सी निजी विश्वविद्यालयों को लाभ पहुंचाने के लिए पिछड़े क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों में शिक्षा विस्तार में लगे दूरस्थ शिक्षा को समाप्त करने का षड्यंत्र रच रही है...
दरभंगा, जनज्वार। बिहार में शिक्षा व्यवस्था की क्या स्थिति है, यह इससे स्पष्ट होता है कि पिछले दो दशक में राज्य के विश्वविद्यालयों में विद्यार्थी तो तीन सौ गुणा बढ़ गए, पर शिक्षकों-कर्मचारियों का एक भी पद नहीं बढ़ा। यह तथ्य आश्चर्यजनक लग सकता है, पर हालत यह है कि राज्य के दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में महज 747 शिक्षकों के भरोसे लगभग 3 लाख विद्यार्थी पढ़ाई कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कीर्ति झा आजाद ने कहा है कि इन सब बातों को देखकर स्प्षष्ट है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में राज्य सरकार सबसे बड़ी बाधक है।
दरभंगा के पूर्व सांसद कीर्ति झा आजाद बुधवार को बिहार सरकार पर जमकर बरसे। उन्होंने कहा कि पी.जी में सेमेस्टर सिस्टम लागू कर दिया गया, जबकि ग्रेजुएशन स्तर पर आज तक लागू नहीं हो पाया। वहीं दिल्ली समेत अन्य राज्यों में यह वर्षों पूर्व लागू हो चुका है।
उन्होंने कहा कि इसका खामियाजा मिथिलांचल के छात्रों को भुगतना पड़ रहा है। यहां की शिक्षा व्यवस्था कथित सुशासन की सरकार के लिए कलंक है। कीर्ति आजाद ने बुधवार को कटहलवाड़ी स्थित अपने आवास पर आयोजित प्रेस वार्ता में उक्त बातें कहीं।
कीर्ति आजाद ने कहा कि विश्वविद्यालय महज एक डिग्री बांटने वाली एक संस्था बनकर रह गई है। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि पद व अहर्ता प्राप्त शिक्षको के बगैर वोकेशनल पाठ्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है। स्नातक स्तर पर सामान्य अध्ययन की पढ़ाई नहीं होती है, फिर भी परीक्षा दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि अंगीभूत कॉलेजों में छात्रों की संख्या में तीन सौ प्रतिशत तक की वृद्धि पिछले दो दशकों में हुई है। लेकिन इस दौरान शिक्षक कर्मचारियों का एक भी पद सृजित नहीं किया गया। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अंगीभूत कॉलेजों में महज 747 शिक्षक और 1043 कर्मचारी कार्यरत है, जबकि लगभग तीन लाख छात्र अध्ययनरत है।
कीर्ति आजाद ने कहा कि यह तो गनीमत है कि छात्र कॉलेज कम संख्या में पहुंच रहे हैं। यदि नामांकित छात्र एक साथ कॉलेज पहुंच जाएंगे तो कई कॉलेजों के परिसर में उन्हें खड़ा रहने का जगह नहीं मिल पाएगा। यह अराजकता राज्य सरकार के लिए एक उदाहरण है।
उन्होंने कहा कि यू.जी.सी निजी विश्वविद्यालयों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से पिछड़े क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों में शिक्षा विस्तार में लगे दूरस्थ शिक्षा को समाप्त करने का षड्यंत्र रच रही है। यदि मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की मान्यता समाप्त हुई, तो इस क्षेत्र में छात्रों का एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा।
आजाद ने राज्य की नीतीश सरकार पर बरसते हुए कहा कि सेवानिवृत्त विश्वविद्यालयो शिक्षकों के नवंबर की पेंशन तक जारी नहीं की गई है। जिससे शिक्षकों में भारी आक्रोश है। सम्बद्ध कॉलेजों के कार्यरत लगभग ढाई हजार शिक्षकों का पिछले आठ वर्षों का अनुदान राज्य सरकार वितरित नहीं कर रही है। कोरोना के इस संकट काल में शिक्षक कर्मचारी त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। यही हाल छात्रों का है।
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय क्षेत्र में परीक्षा पद्धति में समानता नहीं होने से दरभंगा के छात्रों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। हालांकि यह प्रसन्नता की बात है कि लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति रहे एक शिक्षाविद को मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति का दायित्व दिया गया है। इससे यह संभावना बन रही है कि वे अपने अनुभव के सहारे कहीं व्यवस्था को कुछ दुरुस्त कर पाएं।
उन्होंने कहा कि मिथिला विश्वविद्यालय आउटसोर्सिंग से चल रहा है। स्थाई नियुक्ति नहीं होने से कार्य संस्कृति अब समाप्त हो चुकी है। विश्वविद्यालय अराजकता के दौर में पहुंच चुकी है। जिस कारण मिथिला के बुद्धिजीवियों में घोर निराशा है।