नीतीश सरकार के वादों के बीच शुरू हो गया प्रवासी मजदूरों का पलायन, बसों-ट्रेनों से दूसरे प्रदेशों को निकलने लगे मजदूर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि वापस आ रहे इन सभी प्रवासियों को अब हम बिहार में ही काम देंगे। इन्हें दूसरे प्रदेशों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

Update: 2020-06-07 08:23 GMT

जनज्वार ब्यूरो, पटना। अभी कुछ ही दिन पहले की बात है कि बिहार के प्रवासी मजदूर घर वापस आने के लिए हरसंभव जतन कर रहे थे। कुछ हजारों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर रहे थे तो कुछ सायकिल-ठेला और रिक्शा से। श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों से भी लाखों प्रवासी मजदूर बिहार वापस आए लेकिन एक माह बीतते-बीतते ये फिर दूसरे प्रदेशों में जाने को उतावले हो रहे हैं। विगत दो-तीन दिनों में बिहार के कई जिलों से ऐसे मजदूर दूसरे प्रदेशों के लिए निकल चुके हैं। इन मजदूरों का कहना है कि काम नहीं करेंगे तो खाएंगे क्या। बिहार में काम-धंधा तो है नहीं।अब सवाल यह भी उठता है कि जब इतनी जल्दी इन्हें वापस जाना था तो फिर ये आए ही क्यों थे?

ब इन प्रवासी मजदूरों के वापस आने के दौरान इनके दुःख-दर्द और कष्टों की बात सुर्खियां बनने लगीं तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि वापस आ रहे इन सभी प्रवासियों को अब हम बिहार में ही काम देंगे। इन्हें दूसरे प्रदेशों में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बिहार सरकार द्वारा जिलों के डीएम को मनरेगा आदि योजनाओं के माध्यम से इन प्रवासी मजदूरों को काम दिए जाने का निर्देश जारी किया गया है। कुछ जगह इन लोगों को कम पर भी लगाया गया है लेकिन मनरेगा जैसी योजनाएं ग्रामीण इलाकों में गड़बड़ियों का केंद्र बनीं हुईं हैं। लिहाजा इनलोगों को इससे कितना लाभ मिल पाएगा,यह भविष्य के गर्त में है।

लेकिन इतनी जल्दी इन मजदूरों का पलायन यह जरूर दिखाता है कि इन्हें सरकार के वादों-दावों पर भरोसा नहीं है या फिर सरकारी तंत्र की कार्यशैली पर इनका भरोसा नहीं जम रहा।लिहाजा विगत लगभग एक सप्ताह में बिहार के पूर्णिया,सहरसा,मधुबनी, सुपौल,समस्तीपुर आदि जिलों से ट्रेन और बसों द्वारा भारी तादाद में मजदूर दूसरे प्रदेशों में जा चुके हैं। इन मजदूरों का कहना है कि जहां ये काम करते थे, वहां अब फैक्ट्रियां खुल गईं हैं और उन्हें वापस बुलाया जा रहा है।

पूर्णिया में तो शुक्रवार को हरियाणा के एक किसान ने इन्हें वापस ले जाने के लिए बस ही भेज दी। इस बस से जा रहे कन्हरिया, लमरिया तथा सिमलबरी गांवों के इन मजदूरों ने बताया कि सरकार से परमिशन लेकर उन्हें ले जाने के लिए बस भेजी गई है।गांव में काम-धंधा है नहीं। खाली बैठकर क्या करेंगे। बाल-बच्चे भूखे मरने लगेंगे।इसलिए हम तीस-चालीस लोग फिर से कमाने जा रहे हैं। कोरोना से डर भी लग रहा है पर कमाएंगे नहीं तो खाएंगे क्या।

धर शनिवार 6 जून को हरियाणा के एक बिल्डर ने भी पूर्णिया बस भेजकर मजदूरों को बुला लिया है। इस बस से जा रहे मजदूरों ने बताया कि उनकी कंपनी के मालिक ने अब ज्यादा पैसा देने का वादा किया है। पहले 5 सौ से 7 सौ रुपये दिहाड़ी मिलती थी। इस बार 1 हजार प्रतिदिन दिहाड़ी का वादा किया गया है। शनिवार 6 जून को ही मुजफ्फरपुर से सप्तक्रांति एक्सप्रेस से दर्जनों मजदूर दूसरे प्रदेशों को गए।

म कह सकते हैं कि तमाम दावों और वादों के बीच बिहारी प्रवासियों के पलायन की दारुण गाथा एक बार फिर दोहराई जा रही है। सरकार इन मजदूरों को यह भरोसा देने में नाकाम हो रही है कि उन्हें बिहार में ही काम दिया जाएगा। बिहार के गांवों की आर्थिक और सामाजिक संरचना,सरकारी तंत्र की कार्यशैली और सरकारी योजनाओं का वास्तविक लाभुकों तक नहीं पहुंच पाना आदि कारक भी इसके जिम्मेदार माने जा सकते हैं।

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