चुनावों से पहले जब मिथिलांचल में थी नीतीश विरोधी लहर, फिर भी कैसे हार गया महागठबंधन
हालांकि मिथिलांचल में चुनाव पूर्व महागठबंधन की लहर नजर आ रही थी और वह ज्यादातर सीटों पर आगे दिख रहा था, ज्यादातर सीटों पर सामाजिक समीकरण भी उसके पक्ष में दिख रहे थे...
युवा पत्रकार हर्ष झा का विश्लेषण
दरभंगा। हालिया संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव में मिथिलांचल ने महागठबंधन के विजय रथ को रोक दिया। मिथिलांचल क्षेत्र में महागठबंधन को महज तीन सीटें ही मिल सकीं, जिस कारण राज्य में एनडीए की सरकार बन पाई है। 2019 के लोकसभा चुनाव से जो सिलसिला शुरू हुआ, वह विधानसभा चुनावों में भी जारी रहा। चुनावी सभाओं में एनडीए नेताओं के अपेक्षाकृत बड़ी भीड़ जुटाने के बावजूद यहां तेजस्वी यादव का जादू क्यों नहीं चल पाया, इसके कुछ ठोस कारण नजर आते हैं।
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में देश के अन्य हिस्सों की तरह मिथिलांचल में भी एक अलग तरह की लहर थी, पर क्या वह लहर आज भी बरकरार है या तत्कालिक कारण, स्थानीय स्थित-परिस्थिति, टिकट वितरण, सामाजिक समीकरण साधने आदि कारण हैं, आइए इसपर तथ्यों पर आधारित चर्चा करते हैं।
मिथिलांचल के दरभंगा, मधुबनी जिले में सीट बंटवारे में भाजपा को क्रमशः 3 और 5 विधानसभा सीटें मिली थी। इन सभी सीटों पर भाजपा ने अपनी जीत दर्ज की और पार्टी की सफलता का स्ट्राइक रेट शत प्रतिशत रहा। दरभंगा के केवटी और जाले के अलावा मधुबनी जिले के बिस्फी, बेनीपट्टी, राजनगर ,खजौली और झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा ने इस चुनाव में जीत दर्ज की है।
एनडीए ने दरभंगा जिले के 10 सीटों में से 9 सीटों पर जीत दर्ज की है, वहीं मधुबनी जिला के 10 सीटों में से 8 सीटों पर एनडीए ने जीत दर्ज की है। जदयू दो स्थानों पर और वीआईपी एक सीट पर चुनाव हार गई। राजद मधुबनी में 2 और दरभंगा में 1 सीट ही जीत पायी।
मिथिलांचल की इन सीटों ने सत्ता परिवर्तन के आह्वान के साथ चुनावी समर में उतरे महागठबंधन को झटका दिया। कांग्रेस को मिली 5 सीटों में से उसे एक भी सीट पर सफलता हासिल नहीं हो पाई। वहीं सीपीआई भी हरलाखी विधानसभा से पिछड़ गई और यह सीट पुनः जदयू के कब्जे में चली गई।
हालांकि मिथिलांचल में चुनाव पूर्व महागठबंधन की लहर नजर आ रही थी और वह ज्यादातर सीटों पर आगे दिख रहा था। ज्यादातर सीटों पर सामाजिक समीकरण भी उसके पक्ष में दिख रहे थे।
अलीनगर विधानसभा क्षेत्र में ऐन विजयादशमी के दिन एक वर्ग विशेष के व्यक्ति की हुई मौत ने उस सीट समेत आसपास के कई विधानसभा सीटों का समीकरण बदल दिया। वहीं राजद के कई स्थानीय नेताओं ने बेनीपुर ,अलीनगर, केवटी विधानसभा क्षेत्र में भितरघात कर चुनाव परिणाम को बदल दिया।
दरभंगा में लोजपा से एक ही जाति के ब्राह्मण उम्मीदवार समीकरण को प्रभावित करने में विफल साबित हुए। एनडीए के पक्ष में सवर्ण और अति पिछड़ा जातियों के बीच जबरदस्त गोलबंदी देखी गई, जिसका लाभ एनडीए को मिला। वहीं महागठबंधन का सामाजिक समीकरण दरक गया तथा कई सीटों पर उसमें सेंध लग गई और मिथिलांचल में महागठबंधन औंधे मुंह गिर गया।
इस चुनाव में रोजगार के मुद्दे पर महागठबंधन की ओर युवा जरूर आकर्षित हुए थे। राजद के प्रति मिथिलांचल में पहली बार ब्राह्मण मतदाताओं के बीच सहानुभूति नजर आ रही थी। महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव चुनावी भीड़ के मामले में अन्य सभी दलों के नेताओं पर भारी पड़ रहे थे।यद्यपि एनडीए को इस क्षेत्र में व्यापक सफलता मिली।
सबसे चौंकाऊ परिणाम केवटी विधानसभा क्षेत्र का रहा, जहां से पहली बार भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार मुरारी मोहन झा ने राजद के कद्दावर नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी को चुनावी शिकस्त दे सबको सकते में डाल दिया। यहाँ राजद का आधार परक वोट आश्चर्यजनक ढंग से बिदक गया।
'जनज्वार' से बातचीत में अलीनगर सीट से महागठबंधन की ओर से राजद के उम्मीदवार रहे विनोद मिश्र भी इन तथ्यों को स्वीकार करते हैं। विनोद मिश्र इस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे थे।
विनोद मिश्र ने जनज्वार से कहा 'इस चुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित थी। क्षेत्र में महागठबंधन की लहर चल रही थी। 10 लाख नौकरी की घोषणा को लेकर युवा वर्ग काफी उत्साहित था और हमारे नेता तेजस्वी यादव की जबरदस्त क्रेज है। लेकिन चुनाव से पहले विजयादशमी के दिन हुई एक घटना ने काफी प्रभाव डाल दिया और महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ गया। हालांकि मुझे ब्राह्मण वोटरों का काफी समर्थन मिला और मेरे पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार 25 प्रतिशत से ज्यादा ब्राह्मण मतदाताओं ने उन्हें वोट किया है, पर उस एक घटना ने महागठबंधन के समीकरण को काफी प्रभावित कर दिया।'
दरभंगा व मधुबनी जिला का सीमावर्ती जाले, केवटी, विस्फी विधानसभा क्षेत्र मधुबनी संसदीय क्षेत्र अंतर्गत आता है। इन तीनों सीटों से महागठबंधन ने मुस्लिमों उम्मीदवार को उतारा था। जाले विधानसभा क्षेत्र से अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र नेता को उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस ने सबको चौंका दिया, जबकि वे उस विधानसभा क्षेत्र के निवासी नहीं थे। टिकट वितरण में महागठबंधन की अदूरदर्शिता भी चुनाव परिणाम पर भारी पड़ी और भाजपा को उसका लाभ मिला।