लालू की रिहाई व 'लालूवाद' पर बहस तेज, बिहार इकलौता प्रांत जहां RSS के सिर पटकने पर भी नहीं बना BJP का CM

लालू प्रसाद यादव को रिहा करने की मांग तेज हो गयी है। इसके लिए कई पत्रकार भी सोशल मीडिया पर अभियान चला रहे हैं और कह रहे हैं कि जिस तरह जगरनाथ मिश्रा को स्वास्थ्य कारणों से रिहा किया गया था, उसी तरह लालू को किया जाए।

Update: 2021-01-24 06:18 GMT

जनज्वार। राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष व 90 के दशक में सामाजिक न्याय के बड़े चेहरे के रूप में उभरे लालू प्रसाद यादव लंबे समय से बीमार है और पिछले पांच दिनों में उनकी तबीयत ज्यादा खराब हुई है। लालू प्रसाद यादव के पुत्र तेजस्वी यादव की आग्रह पर उन्हें शनिवार रात दिल्ली के कार्डियक विभाग के आइसीयू में भर्ती कराया गया। इस बीच 70 साल की उम्र पार कर चुके लालू प्रसाद को जेल से रिहा करने को लेकर सोशल मीडिया पर अभियान चलाया जा रहा है। इसमें राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा कई पत्रकार भी शामिल हैं।

इसके लिए लोग अंग्रेजी में रिलीज लालू यादव हैशटैग पर ट्वीट कर रहे हैं। इसके साथ ही हिंदी में लालू प्रसाद शब्द भी ट्रेंड कर रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अरफा खानम शेरवानी ने लालू की रिहाई की मांग उठायी है। उन्होंने शनिवार रात ट्विटर पर लिखा - सांप्रदायिक दंगों और आतंकवाद के आरोपी संसद में बैठे हैं और दलितों-पिछड़ों के मसीहा लालू यादव जेल में हैं। ये कैसा इंसाफ है? ये कहां का इंसाफ है? अरफा के इस ट्वीट को 2800 से अधिक लोगों रिट्वीट अपना समर्थन दिया है तो विरोध भी जताया है।

फिल्मकार अशोक पंडित ने अरफा के बातों से असहमति जाहिर करते हुए अधिक तल्ख शब्दों का प्रयोग किया। उन्होंने अरफा के ट्वीट को रिट्वीट करते हुए लिखा: मोहतरमा जी आतंकवादियों का साथ देकर सांप्रदायिक दंगे तो आप जैसे लोग फैलाते हो। अफजल गुरु, कसाब, याकूब मेमन आपके हीरो हैं। लालू प्रसाद यादव जैसे लूटेरे को मसीहा कह कर आप ने अपना परिचय दे दिया।

दरअसल, लालू प्रसाद यादव को रिहा करने का अभियान वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने शुरू किया। वे लगातार इसके लिए ट्वीट कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि अगर स्वास्थ्य के आधार पर बिहार के एक पूर्व सीएम जगरनाथ मिश्रा को जमानत मिल सकती है तो लालू प्रसाद यादव को भी मिलना चाहिए।

दिलीप मंडल ने शनिवार शाम ट्वीट किया कि लालू प्रसाद यादव को रिहा करने के सोशल मीडिया अभियान को बल मिला और बिना किसी आइटी सेल के एक लाख से अधिक ट्वीट किए गए।

मंडल ने लिखा कि आजम खान और लालू यादव दोनों के सामने सिर झुका लेने का रास्ता था, लेकिन फिर न तो आजम आजम होते, न लालू लालू। समझौतापरस्ती हर किसी की फितरत में नहीं होती। कुछ लोगों की रीढ की हड्डी मजबूत होती है।

उन्होंने यह भी लिखा कि आरएसएस की आंखों में आंखें डालकर इतनी कड़वी, लेकिन सच्ची बात करने वाले लालू यादव को प्रणाम, सलाम। लालूवाद की ताकत यहे है कि बिहार देश का अकेला हिंदीभाषी राज्य है, जहां आरएसएस सिर पटकर कर रह गया, लेकिन आज तक बीजेपी का मुख्यमंत्री नहीं बना।


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