ट्विटर पर भोजपुरी वार, पीएम मोदी के भोजपुरी में किए ट्वीट पर राबड़ी ने घेरा
ट्विटर पर भोजपुरी वार, पीएम मोदी के भोजपुरी में किए ट्वीट पर राबड़ी ने घेरारी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मामला अबतक खटाई में है, पर बिहार चुनावों को लेकर नेताओं का भोजपुरी प्रेम फिर जाग गया है।
जनज्वार ब्यूरो, पटना। एक ऐसे समय मे जब भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए भोजपुरी माटी के लोग वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं, नेताओं का भोजपुरी प्रेम फिर जाग गया है। विधानसभा चुनाव के पहले ट्विटर पर भोजपुरी वार शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भोजपुरी में ट्वीट कर रहे हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ट्विटर पर भोजपुरी में ही जबाब दे रहीं हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने 30 जून की रात्रि भोजपुरी में ट्वीट किया, 'ई गरीबजन के सम्मान सुनिश्चित करे वाला बा। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के आगे बढावला से देशभर के करोड़ों लोगन के फायदा होई'।
पीएम मोदी का यह ट्वीट 30 जून को उनके संबोधन को लेकर था, जिसमें उन्होंने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मिलने वाले अनाज का समय बढ़ाने की घोषणा की थी। पर ट्वीट भोजपुरी में था तो लोग सवाल उठा रहे हैं कि भोजपुरी संविधान की आठवीं अनुसूची में कब शामिल होगा।
इस ट्वीट के बाद एक जुलाई की सुबह बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी भोजपुरी ट्वीट वार में कूद पड़ीं। उन्होंने प्रधानमंत्री के ट्वीट को कोट करते हुए उन्हें घेरने की कोशिश की और राज्य सरकार पर हमला किया।
राबड़ी देवी ने ट्वीट किया 'आदरणीय प्रधानमंत्री जी, जून महीना में बिहार में मात्र 35.3 प्रतिशत वितरण भइल बा। अब रउआ बताईं ऐसे गरीब के दु जून रोटी मिली, गरीब लोग के राउर भाषण ना राशन चाहीं'।
जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी के गरीब कल्याण योजना का लाभ बिहार में 35.3 प्रतिशत लोगों को ही मिलने की बात कह राबड़ी देवी बिहार की नीतीश सरकार की नाकामी दिखा रहीं हैं। उनका कहना है कि महज 35.3 प्रतिशत लोगों को ही इसका लाभ मिला है, अर्थात बिहार सरकार इस योजना के सही तरीके से कार्यान्वयन में फेल साबित हुई है।
ट्वीट में राबड़ी देवी ने सीधे सीधे पीएम मोदी पर भी तंज करते हुए करारा निशाना साधा है। ट्वीट में उन्होंने 'गरीब लोग के राउर भाषण ना राशन चाहीं' जैसे वाक्य का प्रयोग कर प्रधानमंत्री के भाषणों पर तंज कसा है कि खाली भाषणों का आम जनता को कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
इन सबके बीच भोजपुरी के लिए संघर्ष करने-सा महसूस कर रहे हैं। इनका कहना है कि हर बार चुनावों के पहले नेताओं का भोजपुरी प्रेम जाग जाता है और चुनाव बीतते ही भोजपुरी को भुला दिया जाता है।
कई मौकों पर क्षेत्र के नवनिर्वाचित सांसदों ने संसद में शपथ ग्रहण के दौरान सांकेतिक रूप से भोजपुरी में शपथ ग्रहण की कोशिश भी की है, पर भोजपुरी को भाषा के रूप में संवैधानिक मान्यता न होने के कारण ऐसा हो न सका था।
भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले संगठन ट्वीट के बाद अब पीएम मोदी को याद दिला रहे हैं कि 2014 और 2019 के पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान जनसभाओं में बीजेपी के कई बड़े नेताओं ने भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता दिलाने का वादा किया था।