बीजेपी-जेडीयू में मंत्री पद को लेकर फंसा पेंच, अब एक महीने के लिए लटक गया मंत्रिमंडल विस्तार का मामला!

बीजेपी अब बिहार बड़े भाई की भूमिका में आना चाहती है और अभी से ही उसकी नजर साल 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव और साल 2025 में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनावों पर है...

Update: 2020-12-19 11:21 GMT

File photo

जनज्वार ब्यूरो/पटना। बिहार में मंत्रिमंडल विस्तार का मामला लटक गया है। नई सरकार के गठन के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित 15 लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली थी। उस वक्त यह संभावना जताई गई थी कि जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार होगा और मंत्रियों की संख्या बढ़ाई जाएगी। हालांकि इस 'जल्द' में कौन सा पेंच फंसा हुआ है, इसके बारे में कई तरह की चर्चाएं राजनीतिक गलियारों में चल रही हैं।

अब एक तरह से तय माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार का मामला 15 जनवरी के बाद ही सिरे चढ़ पाएगा। चर्चा है कि 15 दिसंबर से 'खरमास' शुरू हो गया है और सनातन धर्म में मान्यता है कि 'खरमास' में कोई शुभ काम नहीं किया जाता है।

कथित तौर पर 'हिंदुत्व' की राजनीति करने वाली और बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी भारतीय जनता पार्टी इस 'खरमास' में मंत्रिमंडल विस्तार नहीं करना चाहेगी। हालांकि यह प्रश्न अपनी जगह कायम है कि सरकार गठन के बाद खरमास के पहले के लगभग एक माह तक के समय में मंत्रिमंडल विस्तार क्यों नहीं हुआ।

एनडीए के सूत्रों की मानें तो खरमास के कारण मंत्रिमंडल विस्तार का मामला अब एक माह तक के लिए तो खटाई में चला ही गया है, पर इसमें देरी के पीछे कारण कुछ और ही है। सत्तारूढ़ जेडीयू और बीजेपी के बीच मंत्री पद को लेकर अंदरखाने जबर्दस्त खींचतान चल रहा है।

इस बार के बिहार चुनावों में बीजेपी जहां दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है, वहीं जेडीयू तीसरे नम्बर पर चली गई है। इन चुनावों में बीजेपी को बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनी राष्ट्रीय जनता दल से महज एक सीट कम यानि 74 सीटें हासिल हुई हैं।

साल 2015 के पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार उसे 21 सीटों का फायदा हुआ है। वहीं जेडीयू को इस बार भारी नुकसान हुआ है और वह महज 43 सीटों पर सिमट गई है, जबकि साल 2015 के पिछले चुनाव में उसे 71 सीटें मिली थीं, हालांकि मुख्यमंत्री एक बार फिर से जेडीयू के नीतीश कुमार ही बनाए गए हैं।

जेडीयू के सूत्र बताते हैं कि ऐसे में बीजेपी सीटों की संख्या के हिसाब से मंत्रिमंडल में जगह चाहती है, जबकि जेडीयू बराबर-बराबर मंत्री पद की इच्छा रखता है। जेडीयू की सोच है कि विगत लोकसभा चुनाव, जिसमें दोनों दलों ने आधे-आधे सीटों पर चुनाव लड़ा था, उसी तर्ज पर बराबर-बराबर संख्या में मंत्री पद भी मिले।

उधर बीजेपी अब बिहार बड़े भाई की भूमिका में आना चाहती है और अभी से ही उसकी नजर साल 2024 में होनेवाले लोकसभा चुनाव और साल 2025 में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनावों पर है। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी साल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बड़ा लक्ष्य तैयार कर रही है और बिहार से उसे काफी उम्मीद है।

ऐसे में जाहिर है कि अगले लोकसभा चुनाव में साल 2019 के सीट बंटवारे का फार्मूला नहीं चलने वाला। बीजेपी खुद बिहार में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है। जाहिर है कि इसके लिए उसे पिछली बार की अपेक्षा ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना होगा।

बात अगर बिहार में मंत्री पद की करें तो यहां कुल 36 मंत्रियों का स्कोप बनता है। नई सरकार के गठन के समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत 15 लोगों ने शपथ ली थी, जिसमें से शिक्षा मंत्री बनाए गए मेवालाल चौधरी ने विवादों में फंसने के बाद इस्तीफा दे दिया था। यानि अभी बिहार में 22 मंत्री पद का स्कोप बनता है।

चर्चा है कि बीजेपी चाहती है कि उसे कम से कम 21 मंत्री पद तो मिले ही, गृह-सामान्य प्रशासन जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी मिले, जो अभी तक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद रखा करते हैं।

कहा जाता है कि सरकार गठन के समय भी गृह विभाग को लेकर पेंच फंसा हुआ था और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, जो शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने आए थे, उन्होंने भी इसे सुलझाने की कोशिश की थी और इसी क्रम में पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम के अनुसार वे शाम में दिल्ली वापस न लौटकर अगले दिन लौटे थे।

राज्य में अभी हालत यह है कि एक-एक मंत्री के जिम्मे चार-चार, पांच-पांच विभागों का जिम्मा है। अशोक चौधरी, मंगल पाण्डेय आदि के जिम्मे कई विभागों का प्रभार है, वहीं खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जिम्मे भी कई विभाग हैं। जाहिर है कि इस कारण कार्य प्रभावित हो रहे होंगे। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य के सत्ताधारी दल मंत्री पद को लेकर फंसे पेंच को कबतक सुलझा पाते हैं।

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