परिवार और बच्चों का पेट पालने के लिए पुरूषों की दाढ़ी-बाल बनाती है यह महिला, मर्दवादी कुरीतियां तोड़कर अपनाया पुश्तैनी काम
वह सुबह कंघा, कैंची, उस्तरा लेकर गांव में निकल जाती हैं। घूम-घूमकर लोगों की हजामत बनाती हैं। बुलावे पर घर भी जाती हैं। इससे प्रतिदिन करीब 200 रुपये कमा लेती हैं, जिससे घर चलाने में काफी सहायता मिलती है...
जनज्वार। सामाजिक तानों को दरकिनार कर बिहार के सीतामढ़ी (Sitamadhi) में एक महिला अपने तीन बच्चों का पेट पालने के लिए पुरुषों के बाल और दाढ़ी बनाती है। इससे होने वाली कमाई से घर का खर्च चलाने के साथ बूढ़ी मां और अपने बच्चों की देखभाल कर रही है।
सीतामढ़ी के बाजपट्टी इलाके की बररी फुलवरिया पंचायत के बसौल (Basaul) गांव की रहने वाली 35 वर्षीय सुखचैन देवी की शादी 16 साल पहले पटदौरा गांव में हुई थी। ससुराल में कोई जमीन न होने और पिता की मौत के बाद दो बेटों और एक बेटी के साथ मां की जिम्मेदारी भी उनके सिर आ गई। पति रमेश चंडीगढ़ में बिजली मिस्त्री का काम करते हैं, जिससे परिवार का गुजारा मुश्किल है।
सुखचैन (Sukhchain) के लिए नाई का काम आसान नहीं था। शुरुआत में लोग बाल-दाढ़ी बनवाने से हिचकते थे, लेकिन वह मायके में ही रहती हैं, इसलिए उन्हें बेटी और बहन कहने वाले उनसे काम करवाने लगे। अब ना ग्रामीणों और ना ही सुखचैन देवी में इस काम को लेकर कोई झिझक है। वह सुबह कंघा, कैंची, उस्तरा लेकर गांव में निकल जाती हैं। घूम-घूमकर लोगों की हजामत बनाती हैं। बुलावे पर घर भी जाती हैं। इससे प्रतिदिन करीब 200 रुपये कमा लेती हैं, जिससे घर चलाने में काफी सहायता मिलती है।
नाई परिवार में जन्मीं सुखचैन ने यह काम किसी से सीखा नहीं। मां-बाप की एकलौती संतान होने के चलते बचपन में उनके पिता जहां भी दाढ़ी-बाल बनाते जाते थे, साथ ले जाते थे, उन्हें देखते-देखते यह काम सीख लिया। बड़ी होने पर मायके में बच्चों के बाल काटने से शुरुआत की। शादी के बाद इससे नाता टूट गया। तीन बच्चों पढ़ाने और गरीबी में परिवार की मदद के लिए फिर से इसकी शुरुआत की।
सुखचैन का कहना है कि पहले पास-पड़ोस में लोगों के यहां शादी-ब्याह के मौके पर महिलाओं के बाल और नाखून काटने से लेकर दूसरे काम करती थीं। धीरे-धीरे पुरुषों की हजामत करने लगी। ट्रेनिंग का मौका और साधन मिले तो ब्यूटी पार्लर खोल लूंगी। वह कहती हैं कि तीनों बच्चे अच्छी तरह से पढ़-लिख सकें, यही उनकी कोशिश है।