Nitish Kumar के सियासी नखरे स्वीकार करने को BJP क्यों है मजबूर, न चाहते हुए मोदी-शाह भी करते हैं तारीफ

Iftar Party ; भाजपा के लोग इफ्तार पार्टी में लालू परिवार को बुलाने के पीछे नीतीश कुमार की दबाव की राजनीति को भलीभांति समझते हैं। इसके बावजूद उनके इस नखरे को बर्दाश्त करना भाजपा की मजबूरी है।

Update: 2022-04-28 06:26 GMT
Nitish Kumar के सियासी नखरे स्वीकार करने को BJP क्यों है मजबूर, न चाहते हुए मोदी-शाह भी करते हैं तारीफ
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नई दिल्ली। बिहार की राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) गुरुवार को रमजान के अवसर पर इफ्तार पार्टी ( Iftar Party ) दे रहे हैं। इफ्तार पार्टी में शामिल होने के लिए उन्होंने आरजेडी प्रमुख लालू यादव ( Lalu Yadav ) , राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव सहित सभी पक्ष-विपक्ष के नेताओं व अन्य गणमान्य व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया है। यह स्थिति बिहार भाजपा ( BJP ) के नेताओं को असहज करने वाला है। खासकर यादव परिवार को आमंत्रित करने का मसला भाजपा के लिए कड़वा घूंट पीने के समान है।

ऐसा इसलिए कि न चाहते हुए भी भाजपा को सीएम नीतीश कुमार ( Nitish Kumar ) के हर सियासी नखरे झेलने पड़ते हैं। भाजपा के लोग इफ्तार पार्टी ( Iftar party )  में लालू परिवार को बुलाने के पीछे नीतीश कुमार की दबाव की राजनीति की मंशा को भी भलीभांति समझते हैं। इसके बावजूद भाजपा को इन सभी पहलुओं को सहजता से लेना मजबूरी है। ऐसा इसलिए कि सियासी तौर पर भाजपा के पास नीतीश यानि जेडीयू को कोई विकल्प नहीं है। भाजपा नेताओं यहां तक कि मोदी और शााह को भी पता है कि खुद सत्ता में बने रहने और आरजेडी को बिहार की सत्ता में आने से दूर रखने के लिए नीतीश कुमार को स्वीकार लाजिमी है। यही वजह है कि बिहार भाजपा न चाहते हुए नीतीश को सीएम बनाए रखने के लिए मजबूर है। 

अचानक प्रोग्राम बदला, एयरपोर्ट पर वीआईपी लॉन्ज में मिले शाह

यही वजह है कि कुछ दिनों पहले जगदीशपुर में आयोजित बाबू कुंवर सिंह की जयंती कार्यक्रम से पहले बिहार में सीएम नीतीश कुमार से केंद्रीय गृह मंत्री Amit Shah की मुलाकात को कोई कार्यक्रम नहीं था। ऐन मौके पर लालू यादव को डोरंडा कोषागार चारा घोटाले से झारखंड हाईकोर्ट ने जमानत दी तो अचानक सियासी घटनाक्रम बदलने लगा। राबड़ी आवास पर आरजेडी की ओर से आयोजित इफ्तार पार्टी में नीतीश कुमार शामिल हुए और तेजस्वी, तेजप्रताप और राबड़ी देवी के साथ चाय भी पी। अगले ही अमित शाह पटना एयरपोर्ट पर पहुंचे और उन्होंने वीआईपी लॉन्ज में ही नीतीश कुमार से मुलाकात की और कई मुद्दों पर चर्चा की।

नीतीश के रहते भूल जाइए बिहार में समान नागरिक संहिता

आरजेडी के इफ्तार पार्टी में शामिल होकर नीतीश कुमार ने साफ संकेत दिया कि मुझे ज्यादा परेशान मत करो, नहीं तो मैं एक बार फिर पाला बदल लूंगे। फिर मुझे मत कहना, ये क्या किया? नीतीश के इस सियासी मंशा को भांपते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi ) ने भी बुधवार को मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में नीतीश कुमार की खूब तारीफ की। इसके लिए उन्होंने बिहार में बेहतर कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम को आधार बनाया। ऐसा कर पीएम मोदी ने साफ संकेत दिया, नीतीश जी आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं, आप सीएम हैं और सीएम बने रहेंगे। फिर किसी के पास जाने और कुछ करने की जरूरत क्या है? आप सीएम ही तो बने रहना चाहते हैं। बने रहिए बिहार का सीएम। नीतीश की तारीफ पीएम मोदी ने उस समय की है जब जेडीयू ने साफ कर दिया कि बिहार में नीतीश कुमार के रहते समान नागरिक संहिता को लागू करना संभव नहीं है। 

बिहार की राजनीति में मास्टर खिलाड़ी हैं नीतीश 

कुछ समय पहले तक नीतीश कुमार की स्थिति ऐसी नहीं थी। मार्च में योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण समारोह का ही ले लीजिए। यह मामला योगी आदित्यनाथ के शपथग्रहण कार्यक्रम की एक तस्वीर और कुछ सेकेंड का एक वीडियो में उनका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभिवादन करने की शैली से संबंधित है। नीतीश कुमार पीएम मोदी को दंडवत होकर नमस्कार करते नजर आते हैं। आखिर नीतीश का दंडवत होकर झुकना भी तो तो उनकी राजनीतिक मजबूरी ही रही होगी। उस समय उन्होंने अपने हालात से समझौता कर राजनीतिक रूप से आत्मसमर्पण कर दिया था।

वर्तमान बिहार के राजनीतिक माहौल को अगर आपको समझना है तो पिछले एक महीने के बिहार विधान सभा के बजट सत्र के घटनाक्रम को देखिए जहां तंग आकर नीतीश अपना आपा खो बैठे और विधान सभा अध्यक्ष को सदन के अंदर खरी खोटी सुना दी और जब अपने वाणी के कारण भाजपा सदस्यों के नाराज़गी का अंदाज़ा हुआ तो छुट्टी के दिन उस पुलिस अधिकारी का तबादला कर दिया जिससे विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा और भाजपा के सदस्य शांत हो जाएं।

इससे पहले नीतीश विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के ख़िलाफ़ भी ऊंची आवाज़ में बोल चुके हैं, जो अमूमन उनका स्टाइल नहीं है। इसके अलावा भाजपा के सदस्य सरकार की सदन में और बाहर जमकर बेलगाम अफ़सरशाही और भ्रष्टाचार को लेकर आवाज़ उठाते हैं, जिससे आख़िरकार नीतीश कुमार का इक़बाल कम होता है। नीतीश कुमार कितने अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं कि जिस गृह विभाग के मुखिया हैं उनके मातहत पुलिस महानिदेशक उनके बार बार कहने के बाबजूद आम आदमी तो छोड़ दीजिए किसी मीडिया वाले का फ़ोन ना तो उठाते हैं ना कभी कॉल बैक करते हैं। ऐसा नीतीश कुमार के 16 वर्षों से अधिक के शासन में पहली बार हो रहा है।

पलटूराम के इसी अंदाज को देखते हुए भाजपा धीरे धीरे जनता में नीतीश की नाकामियों को उजागर भी करने की रणनीति पर काम कर रही है। ताकि उनको कमजोर मुख्यमंत्री साबित करना संभव हो सकसे। नीतीश के कट्टर समर्थक वोटर ख़ासकर अति पिछड़ा समुदाय के लोगों को को ये विश्वास हो जाए कि नीतीश से शासन नहीं चल रहा और भाजपा में शिफ़्ट हो जाना ही बेहतर है। ये सच है कि उतर प्रदेश और बिहार में भाजपा अपने विरोधियों से अधिक अपने सहयोगियों को निपटा कर उनके आधारभूत वोट बैंक पर क़ब्जा करने की योजना को एक से अधिक बार मूर्त रूप दे चुकी है।

वहीं नीतीश कुमार को अब मालूम है कि वह वर्तमान भाजपा से सीधा मुकाबला नहीं कर सकते। भाजपा के पास साधन और संसाधन हैं। इन सभी मामलों को उन्होंने कभी शासन करने के अपने तरीक़े में बहुत महत्व नहीं दिया। भाजपा बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। भाजपा को बिहार में इस बार 76 सीटें मिली हैं। अगर भाजपा अगला विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का मन बनाती है तो कुछ समझौते करने पड़ सकते हैं। नीतीश उनके लिए बिहार में मजबूरी है और केंद्र में ज़रूरी भी हैं।


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