बिहार में टूट गई नीतीश-सुशील की अटूट मानी जाने वाली जोड़ी, तारकिशोर व रेणु को ही भाजपा ने क्यों चुना?

भाजपा ने बिहार इकाई के अपने बड़े नेताओं को दरकिनार कर दो नए और कम पहचाने जाने वाले चेहरे को आगे कर सामाजिक समीकरण साधने के साथ ही अपने भविष्य की राजनीति की नींव रखने की कोशिश की है...

Update: 2020-11-16 05:09 GMT

जनज्वार। बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी की जोड़ी को अटूट माना जाता रहा है, लेकिन इस बार यह जोड़ी टूटने जा रही है। भाजपा ने अपने विधान मंडल दल का नेता सुशील मोदी की जगह कटिहार के विधायक तारकिशोर प्रसाद जैसे कम पहचाने जाने वाले नेता को चुना है। इससे आज शाम साढे चार बजे तारकिशोर प्रसाद के नीतीश कुमार के साथ शपथ लेने की संभावना है और वे राज्य के नए उप मुख्यमंत्री बन सकते हैं। हालांकि यह भी चर्चा है कि भाजपा विधानमंडल दल की उपनेता चुनी गईं बेतिया की विधायक रेणु देवी को भी भाजपा उपमुख्यमंत्री बना सकती है।

इस तरह नीतीश की अगुवाई में बनने वाले कैबिनेट में दो उपमुख्यमंत्री हो सकते हैं और दोनों भाजपा के ही कोटे से होंगे। तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी दोनों चौथी बार विधायक चुने गए हैं और बिहार की राजनीति के लो प्रोफाइल चेहरे हैं। भाजपा के राजनीतिक गलियारे में भी ये दोनों नेता कभी प्रमुखता से चर्चा में नहीं रहे, लेकिन भाजपा अनजान व कम पहचाने जाने वाले नेताओं के चेहरे को आगे कर पहले भी राजनीति करती रही है। महाराष्ट्र में जब भाजपा के नेता एकनाथ खडसे 40 साल के राजनीतिक जीवन का अनुभव होने का हवाला देकर मुख्यमंत्री पद का दावा कर रहे थे, तब भाजपा ने 43 साल के युवा देवेंद्र फडणवीस को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का फैसला लिया था।

भाजपा ने एक बार फिर तारकिशोर व रेणु दीव का नाम आगे कर सबको चकित किया है। इन दोनों नेताओं का चयन भाजपा की भविष्य की राजनीति के लिए अहम है। वैश्य वर्ग से आने वाले तारकिशोर प्रसाद कटिहार के विधायक हैं जो सीमांचल क्षेत्र में पड़ता है। सीमांचल में इस बार असदु्दीन ओवैसी की पार्टी एमआइएम के पांच उम्मीदवार जीत कर एमएलए बने हैं। ऐसे में भाजपा इस इलाके से प्रदेश में अपना राजनीतिक नेतृत्व चुन कर एक संदेश भी देना चाहती है। सुशील मोदी के विकल्प के रूप में चुने गए तारकिशोर प्रसाद भी उन्हीं की तरह वैश्य वर्ग से आते हैं, इसलिए यह समुदाय भी इस फैसले से नाराज नहीं हो सकता।

बिहार में भाजपा विधान मंडल दल की उपनेता चुनी गईं रेणु देवी.

वहीं, रेणु देवी अति पिछड़ा वर्ग में आने वाले नौनिया जाति से आती हैं। नीतीश कुमार ने अपने 15 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में अपने कामकाज व सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अपना जनाधार तैयार किया है। जाहिर है भाजपा बिहार की राजनीति में नीतीश युग के पराभव के बाद अपना मुख्यमंत्री देखना चाहेगी और इसके लिए उसे उन समुदायों में नेतृत्व उभारना होगा, जिसमें नीतीश ने अपना आधार तैयार किया है। नीतीश के शासन में बिहार में महादलित व इबीसी एक बहु प्रचारित राजनीतिक शब्द बन गया। एक महिला को नेतृत्व के लिए आगे कर भाजपा ने कथित रूप से साइलेंट वोटर व आधी आबादी को लुभाने का भी प्रयास किया है।

तारकिशोर प्रसाद व रेणु देवी को आगे करने से खुद को सुशील कुमार मोदी का विकल्प मानने वाले बिहार भाजपा के कई बड़े नेताओं के बीच की रस्साकशी भी इस फैसले से खत्म हो जाएगी। बिहार में सालों से नंदकिशोर यादव, अश्विनी चौबे, प्रेम कुमार, गिरिराज सिंह जैसे नेताओं को सुशील मोदी का विकल्प माना जाता रहा है, पर फिलहाल इनके विकल्प बनने की संभावना खत्म हो गई है। 


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