क्यों लटका हुआ है बिहार की नीतीश कैबिनेट का विस्तार, कहां फंसा है पेंच
कई बार ऐसे मौके भी आए, जब सत्ताधारी दलों के आला नेताओं की आपसी मुलाकात हुई, गत वर्ष दिसंबर माह में इस चर्चा ने जोर पकड़ा कि खरमास यानि 14 जनवरी के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा...
जनज्वार ब्यूरो, पटना। बिहार में नीतीश कैबिनेट के विस्तार का मामला अबतक लटका हुआ है। पिछले साल नवंबर महीने में नई सरकार के गठन के बाद से ही लगातार इसकी चर्चा चल रही है कि बिहार के मंत्रिमंडल का विस्तार आखिर कब होगा।
कई बार ऐसे मौके भी आए, जब सत्ताधारी दलों के आला नेताओं की आपसी मुलाकात हुई और कयास लगाए गए कि यह मुलाकात मंत्रिमंडल विस्तार के मामले पर चर्चा के लिए हुई है। गत वर्ष दिसंबर माह में इस चर्चा ने जोर पकड़ा कि खरमास यानि 14 जनवरी के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हो जाएगा।
इन सब कयासों के बीच 18 जनवरी को मीडिया के एक तबके ने तो यह खबर भी चला दी कि 19 जनवरी को राजभवन में नए मंत्री शपथ लेंगे, हालांकि इसके बाद उसी दिन देर शाम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद सामने आकर कह दिया कि कल मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो रहा। ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि मंत्रिमंडल विस्तार में पेंच आखिर कहां फंसा है।
वैसे राजनीतिक जानकारों की मानें तो मंत्रिमंडल विस्तार में पेंच एक नहीं, बल्कि कई हैं, जिनको अबतक सुलझाया नहीं जा सका है। इसके पीछे की वजह एनडीए गठबंधन के दोनों मुख्य घटक दल भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड के बीच चल रही आपसी खींचतान तो है ही, अन्य कई कारण भी हैं जिससे यह मामला सिरे नहीं चढ़ पा रहा।
नीतीश कैबिनेट के विस्तार में पहला पेंच तो यही है कि किस दल को कितने मंत्री पद मिले। राजनीतिक जानकर कहते हैं कि इस बार के चुनावी नतीजों ने जेडीयू को बैकफुट पर ला दिया है, चूंकि वह राज्य में तीसरे नम्बर की पार्टी बन गई है।
वहीं भाजपा इस बार बड़े भाई की भूमिका निभाना चाह रही है। सिर्फ निभाना ही नहीं, बल्कि दिखाना भी चाह रही है। जेडीयू की इच्छा है कि दोनों दलों को बराबर-बराबर मंत्री पद मिले, जबकि बीजेपी विधायकों की संख्या के आधार पर मंत्री पद चाहती है।
एक मसला मंत्रालयों को लेकर भी है। बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि पार्टी इस बार गृह मंत्रालय अपने जिम्मे रखना चाहती है। हालिया दिनों में राज्य की कानून-व्यवस्था की स्थिति को लेकर विपक्षी दल लगातार यह कहते रहे हैं कि स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही है। यहां तक तो ठीक है, पर आश्चर्यजनक रूप से बीजेपी के कई नेता भी विधि-व्यवस्था को लेकर सवाल उठाने लगे हैं, जबकि उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा है।
बता दें कि अपने कार्यकाल में गृह मंत्रालय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं अपने पास रखते रहे हैं और इस बार भी उन्हीं के पास है। कहा यह जा रहा है कि बीजेपी अब गृह मंत्रालय अपने पास चाह रही है।
जेडीयू सूत्रों के अनुसार एक और मसला केंद्रीय मंत्रिमंडल का भी है। जेडीयू की इच्छा है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में पार्टी के दो-तीन लोगों को जगह मिले, लेकिन अभी बात बन नहीं पा रही है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा में 36 मंत्री बनाए जा सकते हैं। अभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को छोड़ 13 अन्य मंत्री कार्य कर रहे हैं। एक-एक मंत्री के जिम्मे कई विभागों का जिम्मा है।
विगत चुनावों में बीजेपी को 74, जेडीयू को 43 और एनडीए के दो अन्य घटक दलों हम पार्टी और वीआईपी पार्टी को 4-4 सीटें हासिल हुई थीं। हम और वीआईपी के एक-एक मंत्री बनाए जा चुके हैं। संभावित विस्तार में मुख्य रूप से बीजेपी और जेडीयू की ओर से ही मंत्री बनाए जाएंगे।
इसके अलावा राज्यपाल के मनोनयन से बिहार विधान परिषद में भरी जानेवाली 12 सीटों का मामला भी विगत विधानसभा चुनावों के पहले से लटका हुआ है। कहा जा रहा है कि इन सीटों पर भी दोनों दलों के बीच इस बात पर फैसला नहीं हो पा रहा है कि किस दल को कितनी सीटें मिलेंगी।
राज्य के बोर्ड-निगमों में अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का मनोनयन, 20 सूत्री के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष और सदस्यों का मनोनयन भी अबतक नहीं हो सका है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तो यहां तक कह दिया था कि ये सब मामले इसलिए लटके हुए हैं, चूंकि बीजेपी की ओर से सूची देने में देरी की जा रही है।
वैसे कहा जा रहा है कि गत दिनों बीजेपी के राज्यस्तरीय बड़े नेता मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर ऐक्टिव हुए हैं और पार्टी द्वारा मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने वाले सदस्यों के नामों का फैसला कर लिया गया है। अब सबकी निगाहें मंत्रिमंडल विस्तार पर टिकी हुई हैं कि यह कबतक होता है और कौन-कौन मंत्री बनते हैं।