बिहार विशेष सशस्त्र विधेयक को क्यों कहा जा रहा है पुलिसिया स्टेट का काला कानून?

एक बार लागू होने के बाद बिहार सैन्य पुलिस को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस कहा जाएगा और यह बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस को ऐसी शक्तियां देगा जिससे बिहार प्रदेश में 'पुलिस राज' लागू हो जाएगा।

Update: 2021-03-26 08:10 GMT

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021 को पुलिसिया स्टेट का काला कानून कहा जा रहा है जो बिना वारंट गिरफ्तारी करने के लिए पुलिस को असीमित शक्तियां देगा। इस कानून के निरंकुश चरित्र को देखते हुए विपक्ष इसकी वापसी की मांग कर रहा है, जबकि सरकार ने इसे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए बढ़ती जरूरतों को देखते हुए जायज बताया है।

देश में पहले से ही अफस्पा और यूएपीए जैसे बर्बर और न्याय विरोधी कानून लागू हैं जिनका दुरुपयोग कर असमति की आवाज़ को खामोश करने की कोशिश विभिन्न सरकारें करती रही हैं। अफस्पा की ताकत से सेना पूर्वोत्तर और कश्मीर में निर्दोष नागरिकों की हत्या कर भी बेदाग छूटती रही है तो मौजूदा मोदी सरकार यूएपीए का इस्तेमाल कर अपने आलोचकों को जेल में ठूंसती रही है। कभी विकास पुरुष के नाम से पुकारे गए नितीश कुमार आरएसएस की गोद में बैठने के बाद क्रूरता के नए मॉडल तैयार करते हुए नजर आने लगे हैं। वे बहाना कोई भी बना लें, लोकतंत्र की व्यवस्था में वारंट के बिना छापा मारने और गिरफ्तार करने का प्रावधान बनाकर वे असल में लोकतंत्र की मूल भावना को ही कुचल देना चाहते हैं।

एक बार लागू होने के बाद बिहार सैन्य पुलिस को बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस कहा जाएगा और यह बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस को ऐसी शक्तियां देगा जिससे बिहार प्रदेश में 'पुलिस राज' लागू हो जाएगा। सदन के भीतर और बाहर दोनों जगह इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। राज्य की राजधानी में राजद कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा। विपक्ष ने घोषणा की है कि वह इस काले कानून की वापसी से कम कुछ भी स्वीकार नहीं करेगा।

जैसा कि विधेयक की प्रस्तावना में बताया गया है, बिहार पुलिस अधिनियम 2007 को 30 मार्च 2007 को आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया गया था। इससे पहले राज्य की पुलिस सेवाओं को पुलिस अधिनियम, 1861 द्वारा शासित किया गया था और इसके तहत बनाए गए नियम और बिहार सैन्य पुलिस राज्य बंगाल सैन्य पुलिस अधिनियम, 1892 द्वारा शासित था। बिहार एक तेजी से विकासशील राज्य होने के नाते औद्योगिक सुरक्षा, महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा, हवाई अड्डों, मेट्रो रेल आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विविध विशेषज्ञता के साथ सशस्त्र पुलिस बल की राज्य में आवश्यकता को विधेयक में रेखांकित किया गया है। राज्य के समर्पित, अच्छी तरह से प्रशिक्षित और पूरी तरह से सुसज्जित सशस्त्र पुलिस बल के माध्यम से बिहार की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने की आवश्यकता बताई गई है।

बिहार सैन्य पुलिस की भूमिका और इसकी अलग संगठनात्मक संरचना को ध्यान में रखते हुए, यह आवश्यक है कि उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक विशेष सशस्त्र पुलिस के रूप में इसकी अलग पहचान बनी रहे; इसलिए विशेष सशस्त्र पुलिस बल के संविधान, संगठित विकास और बेहतर विनियमन के लिए प्रावधान करना समीचीन बताया गया है।

विधेयक में कहा गया है कि यह सार्वजनिक कानून-व्यवस्था के रख-रखाव, चरमपंथ का मुकाबला करने, निर्दिष्ट प्रतिष्ठानों की बेहतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए होगा, जैसा कि अधिसूचित किया जा सकता है और ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करना, जैसा कि अधिसूचित किया जा सकता है। विशेष सशस्त्र पुलिस का गठन एक या एक से अधिक बटालियनों में किया जाएगा। विशेष सशस्त्र पुलिस का संचालन सरकार द्वारा व्यवहार किया जाएगा। 19 विशेष सशस्त्र पुलिस की कमान, पर्यवेक्षण और प्रशासन की ज़िम्मेदारी पुलिस महानिदेशक, बिहार की होगी। सरकार विशेष सशस्त्र पुलिस को ऐसे महानिरीक्षक, उप महानिरीक्षक, कमांडेंट और ऐसे अन्य रैंक के पुलिस अधिकारियों को नियुक्त करेगी, जिन्हें अधिसूचित किया जा सकता है।

इस कानून के तहत इस विधेयक में कहा गया है कि कोई भी विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी जिन्हें किसी प्रतिष्ठान की सुरक्षा की जवाबदेही दी जाएगी, उसकी रक्षा के लिए वे बिना वारंट और बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के किसी संदिग्ध को गिरफ्तार कर सकते हैं। जो व्यक्ति प्रतिष्ठान के किसी कर्मचारी या किसी विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी को कर्तव्य पालन करने से रोकता है, हमला करता है या हमले का भय दिखाकर बलप्रयोग या धमकी देता है उसे इस विधेयक के अधिनियम के तहत बिना वारंट गिरफ्तार किया जा सकता है। हालांकि गिरफ्तारी के बाद उस व्यक्ति को निकटतम पुलिस स्टेशन ले जाया जाएगा।

विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 में जघन्य अपराधों के लिए दंड की विस्तृत व्याख्या की गई है। इसके अलावा न्यायालय द्वारा अपराध का संज्ञान लेने की प्रक्रिया के बारे में भी उल्लेख है। इसके तहत इस अधिनियम में किसी भी अपराध का संज्ञान कोई भी न्यायालय नहीं लेगा। जब आरोपित व्यक्ति एक विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी है, सिवाय ऐसे अपराध से गठित तथ्यों की लिखित रिपोर्ट और सरकार द्वारा इस संबंध में अधिकृत पदाधिकारी की मंजूरी पर ही कोर्ट संज्ञान लेगा।

इस अधिनियम के तहत गिरफ्तारी करने वाले विशेष सशस्त्र पुलिस अधिकारी अनावश्यक देरी के बिना बंदी को एक पुलिस अधिकारी या निकटतम पुलिस स्टेशन को गिरफ्तारी की स्थिति की रिपोर्ट के साथ सौंप देंगे।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि बिहार सैन्य पुलिस को हवाई अड्डों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों और गया में महाबोधि जैसे मंदिरों आदि में सुरक्षा के लिए सीआईएसएफ की तर्ज पर एक अलग पहचान की आवश्यकता है। यह लोगों के खिलाफ नहीं है, बल्कि लोगों के लिए भी है क्योंकि यह आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करेगा। और ऐसे पुलिस बल अन्य राज्यों में भी काम कर रहे हैं।

विपक्ष ने राज्य में "पुलिस राज" लागू करने के लिए विधेयक को "असंवैधानिक" प्रयास करार दिया है। संयुक्त विपक्ष के बयान में कहा गया है कि विधेयक "लोगों, शिक्षाविदों, कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, राजनीतिक विपक्ष और उन लोगों की आवाज को दबाने के लिए पुलिस बल को एक सशस्त्र मिलिशिया में प्रभावी रूप से बदल देगा जो लोग सच बोलने की हिम्मत करेंगे"।

रामगढ़ से राष्ट्रीय जनता दल के विधायक सुधाकर सिंह ने कहा: विधेयक की धारा 15 में कहा गया है कि अगर किसी व्यक्ति को गोली मार दी जाती है, तो भी पूछताछ अदालत में या मजिस्ट्रेट द्वारा नहीं बल्कि पुलिस द्वारा की जाएगी। इस अधिनियम के माध्यम से बीएमपी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के रूप में कार्य करेगी।

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