ट्रोलर्स को क्या आएगी शर्म, 1रुपये किलो भी नहीं बिकी गोभी तो किसान ने फसल पर चला दी ट्रैक्टर
किसान ने खेत में लगी अपनी गोभी की खड़ी फसल पर खुद ही ट्रैक्टर चला दी, क्योंकि गोभी के फसल की लागत कौन कहे, फसल को मंडी तक पहुंचाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा था...
जनज्वार ब्यूरो/ पटना। फसल की एमएसपी यानि न्यूनतम बिक्री मूल्य या न्यूनतम समर्थन मूल्य इन दिनों चर्चा में बना हुआ है। देश में चल रहे किसान आंदोलन के बीच फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य का मामला देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। कोई इसका समर्थन कर रहा है तो कोई विरोध। दिल्ली की तरह यूँ तो बिहार में किसानों का कोई बड़ा आंदोलन अभी नहीं चल रहा है, पर बिहार के किसानों की समस्या देश के किसानों की अपेक्षा ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं हैं।
राज्य के समस्तीपुर जिला से एक ऐसा मामला सामने आया है, जो बिहार के किसानों की दशा को उजागर करता है। यहां एक किसान ने खेत में लगी अपनी गोभी की खड़ी फसल पर खुद ही ट्रैक्टर चला दी, क्योंकि किसान को गोभी की फसल की लागत कौन कहे, फसल को मंडी तक पहुंचाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार बिहार के समस्तीपुर में गोभी का उचित मूल्य नहीं मिलने से एक किसान इतना हताश हो गया कि उसने खेत में लगी लहलहाती फसल पर ट्रैक्टर चला दी। समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर के किसान ओम प्रकाश यादव ने अपने खेत में गोभी की फसल लगाई थी, पर गोभी का बाजार भाव इतना कम हो गया कि किसान को खेत से मंडी तक गोभी ले जाने का भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा था।
किसान का कहना है कि गोभी की खेती करने में कम से कम चार हजार रुपये प्रति कट्ठा की लागत आती है, जबकि यहां की मंडी में गोभी एक रुपये किलो भी नहीं बिक पा रहा है।
अपनी पीड़ा बताते हुए किसान ओम प्रकाश यादव ने कहा कि गोभी को बेचने के लिए पहले तो खेत से गोभी को मजदूर से कटवाना पड़ता है। फिर अपना बोरा देकर पैक करवाना होता है और ठेले से मंडी पहुंचाना पड़ता है, लेकिन मंडी में आढ़तिए एक रुपये प्रति किलो भी गोभी की फसल खरीदने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में मजबूरन उसे अपनी फसल पर ट्रैक्टर चलवाना पड़ रहा है।
किसान ने कहा कि उसके साथ ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि दूसरी बार उसकी फसल बर्बाद हुई है। पहली बार भी उसकी फसल को कोई खरीदने वाला नहीं था।
किसान ओम प्रकाश यादव ने कहा कि अब वे इस जमीन पर गोभी नहीं लगाएंगे, बल्कि गेंहू लगाएंगे। उनकी यह भी शिकायत है कि सरकार से एक रुपया लाभ नहीं मिल रहा है। हालांकि इससे पहले उनका काफी गेहूं खराब हो गया था तो सरकार से एक हजार 90 रुपया का मुआवजा मिला था। किसान ने कहा कि वह 8 से 10 बीघे में खेती करते हैं और फसल खराब होने पर सरकार की ओर से महज एक हजार रुपया क्षतिपूर्ति मिलता है।
वैसे क्षेत्र के वे अकेले किसान नहीं हैं, जिनकी गोभी की फसल का मंडी में उचित दाम नहीं मिल रहा है। स्थानीय किसानों का कहना है कि जितने रुपये खर्च कर वे गोभी को मंडी में लेकर जाएंगे, वह भाड़ा भी नहीं निकल पा रहा है। लागत और मुनाफे की बात कौन करे। लिहाजा फसल को खेत में ही नष्ट कर देना विकल्प होता है।
बहरहाल, किसान को खेत में ट्रैक्टर चलाते देख आस-पास के लोग खेत पहुंच गए और खेत से गोभी उठाकर घर ले गए। अपनी फसल की कीमत न पाने वाला किसान फिलहाल लोगों को अपनी गोभी ले जाता देखकर ही संतुष्टि महसूस कर रहा था। किसान ने कहा कि खेत से गोभी ले जाने वाले लोग गांव के ही ग्रामं और मजदूर हैं, कम से कम वे तो सब्जी खाकर खुश होंगे।