भीमा कोरेगांव मामले में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हनी बाबू की रिमांड 21 अगस्त तक बढायी गई
दिल्ली यूनिवर्सिटी के अंग्रेजी के प्रोफेसर हनी बाबू पर आरोप है कि उनका भाकपा माओवादी से है। पिछले ही महीने 28 जुलाई को उन्हें एनआइए ने गिरफ्तार किया था...
जनज्वार। एल्गर परिषद केस (भीमा कोरेगांव मामले-Bhima Koregaon Case) में गिरफ्तार दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू (Delhi University Associate Professor Hany Babu) को मुंबई की एक विशेष अदालत ने एनआइए को 21 अगस्त तक रिमांड पर सौंप दिया है। हनी बाबू की पिछले ही सप्ताह भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तारी हुई थी। इसे एल्गर परिषद मामले के नाम से भी जानते हैं। 54 वर्षीय दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर हनी बाबू को एनआइए ने 28 जुलाई 2020 को गिरफ्तार किया था।
हनी बाबू का रिमांड शुक्रवार को समाप्त हो रहा था, ऐसे में विशेष अदालत के जज डीइ कोथालीकर ने एनआइए को उनकी रिमांड 21 अगस्त तक बढा दी। एनआइए ने कोर्ट के सामने यह दावा किया था कि हनी बाबू का संबंध भाकपा माओवादी से है। भाकपा माओवादी एक नक्सली संगठन है, जिसका प्रभाव महाराष्ट्र सहित छत्तीसगढ, झारखंड, आंध्रप्रदेश व कुछ अन्य राज्यों में है।
यह मामला 31 दिंसबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गर परिषद के सम्मेलन में दिए गए भड़काऊ भाषण से संबंधित है। पुलिस का इस आरोप है कि इस भाषण के बाद पुणे के बाहरी इलाके स्थित भीमा कोरेगांव में हिंसा भड़की।
पुणे पुलिस ने इस मामले में 15 नवंबर 2018 को चार्जशीट दायर किया था और फिर 21 फरवरी 2019 को मामले में पूरक चार्जशीट दायर किया गया। एनआइए ने इस साल के 24 जनवरी को जांच शुरू की।
हनी बाबू की गैरमौजूदगी में पुलिस ने मारा था छापा, डूटा ने जताया था विरोध
दो अगस्त को हनी बाबू की गैर मौजूदगी में पुलिस ने उनके घर की छानबीन की थी और तलाशी ली थी। इस मामले में दिल्ली टीचर्स यूनियन ने कहा था हनी बाबू के मामले की सही जांच की जाए और उनके परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाएगी। यूनियन ने आरोप लगाया था कि हनी बाबू की पत्नी जेनी रोविना व स्कूल जाने वाली बेटी की जब घर पर अकेले थे तब पुलिस ने तलाशी ली और उन्हें परेशान किया। जेनी रोविना मिरांडा हाउस काॅलेज में पढाती है।
डूटा के अध्यक्ष राजीब रे ने कहा था कि यह हैरानी की बात हे कि हनी बाबू की गैर मौजूदगी में पुलिस ने उनके घर की छानबीन ली। हनी बाबू और उनकी पत्नी जेनी दोनों ही जाति विरोधी आंदोलन के लिए संघर्ष करते रहे हैं।
एसएफआइ ने भी कहा था कि सबूत की तलाशी के लिए की गई यह छापेमारी यह बताती है कि किस तरह स्कालर्स और एक्टिविस्ट का उत्पीड़न किया जाता है। एसएफआइ ने कहा था कि हम इस कठिन परिस्थिति में हनी बाबू एवं उनके परिवार के सदस्यों के साथ हैं। संगठन ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध भी किया था।
जनवरी में एनआइए को सौंपी गई जांच
भीमा कोरेगांव मामले की जांच जनवरी में एआइए को सौंप दी गई थी। महाराष्ट्र की शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस सरकार ने वर्ष 2018 के इस मामले की समीक्षा करने का फैसला लिया था और उसके ठीक बाद केंद्र की मोदी सरकार ने मामले की जांच एनआइए को सौंप दी। तब महाराष्ट्र की ओर से इस पर नाराजगी जतायी गई थी। महाराष्ट्र सरकार ने कहा था कि केंद्र ने बिना राज्य के परामर्श के ऐसा फैसला लिया। महाराष्ट्र में एनसीपी भीमा कोरेगांव ममले में गिरफ्तार किए गए लोगों पर से केस वापस लेने की मांग भी की थी। इसके बाद सीएम उद्धव ठाकरे ने ऐसे दलित कार्यकर्ताओं जिनके खिलाफ गंभीर आरेाप नहीं थे, उनके केसों को वापस लेने की बात कही थी।
इस मामले में कवि वरवरा राव, अधिवक्ता, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस आदि को आरोपी बनाया गया। पिछले महीने वरवरा राव को राष्ट्र की धरोहर बताते हुए आंधप्रदेश के 800 पत्रकारों ने उनकी जमानत की गुहार लगायी थी।