किसान आंदोलन: कृषि कानूनों पर बनी कमेटी की सिफारिश सार्वजनिक करे सुप्रीम कोर्ट

कमेटी की रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट के पटल पर है, दूसरी ओर देश में किसान लगातार तीन कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं, कमेटी सदस्य अनिल घनवट ने अब सुप्रीम कोर्ट को एक चिट्ठी लिख कर मांग की कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए....

Update: 2021-09-14 08:17 GMT

(किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी का कहना है कि कमेटी की सिफारिश से ज्यादा उम्मीद नहीं है।)

जनज्वार ब्यूरो। तीन कृषि कानूनों (Agriculture Laws) पर बनी तीन सदस्य कमेटी (Three Members Committie) ने अपनी रिपोर्ट 19 मार्च को सरकार को सौंप दी। सील बंद लिफाफे में सौंपी गई यह रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में हैं। कमेटी के एक सदस्य अनिल घनवट (Anil Dhanwat) ने अब सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि सिफारिशों को सार्वजनिक किया जाए। उन्होंने इसे लेकर एक पत्र सुप्रीम कोर्ट में लिखा है। यह भी चिंता जताई कि अभी तक तीन कृषि कानूनों का मामला सुलझा नहीं है। 

तीनों कृषि कानूनों पर जो विवाद हो गया था तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया था। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी को चार सदस्यों की एक कमेटी कर कानूनों की समीक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी थी। कमेटी को 20 मार्च तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। कमेटी ने एक दिन पहले 19 मार्च को यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दे दी है।

कमेटी में कृषि विशेषज्ञ और शेतकारी संगठनों से जुड़े अनिल धनवत, अशोक गुलाटी और प्रमोद जोशी के साथ साथ किसान नेता भूपिंदर सिंह मान को भी इसका सदस्य बनाया गया था। विवाद होने बाद भूपेंद्र सिंह मान कमेटी से हट गए थे।

कमेटी की रिपोर्ट अब सुप्रीम कोर्ट के पटल पर है। दूसरी ओर देश में किसान लगातार तीन कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। कमेटी सदस्य अनिल घनवट ने अब सुप्रीम कोर्ट को एक चिट्ठी लिख कर मांग की कि रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट को एक सितंबर को लिख गए अपने पत्र में उन्होंने कहा, ' यह चिंता की बात है कि अभी भी देश में कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन चल रहे हैं,जबकि कमेटी की रिपोर्ट आ चुकी है। इस रिपोर्ट को सार्वजनिक कर देना चाहिए।'

उन्होंने यह भी बताया कि वह किसान प्रतिनिधि के तौर पर कमेटी में शामिल थे। किसानों से इस मामले में व्यापक बातचीत की है। इसके बाद सिफारिशों को अंतिम रूप दिया गया है।

 उन्होंने पत्र में बताया कि कमेटी ने बड़ी संख्या में किसानों के सुझाव लिए हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाभ मिल सके। उन्होंने उम्मीद भी जताई कि कमेटी सिफारिश चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Movement) का शांतिपूर्वक तरीके से हल निकाल सकती है।

हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा समेत दूसरे किसान संगठनों ने कमेटी को ही मानने से इंकार कर दिया था। किसान नेताओं ने ऐलान कर दिया था कि वह कमेटी की बैठक में जाएंगे ही नहीं।  

हरियाणा के बड़े किसान जोगेंद्र सिंह जेलदार मानते हैं कि कमेटी की सिफारिशों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। हो सकता है,इसमें तीन कृषि कानूनों को लेकर कोई सकारात्मक बात हो।

जोगेंद्र सिंह जेलदार ने बताया कि  हालांकि कमेटी की सिफारिशों के प्रति आम किसान की धारणा ज्यादा उम्मीद वाली नहीं है। क्योंकि वह पहले ही दिन से यह मान कर चल रहे हैं कि कमेटी सरकारी है। सरकार के हित की बात ही करेगी। यह कमेटी के बारे में धारणा सही नहीं है। देखने लायक बात तो यह होगी कि क्या कमेटी ने अपनी सिफारिश में इस धारणा को तोड़ा है, या नहीं।

हालांकि सूत्रों का कहना है कि कमेटी ने तीन कृषि कानूनों को खत्म करने की सिफारिश नहीं की है। कमेटी ने फसलों की खरीद प्रक्रिया पर भी सवाल उठाया है। इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि एमएसपी का लाभ मुट्ठी भर किसानों को मिल रहा है।

किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी (Gurnam Singh Chadhuni) का कहना है कि कमेटी की सिफारिश से ज्यादा उम्मीद नहीं है। क्योंकि कमेटी सरकार की ही बात रखेगी, हमारी मांग साफ है, तीनों कृषि कानून रद्द किए जाए। इससे कम हमें कुछ मंजूर नहीं है।

अंबाला जिले के गांव बिहटा के  किसान अशोक राणा 48  का कहना है कि कमेटी ने क्या सिफारिश की है, पहले यह तो देखने दें, इसके बाद ही इस पर बात करनी चाहिए। कमेटी ने कुछ तो बात  ऐसी की होगी जो किसानों के हित में होगी।इसलिए पहले कमेटी की सिफारिश सार्वजनिक होनी चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई है कि कमेटी ने जो निष्कर्ष तीन कृषि कानूनों पर निकला है, वह सही भी हो सकता है।

हरियाणा और पंजाब के किसानों का ऐसा बड़ा तबका  भी है, जो कमेटी की ओर उम्मीद की नजर से देख रहा है। इनका मानना है कि शायद सब कुछ ठीक हो जाए। उन्हें इस बात का इंतजार है कि कब कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाएगा। पंजाब के लुधियाना जिले के गांव बागली खर्द के किसान मनजीत सिंह 32  व हरजोत सिंह 38 ने बताया कि मसला यह है कि किसान और कृषि को कैसे सुरक्षित रखा जाता है, इस पर बात होनी चाहिए।

उन्होंने बताया कि नई व्यवस्था एक दम से लागू नहीं होनी चाहिए, तीन कृषि कानूनों में सरकार ने जल्दबाजी की है। देखना यह होगा कि क्या कमेटी ने सरकार की इस जल्दबाजी पर कोई संज्ञान लिया है, या नहीं।

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