JNU : जेएनयू छात्र संघ उपाध्यक्ष साकेत मून ने की बाबरी मस्जिद बनाने की मांग, चुनाव से पहले क्यों दी जा रही सियासी मुद्दों को हवा

JNU : पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जेएनयू कैंपस में सियासी मुद्दों पर जोर दिया जाने लगा है। पिछले कुछ दिनों से जेएनयूएसयू द्वारा लगातार इन मुद्दों को हवा देने का काम जारी है।

Update: 2021-12-07 05:32 GMT

JNU : एक तरफ उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चरम पर है तो दूसरी तरफ जेएनयू ( JNU ) में बाबरी मस्जिद ( Babri Masjid ) विवाद को जेएनयू छात्र संगठनों ( JNUSU ) द्वारा जोर शोर से उठाया जा रहा है। 6 दिसंबर की देर शाम अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने की बरसी पर जेएनयू छात्र संगठन ने कैंपस में प्रोटेस्ट मार्च निकाला। प्रोटेस्ट मार्च के दौरान बाबरी मस्जिद को फिर से बनाने के लिए नारेबाजी की गई।

जेएनयू कैंपस के गंगा ढाबा पर रात साढ़े आठ बजे काफी संख्या में लेफ्ट विंग के छात्र जमा हो गए और यहां से मार्च ( Protest March ) करते हुए छात्र चंद्रभागा हॉस्टल तक पहुंचे और जमककर नारेबाजी की। आरोप है कि जेएनयू छात्रसंघ के उपाध्यक्ष साकेत मून ने सोमवार रात को अपने संबोधन के दौरान बाबरी मस्जिद को फिर से बनाने की बात कही। उसके बाद से इस की चर्चा है कि क्या कथित तौर पर जेएनयूएसयू उपाध्यक्ष यह बयान देकर फिर से एक नए विवाद को जन्म देना चाहते है!

2 दिन पहले दिखाया था बाबरी मस्जिद डिमोलिशन पर फिल्म

इससे पहले चार दिसंबर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू ) में बाबरी मस्जिद डेमोलिशन से जुड़ी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त डॉक्युमेंट्री 'राम के नाम' की स्क्रीनिंग की गई। रजिस्ट्रार की चेतावनी के बावजूद छात्रों ने फिल्म की स्क्रीनिंग की। शनिवार की रात को आनंद पटवर्धन की इस फिल्म की स्क्रीनिंग हुई। देर रात तक किसी तरह की घटना की खबर नहीं थी।

इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशासन की तरफ से कहा गया था कि इस फिल्म की स्क्रीनिंग से सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है। अगर इसे कैंपस में दिखाया गया तो सख्त कार्रवाई की जाएगी। जेएनयू के रजिस्ट्रार रविकेश की तरफ से जारी नोटिस में कहा गया था कि जानकारी में आया है कि JNUSU की तरफ से 'राम के नाम' डॉक्युमेंट्री की स्क्रीनिंग के लिए पोस्टर जारी किया गया है। इस इवेंट की पहले से कोई अनुमति नहीं ली गई है। ऐसी गतिविधियों से विश्वविद्यालय की शांति भंग हो सकती है।

अदालत ने दिया था अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का आदेश

रजिस्ट्रार की ओर से जारी नोटिस में कहा गया था कि छात्रों और अन्य लोगों को सलाह दी जाती है कि यह कार्यक्रम तत्काल रोक दिया जाए। ऐसा न करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी। जो पोस्टर लगाए गए हैं वे आधिकारिक नहीं हैं और इससे किसी की भावना को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए। बता दें कि 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराया गया था। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जगह पर रामलला का हक बताते हुए वहां पर राम मंदिर निर्माण का फैसला सुनाया था।

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