किसान आंदोलन पर पंजाब फैक्टर का असर, 'हक की जंग' में अकेल पड़ते जा रहे हैं राकेश टिकैत?

किसान आंदोलन अब अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर है। राकेश टिकैत किसानों के हक की लडाई में अभी डटे हुए हैं, लेकिन एक सच यह भी है कि एसकेएम के अंदर अब पहली वाली यूनिटी नहीं रही।

Update: 2021-11-30 02:59 GMT

किसान अंदोलन पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट


नई दिल्ली। कृषि कानूनों से संबं​धित बिल बिना चर्चा के वापस होने के बाद ​से किसान आंदोलन ( Kisan Andolan ) के नेताओं पर दबाव पहले की तुलना में बढ़ गया है। पीएम मोदी ( PM Modi ) द्वारा कृषि कानूनों की वापसी  ( farm bill repealed ) और संयुक्त किसान मोर्चा ( skm ) के नरम रुख से साफ है कि अब एसकेएम पहले की तरह टिकैत के साथ नहीं है। एसकेएम पर पंजाब फैक्टर ( pubjab factor  ) का असर दिखाई देने लगा है।

फिर किसान आंदोलन के भविष्य को लेकर राकेश टिकैत बयान देने के बाद मीडिया के सवालों का जवाब सीधे देने के बजाय उसे तोड़ मरोड़कर दे रहे हैं। कृषि कानून रद्द होने के बाद टिकैत ने साफ कर दिया है कि उन्हें जबतक सरकार की तरफ से एमएसपी पर गारंटी नहीं मिलती है वह आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। वह अपनी मांगों को लेकर लंबे समय से धरने पर बैठे हैं। इस बात पर वो आज भी अडिग हैं, लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने अपना रुख बदल लिया है।

इस बीच राकेश टिकैत ने AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी पर निशाना साधते हुए कहा था कि अब यूपी में ओवैसी आ गए हैं, जो बीजेपी वालों के 'चच्चा जान' हैं। ओवैसी यूपी में बीजेपी को जिताकर ले जाएंगे। इन्हें कोई दिक्कत नहीं है। जब एक इंटरव्यू में उनसे इस बयान को लेकर सवाल पूछा गया इसके जवाब में टिकैत ने कहा​ कि आप ही बताओ, क्या औवैसी बीजेपी का 'चच्चाजान' नहीं है क्या? उन्होंने कहा कि गांव के लोग कहते हैं कि ये बीजेपी के लिए काम कर रहा है। अब तो वैसे भी जिन्ना का भूत चलेगा देश में और कट्टरवाद चलेगा। अब भले ही सरकार कितना मना कर ले, लेकिन अंदर से सच्चाई सबको पता चल रही है। हम बीजेपी को न हराना चाहते हैं और न ही जिताना चाहते हैं। हम देश के प्रधानमंत्री को हराकर कहां जाएंगे? प्रधानमंत्री ने ज्यादा मीठी भाषा का इस्तेमाल किया है। हमें इस मीठी भाषा पर थोड़ा शक तो हो रहा है।

जब राकेश टिकैत से अगला सवाल पूछा गया था कि क्या आपको विश्वास था कि प्रधानमंत्री मोदी टीवी पर आकर ऐसे अचानक कानून रद्द कर देंगे। जब आपने पहली बार सुना तो आपका क्या जवाब था? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इसमें रिएक्शन जैसी क्या बात हो गई। ये कानून तो वापस होने तय थे। हमें बिल्कुल उम्मीद थी कि सरकार कानूनों को वापस करेगी। हमने किसी पार्टी को झुकाया नहीं है। ये हमारे मुद्दों की लड़ाई है। हम लोग तो चाहते हैं सरकार हमारी बात को मान जाए और हम लोग अपने घर लौट जाएं। हम ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। लेकिन एसकेएम ने ट्रैक्टर माच्र को स्थगित कर दिया। न चाहते हुए भी राकेश टिकैत को किसान संगठनों के फैसले पर अमल करना पड़ा।

सोमवार को शीतकालीन सत्र के पहले दिन रकेश टिकैत ने सख्त रुख अपना लेकिन एसकेएम ने संसद से कृषि बिल की वापसी का स्वागत किया है। चर्चा ये भी अब एसकेएम ने 1 दिसंबर को आपात बैठक बुलाई है। संभवत: उस आंदोलन वापसी की भी घोषणा हो जाएंं।

इस बीच पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह हरियाणा के सीएम मनोहर लाला खट्टर से मिले हैं। उन्होंने मुलाकात के बाद कहा कि हम पंजाब में सरकार बनाने जा रहे हैं। तो क्या अमरिंदर सिंह ने एसकेएम के 32 संगठनों के नेताओं को अपने पक्ष में कर लिया है। अगर ऐसा तो इसका असर उत्तर प्रदेश चुनाव पर भी होगा। भाजपा इसका लाभ उठाने की कोशिश करेगी। ऐसे ये भी हो सकता है कि राकेश टिकैत अकेले पड़ जाएंं।

जून में ही चढूनी ने बना ली थी अलग फेडरेशन

किसान संगठन के नेताओं में मतभेद की झलक सबसे पहले जून, 2021 मेें दिखाई दी थी। जब भारतीय किसान यूनियन ( चढूनी ) हरियाणा के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने संयुक्त किसान मोर्चे से अलग भारतीय किसान मजदूर फेडरेशन बना ली थी। चढूनी ने यह कदम ऐसे समय में उठाया था जब तमाम संगठन कृषि बिलों के खिलाफ एक हुए हैं। इस संगठन को बनाकर उन्होंने साफ कर दिया था कि वह संयुक्त किसान मोर्च के तहत तो रहेंगे लेकिन अपनी राह अलग होगी।

टिकैत और चढ़ूनी के बीच जारी है वर्चस्व की जंग

किसान नेता चढूनी द्वारा अपना अलग संगठन बनाए जाने से इसकी भी पुष्टि हुई कि किसान आंदोलन दो नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी है। हाल में ही चढ़ूनी ने सोशल मीडिया के माध्यम से यूपी के कई हिस्सों में किसान आंदोलन नहीं चलने की बात कही थी। इस दौरान उन्होंने नेताओं के साथ संगठन पर भी उंगुली उठाई थी। हालांकि, दोनों नेता मंच पर साथ नजर आते हैं। कुछ समय पहले ही चढूनी ने कहा था कि जिस तरह पंजाब और हरियाणा में नेताओं का विरोध हो रहा है वैसी यूपी में नहीं हो रहा है। उन्होंने साफ कहा था कि आंदोलन को यूपी में भी धार देनी होगी, जिसका साफ इशारा टिकैत बंधुओं की तरफ था जो यूपी से आते हैं।

जजपा विधायक बबली के घेराव के मुद्दे पर भी दोनों सुर अलग थे

इसी तरह चार जून 2021 को टोहाना से जजपा विधायक देवेंद्र सिंह बबली के आवास के घेराव के मुद्दे पर किसान नेता राकेश टिकैत और गुरनाम चढूनी के सुर वीरवार को अलग-अलग नजर आए थे। बाडोपट्टी टोल पर पहुंचे गुरनाम चढूनी ने कहा था कि जो लोग विधायक देवेंद्र बबली की कोठी का घेराव करने गए थे, वे हमारे किसान नहीं थे। इस पर किसानों ने जाम खोल दिया। वहीं राकेश टिकैत रामायाण टोल पर जाम के फैसले पर अडिग रहे। उन्होंने कहा कि जब तक किसानों को रिहा नहीं किया जाएगा तब तक यहीं रहेंगे।

योगेंद्र यादव का निलंबन विवाद

अक्टूबर, 2021 में लखीमपुर खीरी में भाजपा वर्कर के परिजनों से योगेंद्र यादव की मुलाकात के मुदृे पर भी किसान नेताओं के बीच मतभेद सामने आए थे। यादव ने करनाल में किसानों पर हुए लाठीचार्ज के मामले में अहम भूमिका निभाई थी। योगेंद्र संयुक्त किसान मोर्चा के मुख्य रणनीतिकारों में एक रहे हैं, अचानक से अब योगेंद्र यादव को निलंबित करने से संयुक्त किसान मोर्चा की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई। गुरनाम चढूनी ने तो योगेंद्र यादव को बर्खास्त करने तक की मांग की थी। चढूनी और योगेंद्र यादव के बीच विवाद भी पुराना है। इससे पहले योगेंद्र यादव ने गुरनाम चढूनी को पॉलिटिकल बयान देने का आरोप लगाकर मोर्चा विरोध गतिविधियों की वजह से निलंबित कर दिया था। जानकार मान रहे हैं कि अब गुरनाम चढूनी को बदला लेने का मौका मिला गया।

दिल्ली कूच के फैसले पर भी फूट सामने आई थी

हाल ही में सिंघु बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) की बैठक के दौरान दिल्ली कूच के फैसले पर फूट सामने आई थी। इस दौरान भारतीय किसान यूनियन (चढूनी गुट) के कार्यकर्ताओं ने भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के सामने जमकर नारेबाजी की थी। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने बताया था कि बैठक में फैसला लिया कि 26 नवंबर से आंदोलन में किसानों की संख्या बढ़ाई जाएगी। वहीं 29 नवंबर से टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर से 500-500 किसानों का जत्था संसद कूच करेगा।

संसद से कृषि बिल वापसी का स्वागत

सोमवार को कृषि कानून वापस का बिल लोकसभा में पास होने पर किसानों ने भी खुशी जाहिर की है। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय सचिव रतनसिंह सौरौत, किसान नेता ताराचंद, महेंद्र चौहान, नरेंद्र, उदयचंद का कहना ही लोकसभा में कृषि कानून वापसी का बिल पास होने से किसान खुश हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने जब इस दिशा मे एक कदम बढ़ाया है तो किसानों ने भी ट्रैक्टरों में बैठकर दिल्ली कूच करने का कार्यक्रम रद्द कर दिया। 

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