Lucknow PUBG Murder Case : PUBG खेलने से मना करने पर सो रही मां की गोली मारकर हत्या करने के मामले में जो चीजें सामने आयी हैं वे सिर चकरा देंगी
Lucknow PUBG Murder Case : आपको बता दें कि इस घटना के बारे में ख़ुद बेटे ने 7 जून की पिता को फ़ोन कर जानकारी दी थी घटना के तीन दिनों तक अभियुक्त अपनी 10 वर्षीय बहन के साथ उसी घर में रह। जब शव सड़ने लगा और बदबू बर्दाश्त से बाहर हुई तब उसने अपने पिता को इसकी सूचना दी। एडीसीपी पूर्वी कासिम आब्दी बीबीसी को फ़ोन पर बताते हैं, "बच्चे को बाल सुधार गृह भेज दिया गया है. अभी लीगल प्रासेस चल रहा है...
Lucknow PUBG Murder Case : पश्चिम बंगाल के आसनसोल में सेना में जूनियर कमीशन्ड ऑफिसर के पद पर तैनात नवीन कुमार सिंह एक महीने पहले ही दो मई को छुट्टी से वापस अपनी ड्यूटी पर पहुंचे थे। उन्हें अंदेशा भी नहीं था कि इतनी जल्दी उन्हें अपने घर पत्नी के मौत की खबर (Lucknow PUBG Murder Case) सुनकर लौटनी पड़ेगी।
लखनऊ के पीजीआई क्षेत्र के पंचमखेड़ा स्थित यमुनापुरम कॉलोनी में नवीन कुमार सिंह की पत्नी अपने बेटे और बेटी के साथ रहती थीं। इनके 17 वर्षीय बेटे ने चार जून की रात में करीब दो-तीन बजे पिता की लाइसेंसी पिस्तौल से अपनी मां की गोली मारकर हत्या कर दी।
आपको बता दें कि इस घटना के बारे में ख़ुद बेटे ने 7 जून की पिता को फ़ोन कर जानकारी दी थी घटना के (Lucknow PUBG Murder Case) तीन दिनों तक अभियुक्त अपनी 10 वर्षीय बहन के साथ उसी घर में रह। जब शव सड़ने लगा और बदबू बर्दाश्त से बाहर हुई तब उसने अपने पिता को इसकी सूचना दी। एडीसीपी पूर्वी कासिम आब्दी बीबीसी को फ़ोन पर बताते हैं, "बच्चे को बाल सुधार गृह भेज दिया गया है. अभी लीगल प्रासेस चल रहा है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस के सामने बच्चे के पिता ने जो बयान दिया है उसके अनुसार बच्चे को गेम खेलना और लड़कियों से चैट करने की बहुत आदत थी। मम्मी उसे यह सब करने से मना करती थीं. मोबाइल के इस्तेमाल पर पाबंदी उसे पसंद नहीं थी।
कासिम आब्दी कहते हैं, "बच्चा पहले भी घर से कई बार भाग चुका था। उसका स्वभाव बाकी बच्चों से थोड़ा तो अलग है। घटना के बाद से अभी बच्चे का व्यवहार एकदम सामान्य है उसे लगता है उसने जो किया है वो एकदम सही किया है। मेरे सामने का यह अबतक पहला ऐसा केस (Lucknow PUBG Murder Case) है पर कोरोना काल से मोबाइल एडिक्शन के कई मामले सामने आये हैं।
हैरान कर देने वाली इस घटना पर केजीएमयू के पूर्व मनोचिकित्सक डॉ कृष्ण दत्त ने बीबीसी को बातचीत में बताया है कि, "कुछ बच्चों का स्वभाव ऐसा होता है जिन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं होता है इसे पुअर इम्पल्स कंट्रोल कहते हैं। ऐसे बच्चे बहुत कुछ साज़िश बनाकर कोई कदम नहीं उठाते बल्कि आवेश में आकर ऐसा करते हैं। कई बार ये छोटे भाई-बहनों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
वे कहते हैं, "आजकल इस तरह की घटनाओं की मुख्य वजह एकल परिवार हो गए हैं। पहले संयुक्त परिवार में बच्चे सबसे बात करते थे और परिवार के सदस्यों के साथ ही विभिन्न गतिविधियों में व्यस्त रहते थे लेकिन अब इनकी दुनिया मोबाइल और टीवी हो गयी है। एकल परिवार में अगर माता-पिता दोनों नौकरी करते हैं तो बच्चे बहुत अकेले पड़ जाते हैं। ऐसे बच्चों को अपनी बात ज़ाहिर करने का मौका ही नहीं मिलता है। इस स्थिति में बच्चे को मोबाइल की लत हो जाती है। ऐसे बच्चों का नतीजा आपके सामने हैं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार लखनउ के आशा ज्योति केंद्र 181 की प्रशासक अर्चना सिंह बताती हैं, "हमारे यहाँ जितने भी मामले आते हैं उनमें से 40 फ़ीसद मोबाइल एडिक्शन से ही संबंधित होते हैं। कोविड के दौरान गेम के ज़रिए बहुत क्राइम हुए हैं। संयुक्त परिवारों का ख़त्म होना मोबाइल का ज़्यादा इस्तेमाल एक बड़ा कारण है। ऑनलाइन गेम के ज़रिये कोविड में बहुत सारी लड़कियां साइबर क्राइम (Lucknow PUBG Murder Case) की शिकार हुई हैं।"
एडीसीपी पूर्वी कासिम आब्दी का कहना है, "इस कोविड में लोगों की सोशल लाइफ़ काफी हद तक ख़त्म हो गयी। लोग घरों में ज़्यादा कैद रहे। फैमिली और रिश्तेदारों का भी आवागमन काफी कम हुआ। जिस वजह से बच्चे मोबाइल का इस्तेमाल पहले से ज़्यादा करने लगे। इस केस में बच्चे के फ़ोन का डेटा और टॉक वैल्यू माँ ने रिचार्ज नहीं कराया था। अभी ये माँ के ही फ़ोन का ज़्यादा इस्तेमाल करता था। घटना के बाद भी ये माँ के मोबाइल से गेम खेलता रहा। बच्चे की दादी की शिकायत पर जुवेनाइल जस्टिस के तहत 302 की धारा लगाई गयी।"
कभी दिन के 8 से 10 घंटे रोज़ाना मोबाइल पर पबजी खेलने वाले 20 वर्षीय करन ने बीबीसी से बातचीत में बताया है कि "अगर इस गेम की लत एक बार लग गई तो छुड़ाना बहुत मुश्किल होता है. मैं दो साल पहले तक 8 से 10 घंटे रोज़ पबजी खेलता था। खेल के दौरान अगर घर में कोई खाना खाने को कहे या किसी काम को करने के लिए बोला जाए तो बहुत गुस्सा हो जाता था। ऐसा लगता था क्या कुछ न कर दूँ क्योंकि खेलते हुए इस गेम से क्विट (Lucknow PUBG Murder Case) करना बहुत मुश्किल होता है।
वे कहते हैं, "अब मैं दिन में डेढ़ दो घंटे ही पब्जी खेलता हूँ। ऑनलाइन गेम के घंटे कम करने में मुझे क़रीब दो साल का समय लगा। अब मैं पहले से गुस्सा भी बहुत कम होता हूं। मेरे दर्जनों दोस्त ऐसे हैं जो अब भी दिन के आठ से 10 घंटे फ़ोन पर गेम खेलते हैं। ऐसे बच्चे बहुत चिड़चिड़े, ज़िद्दी और गुस्सैल होते हैं।"
बुधवार की शाम के क़रीब छह बजे पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर 40 वर्षीय मृतका साधना सिंह के शव के पास उनकी 10 वर्षीय बेटी अपने पिता की गोद में लिपटी सिसकियाँ ले रही थी। यह बच्ची अपनी माँ के शव के साथ तीन दिन तक अपने घर यमुनापुरम कॉलोनी में थी। जब शव से बदबू आने लगी तब मंगलवार रात 17 वर्षीय अभियुक्त बेटे ने पिता को माँ के मरने की ख़बर दी।
लाल रंग की टीशर्ट और सफ़ेद रंग का हाफ़ पैंट पहने पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर नवीन कुमार सिंह की आँखों में पत्नी का शव देख रह-रहकर आंसू आ रहे थे। वे अपनी बच्ची के सिर को हाथ से सहलाकर उसे दिलासा दे रहे थे. यहाँ अभियुक्त के चाचा-चाची, बाबा-दादी और चंदौली से आए ननिहाल पक्ष के कुछ लोग मौजूद थे। देर शाम शव का अंतिम संस्कार बैकुंठ धाम में कर दिया गया।
हाईस्कूल में फ़ेल हो गया था बच्चा
पोस्टमॉर्टम हाउस के बाहर खड़े अभियुक्त के मामा संत सिंह ने बताया, "अभी पिछले महीने ही जीजा (नवीन सिंह) दो मई को छुट्टी से वापस गये थे। ये बच्चा (आरोपी) छुट्टियों में अक्सर ननिहाल आता था। क्रिकेट खेलने का बहुत शौकीन है। पर कभी-कभी ज्यादा पैनिक हो जाता है। जो काम कर रहा हो अगर उसे मना करो तो गुस्सा ज्यादा करता है। पर अब ये लक्षण तो ज्यादातर बच्चों में होते हैं इसलिए कभी ऐसा लगा नहीं कि उसे डॉक्टर को दिखाया जाए। अब पता नहीं कैसे उसने इतना बड़ा कदम (Lucknow PUBG Murder Case) उठा लिया?"
संत सिंह आगे कहते हैं, "फोन पर गेम खेलने का लती था. पिछली बार हाईस्कूल में फेल हो गया था इस बात को लेकर भी वो थोड़ा परेशान था। जबसे उसके नंबर कम आए थे दीदी (मृतका) थोड़ा पढ़ने के लिए बोलती थीं और फोन चलाने से मना करती थीं। कई बार उससे फोन छीना भी गया। तभी शायद गुस्से में आकर उसने यह कदम उठाया। "
आरोपी की दादी मिर्जा देवी ने पोते के खिलाफ पीजीआई थाने में अपनी बहू की हत्या का केस दर्ज कराया है. पुलिस ने दादी की तहरीर पर नाबालिग पर हत्या का केस दर्ज कर उसे बाल संरक्षण गृह मोहान रोड भिजवा दिया है। मिर्जा देवी अपने छोटे बेटे के साथ इंदिरापुरम चरणभट्ठा में रहती हैं। वो पोस्टमार्टम हाउस के बाहर रोते हुए कह रही थीं, "हमारा तो सब कुछ बर्बाद हो गया। अब जो करेगी वो पुलिस ही करेगी।" घटना के बाद परिवारजन बहुत बात करने की स्थिति में नहीं थे।
डॉ कृष्ण दत्त का कहना है, "मोबाइल में एक क्लिक पर बहुत कुछ खुल जाता है। बच्चे गेम के अलावा अलग-अलग साइट पर जाते हैं जहाँ वो एक समय बाद काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं। पांच साल से 12 साल की उम्र बच्चों की देखरेख के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इस उम्र में उन्हें सुनने और समझने की बहुत ज़रूरत है।"
चंदौली ज़िले की रहने वालीं मृतका साधना सिंह अपने दो भाइयों की इकलौती बहन थीं। इन्होंने स्नातक तक पढ़ाई की थी। अब ये एक हाउसवाइफ़ थीं। पिछले पांच छह सालों से बच्चों के साथ यमुनापुरम कॉलोनी में रह रही थीं. इनकी शादी 2002 में हुई थी। अभियुक्त बेटे का जन्म अक्टूबर 2005 में हुआ था।
बुधवार को दोपहर क़रीब ढाई बजे से शाम साढ़े चार बजे तक हमने यमुनापुरम कॉलोनी में आरोपी के घर के आसपास कई लोगों से बात करने की कोशिश की पर ज़्यादातर लोगों ने बात करने से मना किया। नवीन सिंह का तीन मंज़िला घर मोहल्ले में कॉर्नर पर है। मीडिया की कुछ एक गाड़ियों के अलावा पूरी गली में सन्नाटा पसरा था। नवीन सिंह के घर के आसपास कुछ छोटे-छोटे बच्चे घूम रहे थे।
घर का मामला होने की वजह से घरवाले, रिश्तेदार और पड़ोसी सब इस मामले में बात करने से कतराते नजर आए (Lucknow PUBG Murder Case)। सबने चुप्पी साध रखी थी। नवीन सिंह के घर के ठीक सामने एक 70 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने बताया, "गोली की आवाज़ हमलोगों को नहीं सुनाई दी। शायद हम सो गए होंगे।"
उन्होंने बताया, "दो-तीन दिन यहीं मिट्टी (शव) रखी रही तभी पंखा चलाकर छोड़ दिया है ताकि बदबू ख़त्म हो जाए। हम तो घर के सामने रहते हैं हमें तो तब पता चला जब यहाँ भीड़ देखी। अब आजकल के बच्चे मोबाइल के आगे किसी की सुनते कहाँ हैं?"
इनके बगल में बैठी एक और महिला ने कहा, "माँ-बाप नौकरी पर चले जाते हैं बच्चों पर कोई ध्यान ही कहाँ देता है? बच्चे इतने ज़िद्दी हो गये हैं कि वो बिना मोबाइल देखे खाना ही नहीं खाते अब. शुरुआत में बच्चों को चुप कराने के लिए माँ-बाप उनके हाथ में फ़ोन पकड़ा देते हैं बाद में उसे मना करते हैं तबतक बहुत देर हो चुकी होती है। अब इसी केस में देख लीजिए, माँ ने तो भलाई के लिए कहा था कि वो फ़ोन न चलाए पर किसे पता था कि इतना मना करने से वो गोली से मार डालेगा।
राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉक्टर सुचिता चतुर्वेदी के मुताबिक़ इस तरह की घटना दो ढाई साल बाद हुई है, इससे पहले ठीक ऐसी ही घटना हुई थी जिसमें सात-आठ साल की बच्ची ने मिलता-जुलता क़दम उठाया था
डॉ. सुचिता चतुर्वेदी बीबीसी को बताती हैं, "बच्चों के मनोविज्ञान को पढ़ने की आवश्यकता है। जब बच्चा अपने आपको अकेला महसूस करता है तभी वह इन सब आर्टीफिशियल चीज़ों के पीछे भागता है. बच्चा अकेले क्यों रहना चाहता है इस पर पेरेंट्स को गम्भीरता से ध्यान देने की ज़रूरत है. अभी एकल परिवार की परम्परा सी बन गई है। लोग पैसा कमाने के चक्कर में बच्चों पर बहुत ध्यान नहीं दे पा रहे हैं।"
इस स्टोरी के कुछ तथ्य बीबीसी पर प्रकाशित रिपोर्ट से लिए गए हैं।
(जनता की पत्रकारिता करते हुए जनज्वार लगातार निष्पक्ष और निर्भीक रह सका है तो इसका सारा श्रेय जनज्वार के पाठकों और दर्शकों को ही जाता है। हम उन मुद्दों की पड़ताल करते हैं जिनसे मुख्यधारा का मीडिया अक्सर मुँह चुराता दिखाई देता है। हम उन कहानियों को पाठक के सामने ले कर आते हैं जिन्हें खोजने और प्रस्तुत करने में समय लगाना पड़ता है, संसाधन जुटाने पड़ते हैं और साहस दिखाना पड़ता है क्योंकि तथ्यों से अपने पाठकों और व्यापक समाज को रू-ब-रू कराने के लिए हम कटिबद्ध हैं।
हमारे द्वारा उद्घाटित रिपोर्ट्स और कहानियाँ अक्सर बदलाव का सबब बनती रही है। साथ ही सरकार और सरकारी अधिकारियों को मजबूर करती रही हैं कि वे नागरिकों को उन सभी चीजों और सेवाओं को मुहैया करवाएं जिनकी उन्हें दरकार है। लाजिमी है कि इस तरह की जन-पत्रकारिता को जारी रखने के लिए हमें लगातार आपके मूल्यवान समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है।
सहयोग राशि के रूप में आपके द्वारा बढ़ाया गया हर हाथ जनज्वार को अधिक साहस और वित्तीय सामर्थ्य देगा जिसका सीधा परिणाम यह होगा कि आपकी और आपके आस-पास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित करने वाली हर ख़बर और रिपोर्ट को सामने लाने में जनज्वार कभी पीछे नहीं रहेगा, इसलिए आगे आयें और जनज्वार को आर्थिक सहयोग दें।)