मोरबी जैसा पुल बनता ही क्यों है कि हिलाने भर से टूट जाता है
अगर ब्रिज पर एक ही जगह ज्यादा लोग पहुंच जाएं तो प्वाइंट लोड पड़ता है। लोग उछलने कूदने या नीचे की ओर चोट करने लगें तो स्पैन पर इम्पैक्ट लोड पड़ता है। इसके चलते ब्रिज में ऑसीलेशन (Oscilation) पैदा होता है जो खतरनाक है।
Gujrat News : गुजरात के मोरबी नदी हादसे ( Morbi bridge collapsed ) के चार दिन हो गए। दिल दहला देने वाली इस घटना और उसको लेकर सियासी शोर और टीवी व सोशल मीडिया पर न्यूज का खेल अब हमेशा की तरह नॉर्मलाइजेशन की ओर है। जैसा कि हर बड़ी घटना के बाद होता है, इस बार भी सबकुछ वैसा ही हो रहा है। बस घटना और उसका स्थान अलग है। अगर आप सोच रहे हैं कि घटना और उसके शोर शराबे का कोई नतीजा निकलेगा तो वैसा कुछ होने वाला नहीं है। ऐसा इसलिए कि मूल समस्या पर कोई हाथ ही नहीं रखना चाहता।
कहा जाता है कि इस हादसे के जिम्मेदार लोग मूल प्रश्न पर हाथ नहीं रखने देते, लेकिन मुख्यधारा के जो लोग ऐसा कर सकते हैं वो भी इससे मुंह मोड़ लेते हैं और उसी का हिस्सा बन जाते हैं, जिस व्यवस्थागत दुष्चक्र को दिन रात वो कोसने से नहीं थकते। मूल समस्या से जान बूझकर आंख मूंद लेने के इस खेल में हर बार जनता को ही नुकसान उठाना पड़ता है। यही वजह है कि लोग सवाल पूछते हैं कि मोरबी जैसा पुल ( morbi news ) बनता ही क्यों है कि हिलाते ही टूट जाता है।
फिलहाल, हमेशा की तरह इस बार भी करीब 150 लोग मोरबी पुल हादसे ( morbi bridge incident ) में जान से हाथ धो बैठे। अब उनके परिजनों की चिंता कौन करेगा। किसी का घर चलाने वाला चला गया तो किसी का कुल दीपक बुझ गया। इन सब बातों के बीच अहम बात यह है कि हम वास्तव में इससे सबक लेना चाहते हैं या नहीं। इस बात को तथ्यों और आरोप-प्रत्यारोपों में उलझने के बजाय तीन लोगों के बयान को समझने की कोशिश भी करें तस्वीर साफ होकर हमारे सामने आ जाती है।
ये है ममता बनर्जी की नजर में हादसे की सच्चाई
तीन लोगों में सबसे पहले मैं मोरबी हादसे को लेकर न्यूज 24 फोर के सवालों के जवाब में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की ओर से दिए गए बयान का जिक्र करना चाहूंगा। ममता का बयान हादसे के दुष्चक्र को सामने लाकर रख देता है। ममता का कहना है कि यह दुखद घटना है। इस पर राजनीति करने की जरूरत नहीं है। न ही, मैं पीएम मोदी को कोसने का काम करूंगी। हमारे देश में ब्रिज जैसे कार्यों के लिए आज के दौर में भी एक्सपर्टाइज की कमी है। अच्छे विशेषज्ञ व प्रोफेशनल नहीं मिलते। इसके बावजूद उपलब्ध प्रोफेशनल एजेंसी को ठेका न देना की घटना को खुद आमंत्रित करने जैसा है। यहां पर दोनों भूलें हुई हैं। एक तो प्रोफेसशनल एजेंसी को काम नहीं दिया गया, दूसरी बात कि जिसे काम दिया गया उसने एक प्रोफेशनल एजेंसी की तरह काम को निपटाने की कोशिश नहीं की। यानि जिम्मेदार एजेंसी ने क्वालिटी नहीं बल्कि कमाई पर जोर दिया, इसलिए घटना के वास्तविक दोषी को सबसे पहले जिम्मेदार ठहराने की जरूरत है।
ऐसे मामलों की जांच सीबीआई या ईडी से होनी चाहिए। ऐसा न हो तो सरकार न्यायिक जांच कराए। उन्होंने कहा कि इससे ज्यादा मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहूंगा। ममता ने एक और गौर करने वाली बात बताई कि हमारे यहां काम की आडिटिंग बिल्कुल ही पुअर है। यानि हर काम की जिम्मेदारी जिसे आप देते हैं, वहीं न्यारा—वारा करने में जुट जाता है।
नॉन प्रोफेशनल को काम देंगे तो यही होगा
ममता बनर्जी के इस बयान पर त्वरित रिप्लाई में एक सोशल मीडिया यूजर व सिविल इंजीनियर अरविंद सिंह ने कहा कि समस्या ये है कि सभी इंजीनियर सड़क पर घूम रहे हैं। बिना इंजीनियर का ज्ञान रखने वाले पुल बना रहे हैं। यही सत्य है और मूल समस्या भी। गुजरात में इंजीनियरों की भर्ती तो होती नहीं। अरविंद सिंह के हिसाब से जब आप एक पुल बनाने का काम एक घड़ी बनाने वाली एजेंसी यानि ओरेवा को सौंपेंगे तो यही होगा न। इसके अलावा और कुछ नहीं हो सकता।
आधे ब्रिज से वापस लौट आया, बच गया पूरा परिवार
एक अन्य प्रत्यक्षदर्शी की बात को यहां रखना चाहूंगा जो खुद अपने परिवार का इस हादसे का शिकार होते-होते बच गया। भारत एक नई सोच न्यूज पोर्टल ने अपने लेख में इस प्रत्यक्षदर्शी का जिक्र किया है। प्रत्यक्षदर्शी व अहमदाबाद निवासी विजय गोस्वामी और उनका परिवार रविवार को गुजरात के मोरबी में हैंगिंग ब्रिज का आनंद लेने पहुंचे थे। उन्होंने बताया कि ब्रिज पर भीड़ में शामिल कुछ युवाओं द्वारा ने इसे हिलाना शुरू कर दिया। मुझे अपने अंदेशे का डर हुआ। मैं, अपने परिवार के साथ डरकर पुल से आधे रास्ते से लौट आया। कुछ घंटों बाद मेरी आशंका सही साबित हुई जब पर्यटकों का आकर्षण मच्छू नदी पर बना वह पुल शाम करीब साढ़े छह बजे ढह गया। गोस्वामी ने कहा कि उन्होंने इसके बारे में पुल कर्मचारियों को भी सचेत किया था, लेकिन वे कोई एक्शन नहीं ले पाए थे। यानि ब्रिज की सुरक्षा की जिम्मेदारी व खतरे की आंशका पर क्या किया जाना चाहिए, को लेकर पूरा सिस्टम ही लापरवाह दिखाई दिया। अफसोस की बात यह है कि यह सब उस गुजरात में हुआ, जहां के बारे में सोते-जागते पीएम मोदी सुशासन की बात करते नहीं अघाते।
क्राउड प्रबंधन न होना खतरनाक : प्रोफेसर सेवा राम
अभी भी हादसे की वजह समझ में नहीं आई तो आइए, हम आपको आखिर कैसे टूट गया पुल,विषय पर आर्किटेक्चर के एक प्रोफेसर सेवा राम की बातों का यहां पर जिक्र करते हैं जो प्रोफेशनल तरीकों से इसकी व्याख्या करते नजर आते हैं। आजतक से बातचीत में आर्किटेक्चर के प्रोफेसर सेवा राम ने बताया कि अगर ब्रिज पर एक ही जगह ज्यादा लोग पहुंच जाएं तो प्वाइंट लोड पड़ता है। वहीं अगर लोग उछलने कूदने या नीचे की ओर चोट करने लगें तो स्पैन पर इम्पैक्ट लोड पड़ता है। इसके चलते ब्रिज में ऑस्लेशन (Oscilation) पैदा होता है जो खतरनाक है। यह सवाल पूछे जाने पर कि क्या भीड़ जमा होने से या लोगों की हरकतों से ब्रिज टूट सकता है, के जवाब में दिल्ली स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर (DSPA) के प्रोफेसर सेवा राम ने प्रजेंटेशन डेमो के माध्यम से समझाया कि मोरबी ब्रिज हादसे की क्या वजह हो सकती है।
प्रो. सेवा राम के मुताबिक नॉर्मल ब्रिज में नदी के बीच में कॉन्क्रीट के कॉलम खड़े करते हैं जिसपर स्लैब डाले जाते हैं। मगर कॉलम खड़े करने में पानी में रुकावट आती है। ऐसे में दूसरा तरीका यानी सस्पेंशन ब्रिज का तरीका अपनाया जाता है। इसमें नदी के दो किनारों पर टॉवर बनाकर इसमें वॉकिंग डेक जोड़ा जाता है। ऐसा नहीं कि यह सुरक्षित नहीं होता बल्कि इन्हें बनाने में समय और लागत दोनों कम लगते हैं इसलिए ये ब्रिज बनाने का बेहतर विकल्प हैं।
सेवा राम के अनुसार ब्रिज की लंबाई को स्पैन कहते हैं। जब लंबा स्पैन चाहिए होता है तो सस्पेंशन ब्रिज बनाया जाता है। अब इस स्पैन पर अगर एक ही जगह पर बहुत सारे लोग पहुंच जाएं तो प्वाइंट लोड पड़ता है। वहीं अगर ज्यादा लोग एकट्ठा होकर उछलने कूदने या नीचे की ओर चोट करने लगें तो स्पैन पर इम्पैक्ट लोड पड़ता है। इसके चलते ब्रिज में ऑस्लेशन (Oscilation) पैदा होता है जो खतरनाक है।
उन्होंने बताया कि अमेरिका में 1940 में टैकोमा नैरोबी ब्रिज भी बनने के कुछ दिन बाद ही गिर गया था। जांच में पता चला कि तेज हवा की वजह से होने वाले ऑस्लेशन के चलते इम्पैक्ट लोड बना जिससे ब्रिज टूट गया। उन्होंने कहा कि कोई भी स्ट्रक्चर निर्धारित लोड पर ही डिजाइन किया जाता है। ऐसे में क्राउड कंट्रोल करना बेहद जरूरी होता है। मजबूत से मजबूत स्ट्रक्चर की भी भार सहने की एक क्षमता है जिसका हमेशा ध्यान रखा जाना चाहिए।
यह सवाल पूछे जाने पर कि हाल ही में रेनोवेशन के बाद पुल को चालू किया गया था, इस पर उन्होंने कहा कि इसका मतलब है ब्रिज अपनी एक लाइफ साइकिल पूरा कर चुका था। रेनोवेशन के समय कई चीजों का ध्यान रखा जाता है। जरूरत पड़ने पर सभी कनेक्शंस को रिप्लेस किया जाता है। कई बार नई केबल भी डाली जाती है और कई बार टॉवर भी रीडिजाइन किया जा सकता है। क्या रेनोवेशन में चूक हुई है, इसका जवाब जांच की रिपोर्ट सामने के बाद ही दिया जा सकेगा।
Morbi News updates : अब समझ में आ गया होगा कि मोरबी ब्रिज हादसा क्यों हुआ। हर स्तर पर लापरवाही की वजह से सैकड़ों निर्दोष लोगों की जानें गईं। तकनीकी विशेषज्ञता, प्रोफेशनैलिटी, नीयत, वर्क सुपरविजन व क्वालिटी कंट्रोल हर स्तर पर कंपनी ने लापरवाही बरती। अब सवाल उठता है कि ऐसे नॉन प्रोफेशनल लोगों को ठेका क्यों दिया तो इसका जवाब गुजरात सरकार ही दे सकती है। यानि पुल बनाने का मकसद गलत नहीं है, बल्कि नीयत में हर स्तर पर खोट है।