Journalist Kamal Khan: मेरी माँ ने मेरी शादी के छह माह बाद अचानक मुझसे पूछा कि बेटा रूचि की जाति क्या है?

मैं मानता हूँ कि एक रोल टीवी के जरिये अदा किया, अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जियेंगे। मैं फॅमिली मैन हूँ, बीवी बच्चों के साथ घूमना फिरना, ना मीडिया सेंटर गए, ना यहाँ वहाँ बिलावजह घुमक्कडी की। अपने काम से काम रखता हूँ...

Update: 2022-01-14 06:06 GMT

(एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान का निधन)

Kamal Khan: मूल रूप से पुराने लखनऊ निवासी कमाल खान (Kamal Khan Death) का रात दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उन्होने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इंग्लिश में एमए किया था और उसके बाद रशियन भाषा में एडवांस डिप्लोमा। इसके बाद उनका इरादा रूस जाने का था। लगभग पूरी तैयारी हो गयी थी कि अचानक माँ की तबियत काफी खराब हो गयी। कमाल माँ की बीमारी की वजह से रूस नहीं जा पाये और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में चले आये।

भड़ास डॉट कॉम से बात करते हुए कमाल खान ने कहा था, मेरी शुरू में रूचि अन्य क्षेत्रों में थी पर जब इंडिया में रह गया तो धीरे-धीरे पत्रकारिता में दिल लगाने लगा। मैंने वर्ष 1990 में नव भारत टाइम्स के लखनऊ कार्यालय से अपना काम शुरू किया। यह अखबार तीन साल बाद 1993 में बंद हो गया। उस समय विनोद शुक्ल ने मुझे अपने अखबार में काम करने का अवसर दिया लेकिन मैंने कुछ दिनों बाद वहाँ से रिजाइन कर दिया। फिर दिसम्बर 1994 में मैं एनडीटीवी में चला आया और उसके बाद यह मेरे दूसरे घर की तरह ही हो गया। तब से पिछले अट्ठारह सालों से मैं एनडीटीवी में ही हूँ।

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शादी में कोई दिक्कत या परेशानी के सवाल पर उन्होने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए कहा कि, 'परेशानी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मेरी माँ ने मेरी शादी के छह माह बाद अचानक मुझसे पुछा कि बेटा रूचि की जाति क्या है, कुछ आस-पास वाले पूछते रहते हैं, मालूम हो तो बता दूंगी। कुल मिला कर दोनों परिवार के लोगों ने इस शादी में भरपूर योगदान और सहयोग दिया और बड़े जतन से हमारी शादी कराई। मेरे पिता थे नहीं, पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। माँ ने कोई आपत्ति की नहीं। रूचि के पिता तो और भी मजेदार थे। उन्होंने हमारी शादी का कार्ड अपने हाथ से लिख कर उसे लैटर प्रेस से निकलवाया क्योंकि उनका कहना था कि लोग बाद में यह नहीं कहने की स्थिति में हों कि उनकी लड़की रूचि ने भाग कर शादी की है। हमने स्पेशल मैरेज एक्ट में अप्लाई किया-राकेश ओझा उस समय एडीएम थे। और फिर नियत समय पर हमारी शादी हो गयी।'

Tribute to Kamal Khan : दिनभर बोलता था वो तो कितना चुप सा दिखता था, अभी चुप बैठा है तो चेहरा कितना बोलता सा है

पुरस्कारों पर बात

कमाल का मानना था कि, पुरस्कार तो मिलते रहते हैं पर मैं यही मानता हूँ कि हर आदमी को अपना काम चुपचाप लो प्रोफाइल हो कर करते रहना चाहिए। अब पिछले दो सालों में मुझे पांच पुरस्कार मिले। एक तो रामनाथ गोयनका अवार्ड मिला। फिर गणेश शंकर विद्यार्थी अवार्ड मिला। यह अवार्ड पहले सिर्फ प्रिंट मीडिया के लिए था। पहली बार इलेक्ट्रोनिक मीडिया के लिए शुरू हुआ और मुझे भी मिला। ये दोनों पुरस्कार स्वयं राष्ट्रपति के हाथों मिला। इसके अलावा एक न्यूज़ टेलीविजन अवार्ड मिला जो मेरे अलावा अरूण पुरी साहब को मिला। फिर पर्यावरण पर बेस्ट रिपोर्टिंग के लिए अवार्ड मिला। अभी हाल में सार्क कंट्री राइटर अवार्ड मिला, दक्षेश देशों की संस्था सार्क द्वारा। पहले इसमें सिर्फ लेखकों को अवार्ड मिलते थे, अबकी पत्रकारों को भी शुरू किया है। मुझे और उदय प्रकाश को यह पुरस्कार मिला।

मैं चुपचाप अपना काम करता हूँ। मैं मानता हूँ कि एक रोल टीवी के जरिये अदा किया, अपनी जिंदगी को अपने ढंग से जियेंगे। मैं फॅमिली मैन हूँ, बीवी बच्चों के साथ घूमना फिरना, ना मीडिया सेंटर गए, ना यहाँ वहाँ बिलावजह घुमक्कडी की। अपने काम से काम रखता हूँ।

बड़ा नाम और साधारण काम

कमाल टीवी पत्रकारिता का बड़ा नाम थे, बावजूद इसके वह साधारण तौर पर काम के लिए जाने जाते हैं। इसपर वह कहते थे, देखिये मैं यही जानता हूँ कि मैं बहुत ही साधारण आदमी हूँ। मैं यह मानता हूँ कि मैं पत्रकारिता में अपना काम अपनी पूरी कोशिश भर करता हूँ और पूरी इमानदारी से करता हूँ। इसके बाद मेरी जिंदगी में बहुत कुछ है और मैं अपनी उसी दुनिया में खोया रहता हूँ। कुल मिला कर मैं मूलतः एक पारिवारिक आदमी हूँ जो अपने ड्यूटी के अलावा अपनी बीवी और बच्चों में लगा रहता है। मुझे पार्टियों में जाना, किसी के आगे-पीछे करना, बिलावजह डिनर पर जाना अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैं अपनी तरह की जिंदगी जीता हूँ। हाँ, यदि कोई भी रचनात्मक कार्य होता है तो मैं जरूर करने की कोशिश करता हूँ।

पत्नी रूचि के बारे में कमाल खान 

रूचि ने टाइम्स ऑफ इंडिया के एक संस्थान टीआरएस द्वारा उस समय संचालित मीडिया एंड मास कम्युनिकेशन के एक आल इंडिया कम्पीटिशन में भाग लिया था जिसमे पूरे देश से मात्र 11 लोग चयनित हुए थे। टाइम्स ऑफ इंडिया वाले इन चयनित लोगों को ट्रेनिंग के बाद अपने यहाँ ही नौकरी भी देते थे। रूचि ने टाइम्स ऑफ इंडिया के जयपुर कार्यालय में ट्रेनिंग लिया और उसके बाद वे लखनऊ आ गयीं।

वहाँ कुछ साल रहने के बाद वे टीवी में चली आयीं और 1993 में विनोद दुआ द्वारा डीडी के लिए बनाए जा रहे एक बहुत चर्चित प्रोग्राम 'परख' के लिए यूपी का काम देखा। इसके बाद वे कई सालों तक फ्रीलांस काम करती रहीं। इस दौरान इनको एक से बढ़ कर एक महत्वपूर्ण दायित्व निभाने का मौका मिला। उस दौरान गिरीश कर्नाड टीवी के लिए स्वराजनामा बना रहे थे, रूचि ने इसके लिए पूरे यूपी की जिम्मेदारी ली। फिर मेनका गाँधी की वाइल्ड लाइफ से जुड़े एक कार्यक्रम हेड्स एंड टेल्स के लिए काम किया जिसमे दुधवा पार्क, कॉर्बेट पार्क जैसे कई जगहों पर सैकड़ों स्टोरी की। प्रीतिश नंदी ने अटल बिहारी वाजपेयी पर एक डोक्युमेंटरी बनायी थी जो उनके पहली बार पीएम बनने पर टीवी पर दिखाई भी गयी थी। इसमें भी यूपी का कम रूचि ने ही किया था। इसके अलावा आर्ट एंड कल्चर नामक एक प्रोग्राम के लिए काम किया था जो सीएनएन तक पर प्रदर्शित हुआ। इसके लिए वे बद्रीनाथ से लेकर केदारनाथ तक ना जाने कितनी बार गयीं। अब कई सालों से इंडिया टीवी में हैं।

इस तरह हुई थी मुलाकात

शानदार पत्रकार कमाल खान ने अपनी व रूचि कुमार की मुलाकात पर बात करते हुए बताया था कि, हमारी मुलाक़ात टाइम्स ऑफ इंडिया में हुई जब मैं नव भारत टाइम्स और वह टाइम्स में थीं। मुलाक़ात के बाद मिलने जुलने का सिलसिला चलता रहा और करीब दो साल बाद हमारी शादी हुई।

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